50 years of vijay diwas: भारत के सामने घुटनों पर था Pakistan, अवाक था अमेरिका
आज भारत जिस विजय दिवस के 50 साल पूरे होने की वर्षगांठ मना रहा है वह भुट्टो की फांसी से ठीक 8 साल पहले का समय था. दिसंबर का कंपकंपी भरा दिन, लेकिन भारतीय सेना में एक अलग ही गर्मी थी. जानिए क्या हुआ था उस दिन
नई दिल्लीः PM Modi जब राजधानी दिल्ली से 'विजय ज्योति यात्रा' को रवाना किया तो अग्नि की इस शिखा में 50 साल पहले का वह ताप नजर आया जो ताप पाकिस्तान ने महसूस किया था, जे ताप अमेरिका के राष्ट्रपति रहे रिचर्ड निक्सन के चेहरे पर शिकन बन कर रह गया और जिस ताप ने सारे विश्व को महसूस कर दिया कि दक्षिण एशिया में बसने वाले तीन सागरों से घिरे इस प्रायद्विपीय खंड में रहने वालों की धमनियों में पानी नहीं लहू बहता है.
यह ताप आंखों में आंखे डालकर शान से बात करने का था. यह ताप विनाश नहीं बल्कि नया सृजन करने का था.
तो क्या थी कहानी इस ताप की..
इस ताप की कहानी से पहले एक तथ्य समझते हैं. यह कोई 80 का दशक था. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में हमेशा की तरह उथल-पुथल मची हुई थी. वहां तख्तापलट हो गया और प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी जा रही थी. पाकिस्तानी आवाम तो कतई ऐसा नहीं चाहती थी, लेकिन अहसानफरामोश के हाथों कठपुतली बनी जम्हूरियत कर भी क्या सकती थी.
लेकिन मन में एक मलाल जरूर था. मलाल था इंदिरा के सत्ता में न होने का. 4 अप्रैल 1979 में जब भुट्टो को फांसी दी गई तो पाकिस्तानियों को लगता था कि इंदिरा सत्ता में होतीं तो ऐसा न होने देतीं... इंदिरा ऐसे में क्या करतीं यह और बात है, लेकिन कम से कम पाकिस्तानियों को ऐसा लगता था.
भारत मना रहा विजय दिवस के 50 साल
आज भारत जिस विजय दिवस के 50 साल पूरे होने की वर्षगांठ मना रहा है वह भुट्टो की फांसी से ठीक 8 साल पहले का समय था. दिसंबर का कंपकंपी भरा दिन, लेकिन भारतीय सेना में एक अलग ही गर्मी थी. जिस ताप की बात अभी ऊपर की गई वह ऐसा ही था कि हाड़ कंपाने वाली हिमालयी सर्द हवा को भी लू में बदल देने की कूव्वत रखता था. दृश्य कुछ ऐसा था कि पाकिस्तान भारत के सामने घुटनों पर था. मुल्क के दो टुकड़े हो ही चुके थे.
अमेरिका खीझ कर रह गया और चीन ने सन्नाटा साध लिया. इन सबके बीच तब की पीएम रही इंदिरा गांधी ने गर्व से सिर उठाया और कहा कि हमारी योजना पाकिस्तान के हिस्सों पर कब्जा करना नहीं है. पड़ोसी मुल्क ने शांति भंग करने की हिमाकत की, बस उसका जवाब दिया जा चुका है. इतिहास में यह तारीख 16 दिसंबर 1971 के तौर पर दर्ज है.
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इस गर्वीली तारीख के पीछे का संघर्ष जानिए
यह 16 दिसंबर की तारीख का गर्व एक झटके में नहीं आया. इसके पीछे 13 दिन का शौर्य और साहस भरा निर्णय था. वह तारीख थी 3 दिसंबर 1971. जब भारत और पाकिस्तान के भीषण युद्ध की शुरुआत हुई.
1971 के इस युद्ध की शुरुआत पूर्वी पाकिस्तान यानि आज के बांग्लादेश के कारण हुई थी. 3 दिसंबर, 1971 में पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमले कर दिए. इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के सपोर्ट के लिए तैयार हो गई.
1970 में पाकिस्तान में हुए थे चुनाव
इस विस्फोटक रवैये के पीछे वजह थी कि 1970 में पाकिस्तान में हुए चुनाव, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग ने जीत हासिल कर सरकार बनाने का दावा किया. जुल्फिकार अली भुट्टो इस बात से सहमत नहीं थे, इसलिए उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया था.
ऐसे में हालात इतने ज्यादा खराब हो गए कि सेना की मदद लेना पड़ी. तब अवामी लीग के शेख मुजीबुर रहमान जो कि पूर्वी पाकिस्तान के बड़े नेता थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और इसी के साथ पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच संबंध खराब हो गए.
पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में तनाव
विवाद बढ़ने के बाद पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन शुरू कर दिया. भारत में उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी. पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी भारत में शरण लेने के लिए आए थे तो उन्हें इंदिरा गांधी की सरकार ने उनकी सहायता की.
भारत में तब 10 लाख लोगों ने शरण ली थी. पश्चिमी पाकिस्तान की दमनकारी नीतियों के चलते भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की मदद की और भारतीय फौज ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी.
पाकिस्तान को था अमेरिका का गुमान
इस बीच तस्वीर में उभर कर आया अमेरिका. पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाया गया था. लेकिन अंदर ही अंदर पाकिस्तान इस गुमान में था कि अमेरिका उसके साथ है. तब के थलसेना अध्यक्ष रहे सैम मानेकशॉ की मौजूदगी में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के साथ बैठक हुई.
इस बैठक में इंदिरा ने साफ कर दिया कि अगर अमेरिका पाकिस्तान को नहीं रोकेगा तो भारत पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाई करेगा. यह वह समय था जब भारत ने साफ कर दिया कि वह सीमा पर किसी भी तरह से शांति भंग नहीं होने देगा. दरअसल, इसके कारण भारत के कई राज्यों में भी शांति भंग हो रही थी.
पाकिस्तान ने बना ली भारत पर हमले की योजना
अभी भारत सिर्फ मुंह से कह ही रहा था कि इतने में गुमान में भरे पाकिस्तान भारत पर ही हमले की योजना बना ली. पाक सेना के लड़ाकू विमानों ने नवंबर की आखिरी हफ्तों में भारतीय हवाई सीमा में घुसपैठ कर दी.
तब भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी. लेकिन पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहिया खान ने 10 दिन के अंदर युद्ध की धमकी दे दी. भारत के कुछ शहरों में 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने बमबारी शुरू कर दी. इसी के साथ भारत पाक में युद्ध शुरू हो गया. भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के कई अहम ठिकानों को बर्बाद कर दिया.
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3900 भारतीय सैनिक हुए शहीद
4 दिसंबर, 1971 को भारत ने ऑपरेशन ट्राईडेंट शुरू किया. इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में समुद्र की ओर से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर दी और दूसरी तरफ पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का भी मुकाबला किया.
भारत की नौसेना ने 5 दिसंबर, 1971 को कराची बंदरगाह पर बमबारी करके उसे पूरी तरह से तबाह कर दिया. भारत की इसी ऐतिहासिक जीत के उपलक्ष्य में 16 दिसंबर को 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. वर्ष 1971 के युद्ध में तकरीबन 3900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए थे.
अमेरिका नहीं करता था भारत को पसंद
यह भी एक बड़ा तथ्य है कि तब अमेरिकी प्रशासन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पसंद नहीं करता था. 1971 में जब ऐसा लगने लगा कि भारत पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई कर सकता है, तभी इंदिरा गांधी नवंबर महीने में अमेरिका पहुंचीं. निक्सन ने तय कर लिया कि इंदिरा को कड़ी चेतावनी देंगे.
मुलाकात से पहले की शाम राष्ट्रपति निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर की बातचीत में इंदिरा के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया. बताया जाता है कि निक्सन ने उन्हें "ओल्ड विच" कहा तो किसिंजर ने भारतीयों को "बास्टर्ड". अगले दिन की मुलाकात में इंदिरा को कड़ी चेतावनी दी जाने वाली थी.
निक्सन से मुलाकात नहीं रही अच्छी
फिर इसके बाद मुलाकात का वक्त आया. मुलाकात की शुरुआत ही गड़बड़ रही. निक्सन ने हावभाव से जैसी शुरुआत की, उसका वैसा ही जवाब इंदिरा से मिला. इंदिरा ने पूरी मुलाकात में निक्सन की कोई परवाह ही नहीं की. निक्सन ने चेतावनी दी,
''अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की हिम्मत की तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे. भारत को पछताना होगा.'' इंदिरा ने ऐसी किसी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इसके बाद भारत ने पाकिस्तान का माकूल जवाब दिया और निक्सन सिर्फ अंदर ही अंदर बिलबिलाते रह गए.
16 दिसंबर उसी गर्वीली और विजय की सुनहरी शाम है. इस शाम के लिए उन शहीदों को श्रद्धांजलि जिन्होंने इतिहास के पन्नों में इस दिन के नाम पर अपने लहू से विजय दिवस लिख दिया.
देश के विभिन्न भागों में जाएगी मशाल
रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया कि पीएम मोदी चार विजय मशाल को राष्ट्रीय समर-स्मारक पर लगातार जलती रहने वाली ज्योति से प्रज्ज्वलित करेंगे और फिर इन्हें रवाना करेंगे. विजय मशाल को 1971 के युद्ध के परमवीर चक्र और महावीर चक्र विजेताओं के गांवों सहित देश के विभिन्न भागों में ले जाया जाएगा.
इसके साथ ही परमवीर चक्र और महावीर चक्र विजेताओं के गांवों के साथ-साथ 1971 के युद्ध स्थलों की मिट्टी को नई दिल्ली के राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में लाया जाएगा.
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