राम मंदिर निर्माण सिर्फ एक जनभावना का परिणाम नहीं है, ये करोड़ों लोगों की कड़ी तपस्या, मेहनत, चुनौती और संघर्ष के दम पर संभव हो पाया है. लेकिन क्या आपने कभी के के नायर का नाम सुना है? आपको हम उस शख्सियत के संघर्ष से रूबरू करवाते हैं, जिसने राम मंदिर निर्माण के लिए उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आदेश को भी ठेंगा दिखा दिया. वो शख्स सिर्फ एक जिला मजिस्ट्रेट था, जिसका नाम है के के नायर


के के नायर के संकल्प का नतीजा है राम मंदिर


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उस शख्सियत यानी के के नायर का संघर्ष वाकई अमूल्य है, क्योंकि केरल में पैदा होने वाले कंडांगलथिल करुणाकरण नायर, जिसे केके नायर के नाम से जाना जाता है. उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए वर्ष 1949 में ही पूरी कांग्रेस और देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू से दुश्मनी मोल ली. अयोध्या के DM पद की नौकरी चली गई. लेकिन वो कभी रुके नहीं.



राम मंदिर निर्माण के लिए कई कारसेवकों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी. हर किसी की सिर्फ यही चाहत थी कि रामलला तंबू में नहीं, बल्कि भव्य मंदिर में विराजमान हों. इस सपना अब साकार होने जा रहा है. के के नायर ने इस सपने को साकार करने में काफी अहम भूमिका निभाई. उन्होंने राजनीतिक दबावों को ठेंगा दिखाते हुए अपनी नौकरी को त्याग दिया और काफी संघर्ष किया.


..और फिर अयोध्या में बतौर DM हुई नियुक्ति


केरल में जन्मे के के नायर ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इंग्लैंड चले गए और मगज 21 वर्ष की आयु में ही उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा क्लीयर कर ली. इसके बाद 1 जून सन् 1949 में उन्हें अयोध्या (फैजाबाद) के उपायुक्त सह जिला मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया था. नायर के फैसले ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया.


दरअसल, अयोध्या में नियुक्ति के तुरंत बाद के के नायर को यूपी सरकार की तरफ से एक पत्र मिला था. जिसमें उन्हें राम जन्मभूमि मुद्दे पर एक रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था. उन्होंने इस रिपोर्ट के प्रस्तुत करने के लिए अपने सहायक को भेजा, जिनका नाम गुरु दत्त सिंह था. गुरु दत्त सिंह ने साल 1949 के अक्टूबर महीने की 10 तारीख को अपने रिपोर्ट के जरिए राम मंदिर निर्माण की सिफारिश कर दी.



गुरु दत्त सिंह ने लिखा, "हिंदू समुदाय ने इस आवेदन में एक छोटे के बजाय एक विशाल मंदिर के निर्माण का सपना देखा है. इसमें किसी तरह की परेशानी नहीं है. उन्हें अनुमति दी जा सकती है. हिंदू समुदाय उस स्थान पर एक अच्छा मंदिर बनाने के लिए उत्सुक है, जहां भगवान रामचंद्र जी का जन्म हुआ था. जिस भूमि पर मंदिर बनाया जाना है, वह नजूल (सरकारी भूमि) है."


नेहरू के आदेश को भी के के नायर ने दिखाया ठेंगा


उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सियासी फेरबदल को देखते हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन CM गोविंद वल्लभ पंत को निर्देश दिया और फिर सीएम पंत ने हिंदुओं को राम मंदिर से बेदखल करने की कोशिश की. लेकिन के के नायर अड़े रहे और सीएम के फैसले को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने इस मूर्तियों को वहां से हटाने से ये कहकर मना कर दिया कि हिंदू उस स्थल पर पूजा कर रहे हैं. नायर के इस रवैये को देखते हुए सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने जिला मजिस्ट्रेट के पद से निलंबित कर दिया.


जिसके बाद के के नायर ने उस वक्त की कांग्रेस सरकार के खिलाफ अदालत का रुख किया और अदालत की तरफ से सरकार को तगड़ा झटका लगा. कोर्ट ने नायर के पक्ष में फैसला सुनाया. नायर को उनका पद वापस मिला, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया. निश्चित तौर पर इसके पीछे की वजह नेहरू के खिलाफ नाराजगी थी.



नेहरू के रवैये और के के नायर के साहस को देखते हुए लोग उनके मुरीद हो गए. हिन्दुओं की आस्था का सम्मान करने वाले के के नायर ने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया और वो देखते ही देखते वो लाखों लोगों के प्रिय हो गए. उनके व्यवहार के चलते लोग उन्हें "नायर साहब" भी पुकारते थे.


इस्तीफे के बाद लोगों के नेता बन गए नायर साहब


के के नायर ने उस वक्त ICS पद से इस्तीफा देने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट से एक वकील के रूप में अभ्यास करना शुरू कर दिया. नायर साहब और उनका परिवार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए जनसंघ में शामिल हो गए. वर्ष 1952 में उनकी पत्नी शकुंतला नायर उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य के तौर पर चुनाव में विजय हासिल किया.


इसके बाद वर्ष 1962 में के के नायर और उनकी पत्नी दोनों ने ही लोकसभा का चुनाव जीता. सबसे खास बात तो ये है कि उनके ड्राइवर को भी उत्तर प्रदेश से विधान सभा का सदस्य चुना गया था. लेकिन इमरजेंसी के वक्त यानी आपातकाल के काले दिनों के दौरान नायर साहब और उनकी पत्नी शकुंतला नायर को गिरफ्तार भी किया गया था.


और दुनिया छोड़कर चले गए के के नायर


वो दिन 7 सितंबर 1977 था, जब केके नायर ने दुनिया को अलविदा कह दिया. नायर साहब ने अपना पूरा जीवन राम मंदिर के लिए समर्पित कर दिया. नायर साहब ने जो कुछ भी किया उसके चलते ही आज ये राम मंदिर का सपना साकार हो रहा है. 


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के के नायर ने जिस आंदोलन को रफ्तार दिया था, उस राम जन्मभूमि आंदोलन को लालकृष्ण आडवाणी, अशोक कुमार, कल्याण सिंह, विनय कटियार और उमा भारती जैसे बड़े नेताओं ने बाद में जारी रखा. नायर साहब के योगदान को कभी भूला नहीं जा सकता है, क्योंकि उनके संघर्ष का ही नतीजा है कि सैकड़ों वर्षों बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का स्वप्न साकार होने जा रहा है.


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