नई दिल्लीः 31 दिसंबर 1971. यह उस साल का आखिरी दिन था. सुबह-सुबह जब घरों में अखबार पहुंचा तो वह कुछ भीग सा गया था. यह उस महीने पड़ने वाली शीत का असर हो सकता था. लेकिन नहीं.. यह उस एक खबर का असर था जो फ्रंट पेज पर टॉप पर थी. खबर थी विज्ञान को आकाश की ऊंचाइयां देने वाले विक्रम साराभाई साराभाई नहीं रहे.
अखबार की इन दो लाइनों को जिसने भी पढ़ा, वह आसमान की ओर निहारने को मजबूर हो गया. अब लगता था कि जमीं का यह सितारा जब एक दिन पहले विदा ले रहा होगा तो आसमान भी जार-जार रो रहा होगा. नतीजा...ओस में लिपटी सुर्खियां...
30 दिसंबर 1971 को महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने आखिरी सांसें लीं. लेकिन इसके पहले कई सालों की अनवरत मेहनत से उन्होंने देश को वह पंख दिए जिनके सहारे भारत आज भी ऊंचा और ऊंचा उड़ता जा रहा है. भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के जनक, ISRO की प्रणाली के संस्थापक, कई अन्य क्षेत्रों के भी संगठनों की स्थापना करने वाले विक्रम अंबालाल साराभाई की बुधवार को पुण्य तिथि है. इस मौके पर जानिए, कैसा रहा उनका जीवन सफर
जीवन के बारे में
विक्रम अंबालाल साराभाई. यही पूरा नाम था उनका. 12 अगस्त 1919 में गुजरात के अहमदाबाद में जन्मे साराभाई का परिवार शिक्षा के प्रति बहुत जागरूक था. एक समृद्ध जैन परिवार में जन्में साराभाई के घर उस वक्त के विभिन्न क्षेत्रों के ख्याति प्राप्त लोग आया करते थे.
उनके व्यक्तित्व का बहुत असर बालक विक्रम पर पड़ा. उनके पिता का नाम श्री अम्बालाल साराभाई और माता श्रीमती सरला साराभाई उनकी विलक्षण प्रतिभाओं को समझने लगे थे.
1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की
विक्रम साराभाई ने अहमदाबाद में ही इंटरमीडिएट विज्ञान में पढ़ाई की. वे 1937 में वे कैम्ब्रिज (इंग्लैंड) चले गए जहां 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की. द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर वे भारत लौट आए और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी करने लगे जहां वह महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन के निरीक्षण में ब्रह्माण्ड किरणों पर अनुसन्धान करने लगे.
साराभाई ने लिए 86 अनुसंधान लेख
डॉ॰ साराभाई में एक प्रवर्तक वैज्ञानिक, भविष्य द्रष्टा, औद्योगिक प्रबंधक और देश के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए संस्थाओं के परिकाल्पनिक निर्माता का अद्भुत संयोजन था. उनमें अर्थशास्त्र और प्रबन्ध कौशल की अद्वितीय सूझ थी. उन्होंने किसी समस्या को कभी कम कर के नहीं आंका. उनका अधिक समय उनकी अनुसन्धान गतिविधियों में गुजरा और उन्होंने अपनी असामयिक मृत्युपर्यन्त अनुसन्धान का निरीक्षण करना जारी रखा. डॉ॰ साराभाई ने स्वतन्त्र रूप से और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 86 अनुसन्धान लेख लिखे.
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष का पद संभाला
डॉ॰ होमी जे. भाभा की जनवरी, 1966 में मृत्यु हो गई. इसके बाद डॉ॰ साराभाई ने परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार संभाला. साराभाई ने सामाजिक और आर्थिक विकास की विभिन्न गतिविधियों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में छिपी हुई व्यापक क्षमताओं को पहचान लिया था. इन गतिविधियों में संचार, मौसम विज्ञान, मौसम संबंधी भविष्यवाणी और प्राकृतिक संसाधनों के लिए अन्वेषण आदि शामिल हैं.
डॉ॰ साराभाई द्वारा स्थापित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद ने अंतरिक्ष विज्ञान में और बाद में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अनुसंधान का पथ प्रदर्शन किया. साराभाई ने देश की रॉकेट प्रौद्योगिकी को भी आगे बढाया. उन्होंने भारत में उपग्रह टेलीविजन प्रसारण के विकास में भी अग्रणी भूमिका निभाई.
28 साल की उम्र में की PRL की स्थापना
डॉ.साराभाई भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक के रूप में जाने जाते थे; वे एक महान संस्था बिल्डर थे और विविध क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थानों को स्थापित या स्थापित करने के लिए मदद की. उन्होंने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
1947 में कैम्ब्रिज से स्वतंत्र भारत में लौटने के बाद, उन्होंने अहमदाबाद में अपने घर के पास परिवार और दोस्तों के द्वारा नियंत्रित चैरिटेबल ट्रस्ट को एक शोध संस्था को दान करने के लिए राजी किया. इस तरह विक्रम साराभाई ने, 11 नवंबर, 1947 को अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) की स्थापना की.
उस समय वे केवल 28 वर्ष के थे. साराभाई निर्माता और संस्थाओं के जनक थे और पीआरएल इस दिशा में पहला कदम था. विक्रम साराभाई ने 1966-1971 तक पीआरएल में कार्य किया.
इन संस्थाओं के संस्थापक हैं साराभाई
- भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद
- भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), अहमदाबाद
- कम्यूनिटी साइंस सेंटर, अहमदाबाद
- कला प्रदर्शन के लिए दर्पण अकादमी, अहमदाबाद (अपनी पत्नी के साथ)
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम
- अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, अहमदाबाद (साराभाई द्वारा स्थापित छह संस्थानों/ केन्द्रों के विलय के बाद यह संस्था अस्तित्व में आई)
- फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर), कलपक्कम
- परिवर्ती ऊर्जा साइक्लोट्रॉन परियोजना, कलकत्ता
- भारतीय इलेक्ट्रॉनकी निगम लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद
- भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (यूसीआईएल), जादुगुडा, बिहार
कई सम्मानों से सम्मानित हैं साराभाई
तिरुवनन्तपुरम (केरल) के कोवलम में 30 दिसम्बर 1971 को डॉ॰ साराभाई का देहान्त हो गया. इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरुवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बद्ध अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया.
यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा है. 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि 'सी ऑफ सेरेनिटी' पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा. भारतीय डाक विभाग द्वारा उनकी मृत्यु की पहली वरसी पर 1972 में एक डाक टिकट जारी किया गया. उन्हें शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार (1962) 2.पद्मभूषण (1966) 3.पद्मविभूषण, मरणोपरांत (1972) से भी सम्मानित किया गया है.
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