अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री.  यहां तक कि समस्त सृष्टि के स्वामी देवाधिदेव महादेव को भी मां अन्नपूर्णा ही भोजन प्रदान करती हैं. 


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जगत्माता भगवती भवानी जगदंबा के अन्नपूर्णा स्वरुप धारण करने की कथा भी अलौकिक है. एक बार देवताओं ने एक मत से ब्रह्म को माया से श्रेष्ठ बता दिया. भगवान शिव ने इस बात का अनुमोदन किया और कहा कि भोजन भी माया ही है.


देवताओं और अपने पति की ऐसी बातें सुनकर समस्त संसार को चलाने वाली महामाया जगदंबा को क्रोध आ गया. उन्होंने अपनी माया समेट ली. जगदंबा ने शाकंभरी स्वरुप में सृष्टि के समस्त भोज्य पदार्थों का निर्माण किया था.



आदिशक्ति के माया समेट लेने से समस्त सृष्टि में भोजन का अकाल पड़ गया.  भगवान शिव समझ गए कि जगदंबा क्रोधित हो गई हैं. उन्हें प्रसन्न करने के लिए उन्होंने भिक्षुक का रुप धारण किया और काशी पहुंचे. वहां उन्होंने समस्त संसार का पोषण करने वाली जगदंबा से भिक्षा के रुप में अन्न की मांग की. 


भोलेनाथ ने भिक्षुक के रुप में इतनी दीन पुकार लगाई कि माता का हृदय पिघल गया. जब वो भिक्षा देने के लिए आईं तो उन्होंने देखा की समस्त सिद्धियों के स्वामी उनके पति महादेव ही भिक्षुक रुप में सामने मौजूद हैं. 


परमपिता परमेश्वर को ऐसी दीन स्थिति में देखकर माता का क्रोध दूर हो गया. वह समझ गईं कि परमब्रह्म रुपी सदाशिव को महामाया आदिशक्ति के महत्व का आभास हो गया है. उन्होने अपनी माया समेट ली. 



भगवती ने कृपा करके पहले की भांति महादेव को खीर के रुप में भोजन प्रदान किया. जिसके दिव्य स्वाद से भोलेनाथ संतुष्ट हुए. उनके साथ समस्त सृष्टि भी तृप्त हो गई. 


मां अन्नपूर्णा का विश्वविख्यात मंदिर बनारस में काशी विश्वनाथ के मंदिर के बिल्कुल पास में है.  अष्टसिद्धियों की स्वामिनी अन्नपूर्णाजी की चैत्र तथा आश्विन के नवरात्र में अष्टमी के दिन 108 परिक्रमा करने से अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है. 


अन्नपूर्णा के निवास से ही काशी क्षेत्र एक नगर के रुप में बस पाया. अन्यथा यह अविमुक्त क्षेत्र एक विशाल महाश्मशान के रुप में था. जहां लोग पहुंचने से डरते थे. मां अन्नपूर्णा के काशी में निवास करने के बाद काशी को यह वरदान मिला कि यहां कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सोएगा. काशी में विराजमान माता अन्नपूर्णा का अद्भुत स्वरुप यहां देखिए-




अन्नपूर्णा मंत्र कुछ इस प्रकार है-


रक्ताम्विचित्रवसनाम्नवचन्द्रचूडामन्नप्रदाननिरताम् स्तनभारनम्राम्।
नृत्यन्तमिन्दुशकलाभरणंविलोक्यहृष्टांभजेद्भगवतीम् भवदु:खहन्त्रीम्॥


अर्थात 'जिनका शरीर रक्त वर्ण का है.  जो अनेक रंग के धागों से बुना वस्त्र धारण करने वाली हैं.  जिनके मस्तक पर बालचंद्र विराजमान हैं, जो तीनों लोकों के वासियों को सदैव भोजन प्रदान करती हैं, चिर यौवन से सम्पन्न जगदंबा भगवान शंकर को अपने सामने नृत्य करते देख प्रसन्न होती हैं.  संसार के सब दु:खों को दूर करने वाली, ऐसी भगवती अन्नपूर्णा का मैं सदैव स्मरण करता हूँ. '


करुणामयी माता अन्नपूर्णा भक्तों को भोग के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं.  सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी भेद-भाव के भरण-पोषण करती हैं.  जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आह्वान करता है, माँ अन्नपूर्णा उसके यहाँ सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं. ऐसे भक्त को कभी जीवन में भोजन की कमी महसूस नहीं होती. 


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