नई दिल्लीः बंगाल की सियासी जंग में ओवैसी की एंट्री पर ममता दीदी आपे से बाहर हैं. तुष्टिकरण की राजनीति के पैमाना ओवैसी की तिरछी नज़र दीदी के बर्दाश्त के बाहर है. वो वोट बैंक जिसको साधने के लिए ममता दी ने क्या क्या नहीं किया. 'जय श्रीराम' के नारे लगाने वालों को धमकाया. मोहर्रम को लेकर दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई और मस्जिद के इमामों के 2500 रूपए महीने का वजीफा तक दिया.


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लेकिन सारे किए कराए पर पानी फेरने के इरादे से सीनियर ओवैसी दीदी के गढ़ पर हमला बोलने को तैयार हैं. तल्खी तलवार की धार की तरह उतर रही है. बंगाल की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर रस्साकशी दीदी औऱ भाईजान के बीच है. सवाल ये है कि मुस्लिम वोटबैंक साधने के लिए दीदी के पास क्या है और हैदराबाद वाले दादा के पास क्या है?


 मुस्लिम वोटबैंक के लिए दीदी 'तुष्टिकरण' के भरोसे हैं तो ओवैसी धर्म के नाम पर अपने ज़हरीले भाषणों के भरोसे. मुस्लिम वोट बैंक पर नज़र गड़ाकर  बंगाल में ममता के लिए ओवैसी ने बड़ी मुश्किल खड़ी की है. जिस वोट बैंक के भरोसे ममता बीजेपी के विजय रथ रोकने का ख्वाब देख रही थीं.



अब उसी वोटबैंक की रेड कार्पेट को दीदी के पैरों के नीचे से खींच लेने की फिराक में हैं ओवैसी. ज़ाहिर है अगर ओवैसी इसमें कामयाब हुए तो और मुस्लिम वोटर ममता और ओवैसी के बीच  में बंटा तो दीदी का बंटाधार तय है. 


इस्लामिक कट्टरपंथी उभार के भरोसे ओवैसी


राम मंदिर से लेकर तीन तलाक और फिर CAA तक पर असदुद्दीन ओवैसी ज़हर का भरा पूरा भंडार साथ लिए चलते हैं. ये ज़हर हिंदू-मुस्लिम में भेद करने और वोटबैंक को साध लेने में धीरे-धीरे सिद्ध हो रहा है जो यकीनन देश के लिए अलार्मिंग है. NRC-NPR के मुद्दे पर बंगाल के मुसलमानों को भड़काकर तृणमूल कांग्रेस अब तक राजनीति करती रही है.



अब ओवैसी की नज़र अपने फैलाए ज़हर के बाद मुस्लिम वोटबैंक पर हुए इसके असर पर है. बंगाल में मुस्लिमों के लिए, ओवैसी AIMIM को एक विकल्प बनाना चाहते हैं.  ओवैसी चाहते हैं मुस्लिमों की नुमाइंदगी सिर्फ मुस्लिम नेता करे इससे ओवैसी कट्टरपंथी राजनीति की गाढ़ी लकीर खींचना चाहते हैं.


बिहार चुनावों में AIMIM को मिली जीत से बढ़ा हौसला. हाल के बिहार चुनावों में बंगाल से लगे सीमांचल ने ओवैसी की ज़हरीली राजनीति को ज़मीन दी है. 


पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बैंक 


पश्चिम बंगाल में 28 % मुस्लिम आबादी है. 294 सीटों वाली विधानसभा में 59 मुस्लिम विधायक हैं. 59 मुस्लिम विधायकों में 25 तृणमूल कांग्रेस के और 15 कांग्रेस के विधायक हैं, जबकि वामदलों के कुल 17 मुस्लिम विधायक हैं. 2016 के चुनावों में मुस्लिम वोटबैंक ने तृणमूल कांग्रेस को 74 सीटों पर जीत दिलाई थी. 



धर्म के नाम पर भड़काऊ भाषण देने की आज़ादी ने ओवैसी को झूठी धर्मनिरपेक्षता दी है. निज़ामी और इस्लामिक कट्टरपंथ का मनोवैज्ञानिक प्रयोग ओवैसी को खूब आता है. बिहार के सीमांचल में अपनी पैठ बनाने वाला नेता अब बंगाल की धरती पर कट्टरपंथ का ऐसा ही प्रयोग करने के लिए मचल रहा है. ओवैसी की मुस्लिम सियासत के लिए बंगाल की ज़मीन गणित काफी फेवरेबल दिखता है. और यही दीदी को को परेशान कर रहा है. और इसलिए ममता, ओवैसी पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप लगा रही हैं. 



ममता दीदी की राजनीति में एक बड़ा मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों का भी रहा है. जिसे लेकर बीजेपी ममता को घेरती रही है. ये तबका ममता का बड़ा वोटर है. धर्म के नाम ये हिस्सा बड़ी आसानी से ओवैसी की तरफ घूम सकता है. पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी करीब 28 फसदी है मतलब बंगाल की कुल जनसंख्या में 2.5 करोड़ मुस्लिम आबादी हैं. एक बात खास ये भी है कि 1951 में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी महज 19 फीसदी थी. बीजेपी इसे लेकर पूर्ववर्ती सरकारों और अब तृणमूल कांग्रेस पर निशाना साधती है. वो सीधे आरोप लगाती है कि ममता ने अपना मुस्लिम वोट बैंक मजबूत करने को लेकर बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ कराई है. इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है. 


 


पश्चिम बंगाल के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा करते हैं कि भारत में कुल दो करोड़ मुसलमान घुसपैठिए मौजूद हैं. जिसमें से एक करोड़ पश्चिम बंगाल में ही हैं. उनके मुताबिक़, "ये सभी दो करोड़ लोग बांग्लादेश से भारत आए हैं जिनकी आधी आबादी अकेले पश्चिम बंगाल में है जबकि बाकी आबादी पूरे देश में है.


बंगाल ही नहीं देश भर में फैले हैं बांग्लादेशी मुस्लिम


मामला सिर्फ बंगाल का नहीं है बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ ने कई राज्यों की डेमोग्राफी में बड़े बदलाव किए हैं.  बांग्लादेशी मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी ने देश के कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन को बढ़ाया है. लेकिन बात इतनी भर नहीं है इन मुस्लिमों का कट्टरपंथी जमातों से कनेक्शन देश के भीतर की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है.



पिछले दिनों ही NIA पश्चिम बंगाल से करीब आधा दर्ज़न इस्लामिक आतंकियों की गिरफ्तारी की थी जो ISIS की विचारधारा से प्रभावित थे. वोटबैंक की राजनीति ने ऐसे गंभीर मामलों मे देश के सुरक्षा हितों की घोर अनदेखी की है इसमें कोई शक नहीं. कई ज़िले बंगाल में ऐसे है जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं वहां हिंदुओं के लिए सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है. बंगाल के 3 ज़िलों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. 


मुर्शिदाबाद- 66%
मालदा- 51%
उत्तरी दिनाजपुर- 50%


ज़ाहिर है ऐसे  ज़िलों में अगर बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की खोज कोई आसान काम नहीं है, बल्कि ये जोखिम भरा भी है. क्योंकि वोटबैंक की राजनीति कभी भी राज्य के पुलिसिया तंत्र को  बड़े पैमाने सख्त कार्रवाई की इज़ाज़त नहीं देती. लेकिन इस बार ममता का गढ़ हिलता दिख रहा है.



टीएमसी के किलेदार एक-एक कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. तो दूसरी तरफ तृणमूल के मुस्लिम वोटरों के भी खिसक जाने के आसार बन रहे हैं. क्योंकि कट्टरपंथी लाइन पर ही मुस्लिम वोटबैंक को अपने हक में पलटा जाता रहा है. पहले लेफ्ट ने किया, फिर ममता ने किया अब ओवैसी बंगाल मिशन पर हैं. ये राष्ट्रवादियों के लिए एक सुखद संकेत हो सकता है.


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