Dev Deepawali: जब धरती पर आकर भोलेनाथ की पूजा करते हैं सभी देवता
मनुष्यों की दिवाली से एक पक्ष (15 दिन) बाद देवताओं की दीपावली होती है. जब सभी देवी-देवता अपने लोकों से उतर कर धरती पर आते हैं और भगवान शिव की उपासना करते हैं. इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा के इस दिन को देव दीपावली के नाम से जाना जाता है.
वाराणसी: आज यानी कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर भगवान शिव की नगरी काशी में अनूठा नजारा होता है. पतित पावनी गंगा जी के घाटों पर दिए सजाए जाते हैं. जिनकी झिलमिल पंक्तियां गंगाजल में अद्भुत दृश्य उत्पन्न करती हैं.
यह दृश्य इतना अलौकिक होता है. जैसे लगता है समस्त देवतागण धरती पर उतर आए हों.
काशी के लिए देव दीपावली बड़ा उत्सव
काशी यानी बनारस भगवान शिव की नगरी है. यहां कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर अद्भुत उत्साह देखा जाता है. कहते हैं कि काशी का स्थान धरती से उपर है. यह स्वयं भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी हुई नगरी है.
काशी नगरी में भगवान विश्वेश्वर और माता अन्नपूर्णा साक्षात् निवास करते हैं. जिनकी उपासना के लिए देव दीपावली के दिन समस्त देवता धरती पर पधारते हैं. पूरी रात देवी देवता भगवान शिव का ध्यान पूजन करते हैं औऱ प्रात: काल में विदा हो जाते हैं. उन देवताओं के स्वागत में मनुष्य गण दीपक प्रज्जवलित करते हैं.
महादेव को धन्यवाद देने आते हैं देव गण
देव दीपावली के दिन समस्त देवी देवता भगवान शिव को धन्यवाद देने के लिए धरती पर आते हैं. क्योंकि आज ही दिन भोलेनाथ ने अत्यंत कठिन युद्ध में विजय प्राप्त की थी. जिसकी वजह से समस्त देवी देवताओं की उपासना फिर से समस्त लोगों में शुरु हो पाई. अन्यथा धरती पर देवताओं की उपासना समाप्त हो चुकी थी. सभी तरफ अनैतिकता और नास्तिकता का साम्राज्य हो गया था.
मनुष्यों और दूसरे प्राणियों द्वारा देवताओं की उपासना बंद कर दिए जाने की वजह से सभी की शक्ति क्षीण हो गई थी. केवल महादेव ही शक्तिशाली बचे थे. क्योंकि उनकी शक्ति का केन्द्र ध्यान साधना के रुप में उनके अंदर सन्निहित है. ना कि केवल मनुष्यों की भक्ति.
लेकिन बाकी देवताओं को कष्ट से बचाने और सृष्टि को सुचारु रुप से चलाने के लिए श्री शिव शंभू आगे आए और उनके कष्ट का कारण बने त्रिपुरों को खत्म किया.
त्रिपुरों में स्थित असुर थे देवताओं की चिंता का कारण
भगवान कार्तिकेय के नेतृत्व में सेना का गठन करके देवताओं ने तारकासुर का वध कर दिया था. जिसके बाद उसके तीन बेटों तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष ने ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त करके अंतरिक्ष में घूमने वाली तीन अद्भुत नगरियों का निर्माण किया. यह काफी हद तक विशाल एलियन शिप जैसी रचना थी.
- तारकाक्ष ने सोने की नगरी का निर्माण किया.
- कमलाक्ष ने चांदी की नगरी का निर्माण किया.
- विद्युन्माली ने लोहे की नगरी का निर्माण किया
इन तीनों ने अपने विशाल यानों में देवताओं के विरोधी असुरों को इकट्ठा किया. यह एक तरीके का मूविंग प्लैनेट थे. जो कि मन की गति से किसी भी स्थान पर पहुंच सकते थे. यह यान कभी भी नष्ट नहीं किए जा सकते थे. क्योंकि इन्हें नष्ट करने के लिए इन सभी पर एक साथ प्रहार करना जरुरी था. जो कि बेहद मुश्किल कार्य था.
ब्रह्मा जी ने तीनों असुरों (तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष) को वरदान दिया था कि असंभव रथ पर सवार, असंभव बाण से बिना क्रोध किए जब कोई उन तीनों के यानों पर एक साथ प्रहार करेगा तभी उनका विनाश होगा. जो कि अपने आप में एक असंभव कृत्य था.
इन त्रिपुर यानों पर सवार असुर देवताओं के डर से मुक्त होकर अजेय हो गए. उन्होंने पूरी दुनिया में देवताओं की उपासना बंद करवा दी. जिससे देवता निर्बल होते चले गए. यह तीनों असुर भाई क्षण भर में किसी भी स्थान पर पहुंच जाते थे और वहां जुल्म करते थे.
देवताओं को हासिल हुई भगवान शिव की मदद
यह तीनों असुर भाई भगवान शिव के भी भक्त थे. जिसकी वजह से भोलेनाथ उनपर प्रसन्न रहते थे. इन तीनों का विनाश सिर्फ वही कर सकते थे. तब भगवान विष्णु के आदेश पर नारद जी ने तीनो भाईयों को भड़का दिया. जिसके बाद इन असुरों ने भोलेनाथ से भी दुश्मनी मोल ले ली और उन्हें नाराज कर दिया. भगवान शिव का संरक्षण हटने के बाद अपने त्रिपुरों में बैठे असुरों की मनमानी और बढ़ गई. उनके अत्याचार से दुनिया त्राहि त्राहि करने लगी.
तब महादेव ने त्रिपुर दैत्यों (तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष) के वध का निश्चय किया. वह जानते थे कि एक हजार वर्षों में मात्र एक क्षण के लिए यह तीनो नगरियां एक सीध में आती थीं. उसी एक क्षण में उसे नष्ट किया जा सकता है.
भगवान शंकर ने धरती को रथ बनाया. उसमें सूरज चांद के पहिए जोड़े. इस तरह असंभव रथ तैयार हो गया. उन्होंने भगवान श्रीहरि को अपना असंभव बाण बनाया और उनका संधान अपने पिनाक धनुष पर किया. इसके बाद अभिजित मुहुर्त में जैसे ही असुरों की तीनों पुरियां एक सीध में आईं उन्होंने बिना क्रोध किए विष्णु बाण चला दिया.
तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष के त्रिपुर क्षण भर में नष्ट हो गए. देवताओं को अपनी खोई शक्तियां वापस मिल गईं. धरती के अन्याय और अनाचार का खात्मा हो गया.
देवताओं ने भगवान शिव का बहुत आभार माना और उनकी पूजा की. जिसके बाद कार्तिक पूर्णिमा का यह दिन देव दीपावली के रुप में मनाया जाने लगे.
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