स्नान पूर्णिमा: 108 कलश जल से स्नान कर रथयात्रा से पहले बीमार पड़ गए जगन्नाथ स्वामी

ओडिशा के पुरी क्षेत्र में इन दिनों जगन्नाथ रथ यात्रा (Rath Yatra 2021) की धूम है. गुरुवार को ज्येष्ठ पूर्णिमा के मौके पर भगवान ने सहस्त्रधारा स्नान किया. इसके बाद एकांत वास में चले गए.

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जगन्नाथ जी का हुआ पावन देव स्नान

बसंत पंचमी से ही शुरू हुई जगन्नाथ यात्रा 2021 की तैयारी अब अंतिम चरणों में है. इसके साथ ही ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन (गुरुवार आज) भगवान को स्नान कराया गया और विधि-विधान से पूजन किया गया. जगन्नाथ जी के इस स्नान को देव स्नान कहते हैं. इस स्नान को सहस्त्रधारा स्नान भी कहते हैं जिसमें शामिल होना अत्यंत पवित्र माना जाता है. हालांकि इस बार भक्तों-श्रद्धालुओं को इस आयोजन में शामिल होने की अनुमति नहीं मिली. पुरी में प्रमुख जगहों पर धारा 144 लागू है.

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108 कलश सुगंधित जल से हुआ भगवान का स्नान

गुरुवार को मंगलार्पण नीति पूजा संपन्न होने के बाद डोर लागी एवं पुष्पांजलि कर चतुर्धा विग्रहों की पहंडी की गई. सबसे पहले चक्रराज सुदर्शन, इसके बाद बलराम जी, फिर सुभद्रा एवं अंत में महाप्रभु जगन्नाथ जी को स्नान मंडप में लाया गया. मंगल आरती  सम्पन्न होने के बाद मइलम, तड़पलागी, अधर पोछा, अवकाश नीति सम्पन्न की गई है. स्नान मंडप में चतुर्धा विग्रहों को 108 घड़ा सुगंधित जल से स्नान कराया गया. महास्नान के बाद चतुर्धा विग्रह के गजमुख वेश में दर्शन हुए. 

 

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अब 14 दिन तक दइतापति सेवक करेंगे सेवा

ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ का अनासार उत्सव (Anasar Festival) मनाया जाता है. यह उत्सव रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2021) से ठीक 15 दिन पहले होता है. ज्येष्ठ पूर्णिमा को देव स्नान पूर्णिमा कहा जाता है. इसके बाद, देवता बीमार पड़ जाते हैं. देवताओं के स्नान के लिए कुल 108 औषधिक एवं सुगंधित पानी के बर्तन का उपयोग किया जाता है. अत्यधिक स्नान करने के कारण महाप्रभु को बुखार हो गया. इसके बाद वे 14 दिन के लिए क्वारेनटाइन (एकांतवास)  में रखा जाएगा. यहां पर दइतापति सेवकों द्वारा चुतुर्धा विग्रहों की गुप्त सेवा की जाती है.

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आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकलेगी रथ यात्रा

अनासर उत्सव के बाद 14 दिन बाद भगवान के दर्शन नहीं होते हैं. 14 दिन उपरांत बुखार से स्वस्थ होने के बाद चतुर्धा विग्रह भक्तों को नवयौवन वेश में दर्शन देंगे. इसके बाद अगले दिन आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि यानी कि 12 जुलाई को जगत के नाथ पतितों को उद्धार करने के लिए रथ पर सवार होकर जन्म वेदी यानी गुंडिचा मंदिर जाएंगे, जिसे रथयात्रा (Rath Yatra - 2021)  कहा जाता है. इस रथयात्रा की महिमा विदेशों तक फैली हुई है. हालांकि पिछले साल की तरह इस साल भी कोरोना के कारण श्रद्धालु रथ यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे. 

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इसलिए मनाते हैं अनासर उत्सव

भगवान की अनासर उत्सव लीला और बीमार पड़कर एकांतवास में जाने के पीछे की कथा बहुत करुण है. दरअसल, भगवान जगन्नाथ यह सब अपने भक्त माधवदास के लिए करते हैं. जो एक बार बीमार पड़ गए थे. उनको ठीक करने के लिए भगवान ने उनकी पीड़ा अपने ऊपर ले ली थी. जिसके कारण भगवान ही बीमार हो गए. काफी उपचार के बाद वह 14 दिनों के बाद ठीक हो सके. इस दौरान ज्येष्ठ पूर्णिमा से अगले 14 दिनों तक वह एकांतवास में रहे और श्रीमंदिर में किसी को दर्शन नहीं दिए. इसी स्मृति में अनासर उत्सव मनाया जाता है. 

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