नई दिल्लीः अपने पूर्वजों को स्मरण करने, श्रद्धा और भक्ति से उन्हें सेवा करने और जल तर्पण करने का समय चल है. पितृ पक्ष का यह तर्पण अगले 15 दिनों तक जारी रहेगा. इस समय पितरों को जल देकर और कौवों को भोजन देकर उन्हें तृप्त कराया जाता है. इस दौरान कौवे का आना और भोजन ग्रहण करना शुभ होता है. 


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कौवे को कराते हैं भोजन
श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है, श्राद्ध पक्ष में कौआ यदि आपके द्वारा दिया गया भोजन ग्रहण कर ले, तो ऐसा माना जाता है कि पितरों की कृपा आपके ऊपर है.



पितृ प्रसन्न हैं, इसके विपरीत यदि कौवे भोजन करने नही आये तो यह माना जाता है, कि पितर विमुख हैं या नाराज हैं. 


कई संकेत देता है कौवा
इस समय में पितृजन कौवों के रूप में भोजन करने आते हैं. इस मान्‍यता के साथ कई अन्‍य मान्‍यताएं भी चली आ रही हैं. इनके अनुसर कौवे अपने साथ कई तरह के संकेत लेकर आते हैं, जिससे भविष्‍य की आहट मिलती है. वे आपकी जिन्दगी में आने वाले शुभ और अशुभ से आपको सावधान भी करवाते हैं. 


श्री राम ने दिया था वरदान
कौवे की महिमा से जुड़ी कथा त्रेतायुग की है. श्रीराम, माता सीता और भैया लक्ष्मण के साथ वन प्रवास पर थे. इस दौरान इंद्र पुत्र जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था. तब भगवान श्रीराम नें तिनके का बाण चलाकर जयंत की आंख फोड़ दी थी.



जब उसने इस कृत्य के लिए क्षमायाचना की तो श्रीराम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हे अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा. तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परम्परा चली आ रही है. 


कौवे की स्वाभाविक मृ़त्यु नहीं होती है
इसके अलावा कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रय माना जाता है. पुराणों में यह भी वर्णित है कि कौवे ने अमृत चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती. कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है.



इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है इसलिए कौवा अतृप्तता का प्रतीक है और पितर की तृप्ति के लिए एक अतृप्त को भोजन कराकर उसे तृप्त किया जाता है. इसलिए कौवे का श्राद्ध पक्ष में महत्व है. 


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