नई दिल्लीः Bihar Election खत्म. NDA ने किला फतह कर लिया है. नीतीश CM बन चुके हैं. सब कुछ दोबारा से सेट हो गया. कुछ दिन के Relax के बाद अब निगाहें बंगाल की ओर हैं. पं. बंगाल, भारत का सबसे पूर्वी राज्य, राजनीति के नजरिए से अहम, वामपंथ की जमीन और खुद को धर्मनिरपेक्षता की धुरी मानने वाला राज्य.


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बीते महीनों जब चक्रवाती तूफान आया तो PM Modi ने दौरा किया था. गुरुदेव रवींद्र के प्रति श्रद्धा दिखाई थी. पिछले दिनों JNU में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा अनावृत कर कई निशाने साधे, कितने सधे, इसका जवाब आगे आने वाले दिनों में मिलेगा. 


औवेसी ने दिया है ममता को ऑफर
लेकिन एक सवाल इससे पहले दिख रहा है. हालांकि इस सवाल के लिए परेशान होना चाहिए अभी की CM ममता बनर्जी को. सवाल क्या है बाद में बताते हैं. पहले बताते हैं एक खबर, खबर है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने पं. बंगाल में TMC यानी ममता बनर्जी को साथ में चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है.



कहा है कि BJP को मिलकर हराएंगे. ओवैसी ने ममता के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की पेशकश करते हुए कहा कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने में तृणमूल कांग्रेस की मदद करेगी. 


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ममता के लिए एक बड़ा सवाल है
अब ममता बनर्जी इस पर क्या निर्णय लेती हैं यह उनके ऊपर है. लेकिन एक सवाल उन्हें खुद से तो पूछ ही लेना चाहिए कि क्या सिर्फ BJP को हराने के लिए उन्हें एआईएमआईएम से हाथ मिला लेना ठीक होगा? यही बिल्कुल ऐसा तो नहीं कि एक से लड़ाई के चक्कर में दूसरे को दुकान खोलने के लिए जमीन दे देना.



अपने ही गढ़ में अपने ही सहारे किसी और का किला तैयार करने में मदद करना. CM ममता बनर्जी के जेहन में अगर यह सवाल नहीं आता तो उन्हें बिहार चुनाव के नतीजे एक बार फिर पढ़ लेने चाहिए. अखबारों की सुर्खियों पर सरसरी निगाह डाल लेनी चाहिए. 


ओवैसी को इतना आत्मविश्वास आया कैसे?
आजकल AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी बड़े ही आत्मविश्वास में हैं. उनके आत्मविश्वास की वजह क्या है? वजह है बिहार चुनाव. औवैसी ने बिहार चुनाव में एंट्री ली थी. उन्होंने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट बनाया. इसमें कुल 6 पार्टियां शामिल थीं. RLSP, AIMIM, BSP, समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक), जनतांत्रिक पार्टी (सोशलिस्ट) , सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी थीं. 



औवैसी ने अनुमान लगाया था कि वह कम से कम 10 सीटें ले आएंगें. चुनाव हुआ और उनकी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन कर 5 सीटों पर कब्जा जमाया. औवैसी की उम्मीद से आधी सीटें लेकिन आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए काफी. 


चिराग पासवान को नहीं मिली सीट, औवेसी ले गए पांच
अब इस तथ्य में इस बात पर गौर करना होगा कि यह वही बिहार है जहां केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान की पुरानी और भरोसेमंद पार्टी LJP को एक भी सीट नहीं मिली. LJP की कमान चिराग पासवान के हाथों में थीं.



जनता उन पर भरोसा भी जता रही थी, लेकिन हैदराबाद से आकर औवैसी उसी बिहार में पांच सीट ले गए और चिराग खाली हाथ रह गए. ओवैसी को शुरू से ही वोटकटवा कहा जा रहा था और यही हुआ. 


धर्मनिरपेक्षता पर हावी कट्टरपंथ
अभी तक तो यह तय है कि पं. बंगाल का चुनाव सीधे-सीधे BJP और TMC के बीच है. यानी धर्मनिरपेक्षता और दक्षिणपंथ के बीच है, लेकिन ओवैसी का बढ़ता आत्मविश्वास बता रहा है कि यह कट्ट़रपंथ के भी हावी होने का समय है. अगर ममता और ओवैसी मिलते हैं तो चुनाव धर्मनिरपेक्षता+कट्टरपंथ होगा और पूरी संभावना है कि कट्टरपंथ ममता पर हावी हो जाए. इसे काफी हद तक राज्य के मुस्लिम वोटर भी तय करेंगे. 


ओवैसी की एंट्री से ममता को कितना नुकसान
बंगाल चुनाव में एआईएमआईएम की एंट्री को टीएमसी खतरे के रूप में देख रही है. दरअसल इस बार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला BJP और TMC के बीच होना तय है. वहीं बंगाल कांग्रेस और लेफ्ट की भी लड़ाई ममता से ही है. ऐसे में अगर ओवैसी की पार्टी बंगाल में मजबूती से उतरती है तो इसका सीधा नुकसान ममता को ही झेलना पड़ सकता है.



हालांकि औवेसी का यह ऑफर ऐसे समय पर आया है जब ममता भी पूरी तरह से इस मूड में नहीं दिख रही हैं.  हाल ही में ममता बनर्जी ने एआईएमआईएम पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला बोलते हुए कहा था कि कुछ बाहरी लोगों को परेशान और आतंकित करेंगे. इसी के साथ उन्होंने राज्य की जनता से बाहरियों का विरोध करने का आग्रह किया था. 


ओवैसी का स्टैंड क्या होगा? 
बिहार चुनाव के बाद ओवैसी खुद को किंग मेकर के तौर पर देख रहे हैं. अभी उन्होंने CM ममता को साथ आने का ऑफर दिया है. यह उनकी कूटनीतिक चाल है. जिसके तहत वह धर्मनिरपेक्ष दलों को भाजपा का डर दिखाकर अपनी ओर बुला रहे हैं. उनके साथ खड़े होने का दावा कर अपनी शरण के भरोसे शिकंजे में ले रहे हैं, ताकि आगे कट्टरपंथ को राजनीतिक रुख भी दे सकें. बिहार में सफल होने के बाद उनकी यही मंशा पं. बंगाल में है. 


ममता की दोहरी चिंता
पश्चिम बंगाल में 30 फीसदी मुसलमान हैं और ममता बनर्जी 2016 के चुनाव में जीत हासिल कर अपनी शक्ति साबित कर चुकी हैं. हालांकि ओवेसी ने पिछले साल ही ऐलान किया था कि वह 2021 के चुनाव में पं. बंगाल में एंट्री लेंगे. बंगाल में भाजपा के बढ़ते ग्राफ और ओवैसी के बंगाल में 2021 विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान ने TMC प्रमुख और सीएम ममता बनर्जी की चिंता को बढ़ा दिया था. इस तरह से ममता बनर्जी दोतरफा चुनौतियों में घिरी थीं. 



लेकिन अब ओवैसी का ऑफर, ममता की हां या ना चुनाव में जो भी रंग दिखाए, लेकिन यह तो सामने दिख रहा है कि कट्टरपंथ धर्मनिरपेक्षता पर हावी हो रहा है और यह CM ममता के लिए कतई अच्छी खबर नही है. 


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