जाम्बवंती रीछराज जाम्बवन्त की पुत्री थी. एक बार जरासन्ध के भय से श्रीकृष्ण समुद्र के मध्य नगरी द्वारिकापुरी बसाकर रहने लगे.  द्वारिकापुरी में निवास करने वाले सत्राजित यादव ने सूर्यनारायण की आराधना की.  तब भगवान सूर्य ने उसे नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमन्तक नामक मणि अपने गले से उतारकर दे दी.


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 मणि पाकर सत्राजित यादव जब समाज में गया तो श्रीकृष्ण ने उस मणि को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की. लेकिन सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को न देकर अपने भाई प्रसेनजित को दे दी. एक दिन प्रसेनजित घोड़े पर चढ़कर शिकार के लिए गया.  वहां एक शेर ने उसे मार डाला और मणि ले ली. लेकिन रीछों का राजा जामवन्त ने उस सिंह को मार दिया और मणि लेकर गुफा में चला गया.


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 जब प्रसेनजित कई दिनों तक शिकार से न लौटा तो सत्राजित को शक होने लगा. उसने सोचा, श्रीकृष्ण ने ही मणि प्राप्त करने के लिए उसका वध कर दिया होगा.


 अतः बिना किसी प्रकार की जानकारी जुटाए उसने प्रचार कर दिया कि श्रीकृष्ण ने प्रसेनजित को मारकर स्यमन्तक मणि छीन ली है. इस लोक-निन्दा के निवारण के लिए श्रीकृष्ण बहुत से लोगों के साथ प्रसेनजित को ढूंढने वन में गए.



वहाँ पर प्रसेनजित को शेर द्वारा मार डालना और शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न उन्हें मिल गए. रीछ के पैरों के निशान का पीछा करते-करते श्रीकृष्ण  जाम्बवन्त की गुफा पर पहुँचे और गुफा के भीतर चले गए.  वहां उन्होंने देखा कि रीछ के बच्चे उस मणि से खेल रहे हैं.


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 श्रीकृष्ण को देखते ही जाम्बवन्त युद्ध के लिए तैयार हो गया.  युद्ध छिड़ गया। गुफा के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने उनकी सात दिन तक प्रतीक्षा की.  फिर वे लोग उन्हें मर गया जानकर पश्चाताप करते हुए द्वारिकापुरी लौट गए.


 इधर इक्कीस दिन तक लगातार युद्ध करने पर भी जाम्बवन्त श्रीकृष्ण को पराजित न कर सका.  तब उसने सोचा, कहीं यह वही अवतार तो नहीं जिसके लिए मुझे रामचंद्रजी का वरदान मिला था.  यह पुष्टि होने पर उसने अपनी पालित कन्या अनिंद्य सुंदरी जाम्बवंती का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और स्यमंतक मणि दहेज में दे दी.



जाम्बवंती से श्रीकृष्ण के दस पुत्र हुए. ये थे- साम्ब, सुमित्र, पुरूजित, शतजित, सहस्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ व क्रतु.


भागवत से संकलित कथा


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