पुरुष और स्त्री के बीच का सामंजस्य ही जीवनसूत्र है

स्त्री और पुरुष के संग का अर्थ क्या है. क्या यह सिर्फ काम वासना की तृप्ति के लिए है या फिर इसका उद्देश्य इससे भी बड़ा है. आखिर क्यों शास्त्रों में विवाहिता स्त्री को धर्मपत्नी कहा गया है. इन सभी सवालों का जवाब जानिए यहां

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 4, 2020, 09:19 PM IST
    • काम पत्नी नहीं धर्म पत्नी
    • जानिए ऋषि कर्दम और माता देवहूति की अद्भुत कथा
    • जिनके पुत्र हुए कपिल मुनि
    • स्वयं श्रीहरि कपिल मुनि के रुप में अवतरित हुए
    • पत्नी का जीवन में क्या है महत्व
पुरुष और स्त्री के बीच का सामंजस्य ही जीवनसूत्र है

कर्दम ऋषि ने वंश वृद्धि के लिए महान तपस्या की थी.  वह जितेन्द्रिय महात्मा थे. इसलिए उनकी तपश्चर्या सफल हुई. सामने भगवान प्रकट हुए.  आँखो से हर्षाश्रु फूट पड़े.  वह भगवान को निहारते थकते न थे, निर्निमेष, अपलक. 

संसार का सौदर्य क्षणिक है.  जगत की कोई भी वस्तु सुन्दर नहीं है बल्कि आँखो मेँ विकार होने के कारण सुन्दर लगती है.  आँख की सफलता या उपयोगिता तो तभी है जब एक बार ईश्वर के दर्शन कर ले तो फिर वह छवि जाए ही नहीं, खुले नेत्र, बन्द नेत्र, सजल नेत्र या विह्वल नेत्र; बस

उनके दर्शन होते रहें.

कर्दम ने भगवान से कहा- मैं स्त्रीसंग नहीं बल्कि सत्संग की इच्छा करता हूं. 

ब्रह्माजी का आदेश है विवाह करो, संतति करो, सृष्टि विस्तार तो भी मुझे ऐसी स्त्री दीजिए जो मुझे प्रभु की ओर ले जाये.  ऐसी पत्नी मुझे मिले कि जब कभी मेरे मन मे पाप आ जाये तो वह मुझे पापकर्म से रोके और प्रभु के मार्ग मे ले चले.  मेरा विवाह संसार सागर में डूबने के लिए नही बल्कि उसे पार करने के लिए हो. शास्त्रो में पत्नी को कामपत्नी नहीं धर्मपत्नी कहा गया है. मैं पत्नी नहीं, अर्धांगिनी रूप में घर मेँ सत्संग चाहता हूं.

स्त्री संग काम संग नही सत्संग है.  धर्माचरण के लिए पत्नी है कामाचरण के लिए नहीं. अकेला पुरुष या स्त्री धर्म मार्ग में आगे नहीँ बढ़ सकते है. नाविक के बिना अकेली नाव पार नहीं जा सकती. स्त्री नौका है पुरुष नाविक.  दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.  पुरुष में विवेक है तो स्त्री में स्नेह.  विवेक और स्नेह के मिलने से भक्ति प्रकट होती है.  पुरुष ज्ञानस्वरुप है तो स्त्री समर्पणस्वरुप. भक्ति के यही दो मुख्य अवयव हैं.
 
ईश्वर की कृपा से कर्दम ऋषि से विवाह के पश्चात माता देवहूति से हुआ की नौ कन्यायें तथा एक पुत्र उत्पन्न हुए. उनकी कन्याओं के नाम थे कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति और तथा पुत्र का नाम कपिल था.  कपिल के रूप में देवहूति के गर्भ से स्वयं भगवान विष्णु अवतरित हुये थे.

ये वही कपिल मुनि थे जिन्होंने दुनिया को सांख्य का अद्वितीय दर्शन प्रदान किया.

कर्दम एवं देवहूति के पुत्र कपिल मुनि ब्रह्मज्ञान के साकार स्वरुप हैं.  कर्दम अर्थात् इन्द्रियों का दमन करने वाला.  देवहूति अर्थात् देव को बुलाने वाली शक्ति.  निष्काम बुद्धि ही देवताओं को बुला सकती. जब तक मनुष्य कर्दम नहीं बन पाता , तब तक उसे कपिल नहीँ मिलता.  शरीर में सत्वगुण की वृद्धि होने पर ज्ञान का झरना फूट पड़ता है, ज्ञान प्रकट होता है. शुद्ध आहार, शुद्ध आचार और शुद्ध विचार से सत्वगुण की वृद्धि होती है. सत्वगुण बढ़ने से ज्ञान मिलता है. सत्वगुण  संयम एवं सदाचार से बढ़ता है.

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