West Bengal election campaign: बंगाल में भाजपा का मिशन `सोनार बांग्ला`
ऐसा लगता है जैसे बंगाल की जनता से मन बना लिया है, `तुष्टिकरण` के खिलाफ, वोटबैंक की राजनीति के खिलाफ़ बड़े परिवर्तन का.सवाल ये है कि पिछले एक दशक में ऐसे क्या हो गया कि मां-माटी-मानुष के भावनात्मक सूत्र के साथ बंगाल की सत्ता के शीर्ष पर पहुंची ममता के पक्ष में बहती हवा को लेकर संदेह हो रहा है.
कोलकाता :शाह के रोड शो (Amit Shah Road Show) के ज़रिए बंगाल ज़मीन पर बीजेपी (BJP) ने राष्ट्रवाद की हुंकार भरी. ममता (Mamata Banerjee) की राजधानी में मां-माटी-मानुस के आगे सोनार बांग्ला की ये सबसे मजबूत पुकार है. बहुत कुछ रहा होगा कहने को कोलकाता (Kolkata) के इस उमड़े जनसैलाब के दिल में, बहुत दिनों को गुबार दबा रहा होगा कहीं कोलकाता की सड़कों-अट्टालिकाओं पर उमड़े बंगाली जन में. तभी तो ज़ुबां ने बस ये कहा- भारत माता की जय. आप इसे किसी पार्टी का सियासी मिशन कहें, राजनीति का अलग दर्शन कहें या शक्ति प्रदर्शन कहें लेकिन दरअसल ये बंगाली मानुस का बंगाल में बदलाव का सबसे बड़ा ऐलान है राष्ट्रवादी धारा.
ऐसा लगता है जैसे बंगाल की जनता से मन बना लिया है, 'तुष्टिकरण' के खिलाफ, वोटबैंक की राजनीति के खिलाफ़ बड़े परिवर्तन का. शाह का रोड शो भले ही एक किलोमीटर के दायरे में था लेकिन जिस तरह का जन सैलाब शाह की रोड में उमड़ा वो दीगर है और ममता की सियासी महत्वाकांक्षाओं के लिए बड़ी चुनौती. लेकिन सवाल ये है कि पिछले एक दशक में ऐसे क्या हो गया कि मां-माटी-मानुष के भावनात्मक सूत्र के साथ बंगाल की सत्ता के शीर्ष पर पहुंची ममता के पक्ष में बहती हवा को लेकर संदेह हो रहा है.
इसका जवाब है मुस्लिम वोटबैंक को साधने के चक्कर में हिंदुओं की आस्था और परंपराओं तक पर कठोर वार. दूसरा दो दशकों में भी बंगाल को उसी धुरी पर टिकाए रखना जिस पर कभी वामपंथियों घुमाते बंगाल को बिहार से भी पीछे धकेल दिया था.
'तुष्टिकरण' को बंगाल में लगेगा ब्रेक
ममता ने पश्चिम बंगाल (West Bengal) मुसलमान वोटरों (Muslim Voters) को साधने के सिर्फ हिंदुओं के धार्मिक पर्वों पर सरकारी सख्ती का इस्तेमाल नहीं किया बल्कि सरकारी योजनाओं को हिंदू आबादी तक पहुंचाने में भेद भाव किया. बीजेपी इसे लेकर ममता पर सीधे और तीखे हमले करती रही है. ममता ने किस हद तक तुष्टिकरण हिंदू-मुस्लिमों के बीच खाई बढ़ाने का काम किया इसकी बानगी है सरकारी योजनाएं.
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ममता सरकार ने बंगाल के माल्दा, उत्तरी दिनाजपुर, कूच बिहार, नादिया और बीरभूम ज़िलों में विकास परियोजनाओं की शुरुआत की है. दरअसल ये वो ज़िले हैं जहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है. तीन ज़िलों मुर्शिदाबाद (66%), मालदा (51%) और उत्तरी दिनाजपुर (50%) में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी है.
ममता सरकार ने इसी साल जून महीने में 620 विकास परियोजनाओं की शुरुआत की थी. इसमें स्कूल, हॉस्टल, पीने का साफ पानी, स्वास्थ्य सेवाएं, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, जैसी सेवाएं थीं, 620 योजनाओं में से 600 योजनाएं सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाकों में शुरु की गई हैं. ज्यादातर योजनाएं राज्य के अल्पसंख्यक विभाग ने लागू की हैं.
ममता के 'तुष्टिकरण' को जवाब राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद का यही वो सूत्र है जिसमें बंगाल की धरती ने हमेशा से हिन्दुस्तान का नेतृत्व किया है. बीजेपी इसी बांग्ला गौरव और ज्ञान-गान के साथ बंगाल के लोगों से भावनात्मक संबंध बनाने में काफी हद तक कामयाबी होती दिख रही है. इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता के मां-माटी-मानुष के नारे पर बंगाल की जनता ने भरोसा किया था. लेकिन पिछले दो दशकों में बंगाल बहुसंख्यक आबादी इस बात को समझ चुकी है कि वोटबैंक की राजनीति में उसके हितों की कहीं अनदेखी हुई है. बंगाल अब एक नए बदलाव की तरफ देख रहा है.
बीजेपी के दोनों हाथों में बंगाल को देने के लिए बहुत कुछ है. एक हाथ में बांग्ला संस्कृति, परंपरा का मान है तो दूसरे हाथ में विकास की वो धारा है जो यूपी से लेकर एमपी. और असम तक और बीजेपी शासित दूसरे राज्यों में अनवरत बह रही है. बस सवाल यही है कि बीजेपी के 'मिशन-200' सीट को हासिल करने में ये कितना कारगर साबित होती है. वैसे एक बात यहां दीगर है कि बीते लोकसभा चुनावों में जिन 18 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई है उसमें कुल 120 विधानसभाएं आती हैं.
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