मौत की वो घाटी जहां जाने कैसे ज़मीन पर रेंगते हैं बड़े-बड़े पत्थर
कहते हैं इंसानी सभ्यता के विकास में पत्थरों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. पत्थरों से इंसान ने काफी कुछ सीखा है और काफी कुछ हासिल किया है. चाहे वो रत्न आभूषण हों या फिर सोने और हीरे, सब पत्थरों से ही मिलते हैं.
नई दिल्ली: कहते हैं इंसानी सभ्यता के विकास में पत्थरों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. पत्थरों से इंसान ने काफी कुछ सीखा है और काफी कुछ हासिल किया है. चाहे वो रत्न आभूषण हों या फिर सोने और हीरे, सब पत्थरों से ही मिलते हैं. एक तरह से इंसान के विकास के इंजन का इंधन हैं पत्थर, लेकिन ये पत्थर कैलिफोर्निया की डेथ वैली में रहस्यमयी तरीके से चलते फिरते हैं. क्या है इनका राज.
जिस राज़ से पर्दा उठाने में सदियों बीत गए...जिस अबूझ पहेली को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों के सालों का रिसर्च भी फेल हो गया...जिसकी सच्चाई अब भी दुनिया के लिए राज़ है.... वो है... डैथ वैली ऑफ कैलिफोर्निया.
अमेरिका के इस्टर्न कैलिफोर्निया में है डेज़र्ट वैली जिसे डेथ वैली के नाम से जाना जाता है...धरती के सबसे गर्म जगहों में से एक इस डेथ वैली में ऐसे कई राज़ है जो अब भी यहां दफ़न है... कई ऐसे सवाल हैं जो अब भी अनसुलझे हैं....मौत के इस रेगिस्तान में. आखिर क्या है वो रहस्य, क्या है जो इस मरूस्थल को मौत की घाटी बना देता है... जानने के लिए चलते पीछे.... काफी पीछे... तब जंब इंसान अपने आपको पत्थरों से तराश रहा था, जी हां सही सुना आने इंसान खुद को पत्थरों से तराश रहा था.
इंसान के पास आज वो तकनीक है जिससे वो दुनिया को कई बार तबाह कर सकता है, आज इंसान इतना ताक़तवर बना है तो सिर्फ पत्थरों की वजह से, इसकी शुरुआत हुई थी पाषाण युग में यानी स्टोन एज में.
मौत की घाटी में खिसकते पत्थरों का राज़ आज भी बाक़ी है.
इन्हीं पत्थरों ने इंसान को पहला घर दिया. इन्हीं पत्थरों से इंसान ने हथियार बनाए और शिकार करना सीखा, यानी इंसान को खाना भी पत्थरों की वजह से मिला, इन्हीं पत्थरों से इंसान ने जाना कि वो आग जैसी भयानक और बेहद उपयोगी साधन को प्रकट कर सकता है. पत्थरों ने आज के इंसानों की नींव रखी है और अब यही पत्थर एक रहस्य बन गए हैं.
कैलिफोर्निया की डेथ वैली में बड़े बड़े पत्थर अपने आप तैरते हैं, रेंगते हैं और निशान भी छोड़ते हैं. ये क्यों चलते हैं, कैसे चलते हैं और कौन है जो इन्हें एक जगह से दूसरी जगह खिसकाता है? रहस्य से भरे कैलिफोर्निया की डेथ वैली में बड़े-बड़े और भारी भरकम पत्थर खुद ब खुद एक जगह से दूसरी जगह खिसक जाते हैं. पहले ये जानते हैं कि दुनिया के इस इलाके को मौत की घाटी क्यों कहते हैं और फिर देखेंगे वो राज़ जो यहां के पत्थरों से जुड़ा है.
करीब 120 सालों से ये राज आज भी है बाक़ी
उत्तरी अमेरिका का सबसे गर्म इलाका, कैलिफोर्निया के दक्षिण-पूर्व का आखिरी छोर, जहां पर है मौत की घाटी. यहां दूर दूर तक इंसानों की कोई बस्ती नहीं है, क्योंकि ये इंसानों के रहने लायक जगह नहीं है. 225 किलोमीटर की लम्बाई और करीब 24 किलोमीटर की चौड़ाई में ये सुनसान इलाका दुनिया के सबसे गर्म इलाकों में शामिल होता है, जहां का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है.
कभी ये अमेरिका में घुसने का एक मात्र रास्ता हुआ करता था और कैलिफोर्निया के आस-पास से सोना हासिल करने के लिए और इसी जद्दोजहद में कई गुट आपसी रंजिश की वजह से मारे जाते थे. कई तो तपती रेत और आसमान से बरसते शोलों की वजह से अपनी जान गंवा देते थे, जिस रेगिस्तान को पार कर के वो सोने की तलाश में यहां पहुंचते थे वहां की रेत उन्हें खा जाती थी. यही वजह है कि इसे कहते हैं.
1870 में इस पूरी घाटी में एक अध्ययन किया गया और इस दौरान यहां जहां तहां जानवरों से लेकर इंसानों के अवशेष मिले. ये सभी यहां के गंभीर हालात की वजह से मारे गए थे और कई इंसान तो ऐसे हैं जो रिकॉर्ड में हैं कि वो डेथ वैली से होकर गुज़रे लेकिन कभी अपने घर वापस नहीं लौटे ना ही उनका कभी कुछ पता ही चला. आखिर क्या है इस मौत की घाटी का रहस्य.
यहां का सबसे बड़ा और दुनिया के लिए बेहद अजीब रहस्य है यहां के पत्थरों का अपने आप एक जगह से दूसरे जगह खिसकना. किसी सांप की तरह यहां के पत्थर रेंगते हैं. 350 किलो तक बोल्डर इधर से उधर घूमते पाए गए हैं. हालांकि कि किसी ने इन पत्थरों को खिसकते हुए अपनी आंखों से नहीं देखा है लेकिन ये पत्थर अगर किसी दिन एक जगह होते हैं तो दूसरे दिन कहीं और मिलते हैं और पीछे छोड़ जाते हैं सबूत कि वो कहां से कहां तक खिसके हैं.
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कैलिफोर्निया की इस डेथ वैली में एक ऐसा इलाका है जहां सपाट ज़मीन है, ऐसी ज़मीन जो बिल्कुल सूखी हुई है और यहीं पर वो पत्थरों एक जगह से दूरसरी जगह खिसकते हैं, क्या इसका किसी पारलौकिक पावर से नाता है? क्या इसे कोई जान-बूझकर एक जगह से दूसरी जगह खिसकाता है? इन पत्थरों के ख़िसकने का राज़ आखिर क्या है? विज्ञान इसे लेकर क्या कहता है और क्या पाया गया है इसकी पड़ताल में..
सिर्फ वही निशान मिले जो पत्थर के खिसकने से बने
यहां के पत्थर सपाट सूखी ज़मीन पर सरकते हैं, ये तो सौ आने सच बात है लेकिन अजीब बात ये है कि पत्थरों को अपने सामने खिसकते हुए किसी ने नहीं देखा, ना ही किसी कैमरे में इसे रिकॉर्ड किया जा सकता है. ऐसा क्यों नहीं हुआ, ये भी एक राज़ है. वैज्ञानिकों ने भी पूरी कोशिश, लैब में टेस्ट किए और जो दलीलें दी गईं, क्या वो खरी उतरीं, आप भी देखिए.
मौत की ये घाटी समुद्र तल से 282 फीट यानी करीब 86 मीटर नीचे है, जबकि इसके चारों ओर ऊंची ऊंची पहाड़ियां हैं, जिसमें सबसे ऊंची चोटी करीब 15000 फीट ऊंची है. इस रेगिस्तान में ज़िंदा रहना मुश्किल है फिर भी यहां छोटे-छोटे जानवर रहते हैं, चूहे, खरगोश, गिलहरी के साथ कीड़े मकौड़े और सरिसृप प्रजाति के जीवों की भरमार है. डेथ वैली में सिर्फ टिब्बिश जनजाति के लोग एक ख़ास इलाके में रहते हैं, फिर वैज्ञानिक पड़ताल में कभी नहीं पाया गया कि इन पत्थरों को किसी की मदद से खिसकाया जाता है.
यहां के कबिलाई लोग मानते हैं कि इसमें पारलौकिक शक्तियों का हाथ है, उन्हें लगता है कि इस घाटी में भूतों का राज है और वो समय समय पर इसका एहसास इंसानों को कराते हैं, मौत घाटी में मौत की वजह भी उन बेचैन रूहों को माना जाता है, वैज्ञानिकों ने भी यहां रिसर्च किए हैं
यहां पर मौसम बहुत ख़राब होता है, लोग यहां से दूर रहना चाहते हैं, यहां पर 100 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से हवाएं चलती हैं, रात में यहां बहुत ठंड पड़ती है, आज की तकनीक से पहले उनके खिसकने की वजह नहीं पता था, एक अध्ययन में एक ख़ास पत्थर को चुनकर भी देखा गया, हाल ही में हमने वीडियो कैमरे भी लगाए लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि मौसम की वजह से कैमरे ख़राब हो गए या फिर कोई वहां से उठा ले गया.
इतने भारी पत्थर अपने आप खिसकते हैं और उन्हें कभी खिसकते हुए ना तो देखा गया, ना ही कैमरे पर रिकॉर्ड किया जा सका. आखिर यहां हो क्या रहा है. जियोलॉजिस्ट मानते हैं कि हो सकता है कि इन भारी भरकम पत्थरों को हवा यहां से वहां धकेल रही हो.
सिर्फ वही निशान मिले जो पत्थर के खिसकने से बने
पत्थरों के खिसकने को लेकर यहां तमाम कहानियां भी हैं, तमाम तरह के दावे भी हैं, आत्माओं तक को इससे जोड़ा गया है लेकिन अगर आत्माएं या दूसरी शक्तियां पत्थरों को खिसका रही हैं तो उसकी कोई वजह तो होनी चाहिए, इसका किसी के पास कोई जवाब नहीं है और विज्ञान के दावों को यहां की घटनाएं हमेशा खारिज ही कर देती है. तो क्या इस रहस्य से पर्दा उठ गया, क्या ये सब विज्ञान है. नहीं दरअसल इस प्रयोग ने पत्थरों के खिसकने के रहस्य को और उलझा दिया. क्योंकि पत्थरों गर्मियों में भी खिसकते थे और इस सवाल का जवाब नहीं मिला कि पत्थर कैसे सांप की तरह रेंगते हैं.
एक पत्थर जिसे केरीन नाम दिया गया था वो इन सालों में ज़रा भी नहीं हिला था लेकिन जब वैज्ञानिक वहां से चले आए और साल भर बाद वहां पहुंचे तो 317 किलो का केरीन पत्थर अपनी जगह से एक किलोमीटर दूर मिला. ये एक रहस्य है और इसीलिए सवाल खड़े होते हैं कि क्या 7 सालों में भी ऐसे हालात नहीं बने थे कि पत्थर खिसक सके और लोगों के हटते ही वो पत्थर खिसक गया वो भी एक किलोमीटर तक. नासा भी यहां शोध कर चुकी है, स्पेन के कम्प्लूटेंस विश्वविद्यालय ने भी वैज्ञानिक अध्ययन किए और कहा कि मिट्टी में माइक्रोब्स की कॉलोनी मौजूद है यानी बैक्टिरिया के शैवाल मिट्टी में हैं.
हालांकि इस सिद्धांत ने भी सभी सवालों के जवाब नहीं दिए, सर्द मौसम में तो ये सिद्धांत सही साबित होता है लेकिन गर्म रातों में पत्थर कैसे खिसकते हैं? इन सभी सवालों को जवाब अभी तक विज्ञान के पास नहीं हैं, ना ही विज्ञान के पास यहां के लोगों की कहानियों के जवाब हैं. जो ये कहते हैं कि ये सब आत्माओँ का काम है, पारलौकिक शक्तियां पत्थरों को खिसकाती हैं, लेकिन सवाल है कि क्यों?
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