Holi 2020: होली से जुड़ी है भगवान शिव के 'शरभ अवतार' की रहस्यमय कथा

होली के मौके पर भक्त प्रह्लाद, उसके असुर पिता हिरण्यकशिपु और बुआ होलिका की कहानी से तो सभी वाकिफ होंगे. लेकिन होली का त्योहार भगवान शिव से भी जुड़ा हुआ है. आईए जानते हैं होली से जुड़ी भगवान शिव के शरभ अवतार की कथा. यही अवतार ग्रहण करने के बाद महादेव ने वस्त्रों के रुप में सिंहचर्म का इस्तेमाल शुरु किया था.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 9, 2020, 07:59 PM IST
    • भगवान शिव इसलिए पहनते हैं सिंह चर्म का वस्त्र
    • यह सिंह चर्म भगवान विष्णु के रुप नरसिंह का है
    • नरसिंह को शरभ रुप लेकर भगवान शिव ने मार डाला
    • धरती को नष्ट कर रहे थे नरसिंह
    • सिंह, गरुड़, वीरभद्र का मिला जुला स्वरुप है शरभ
    • होली से जुड़ी भगवान शिव की रहस्यमय कथा
Holi 2020: होली से जुड़ी है भगवान शिव के 'शरभ अवतार' की रहस्यमय कथा

शरभ यानी सिंह, गरुड़, हिरण और शिव के प्रमुख गण वीरभद्र का मिला जुला रुप. ये भगवान शिव का अति विचित्र और भयावना स्वरुप है. जिसे परमेश्वर सदाशिव ने भगवान विष्णु के नरसिंह रुप का गर्व नष्ट करने के लिए धारण किया था. इसी प्रकरण के बाद भगवान शिव ने सिंह के चर्म से बने वस्त्र पहनना शुरु किया था.

कैसा है शिव अवतार शरभ का स्वरुप
संस्कृत साहित्य के ग्रंथों में शरभ का वर्णन कुछ इस प्रकार मिलता है. उनके पास गरुड़ के दो पंख, तीखी चोंच, वीरभद्र की सहस्र भुजाएं, सिंह के पंजे, आठ पैर, शीश पर जटा और चंद्रमा है. वह इस ब्रह्मांड के सबसे शक्तिशाली प्राणी माने जाते हैं. वह एक छलांग में ब्रह्मांड के इस पार से उस पार तक जाने की क्षमता रखते हैं.


भगवान शिव ने धरती को नरसिंह के क्रोध से बचाने के लिए शरभ अवतार धारण किया. क्योंकि नरसिंह रुप धारण करने के बाद श्रीहरि पूरी दुनिया को नष्ट करने के लिए व्याकुल हो रहे थे.

इसलिए धारण किया शिव ने शरभ रुप
असुरराज हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र और श्रीहरि के परमभक्त प्रह्लाद पर भीषण अत्याचार किए थे. वह चाहता था कि प्रह्लाद अपने पिता यानी खुद हिरण्यकशिपु की पूजा करे. लेकिन प्रह्लाद विष्णुभक्त थे. उनके मुंह से आठो पहर श्रीहरि का नाम निकलता था. जिससे हिरण्यकशिपु नाराज हो गया. उसने अपने बेटे प्रह्लाद को हाथी के पैरों के नीचे कुचलवाने की कोशिश की, उसे जहर दिया, सर्पों से भरे तहखाने में बंद कर दिया, ऊँचाई से फिंकवा दिया, जंजीरों में बांधकर पानी में डुबा दिया. लेकिन प्रह्लाद हर बार बच गए.


आखिर में असुर हिरण्यकशिपु ने भक्त प्रह्लाद को जिंदा जलाने की कोशिश की. लेकिन प्रह्लाद बच गए. अपने भक्त पर अत्याचार होता देखकर श्रीहरि ने नरसिंह रुप धारण किया और हिरण्यकशिपु को मार डाला. लेकिन ऐसा करने के बाद भी नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ और वह क्रोध में सिंह गर्जना करते  हुए धरती पर विचरण करने लगे. उनके पैरों के नीचे पूरी धरती दहल गई. उनके क्रोध से सृष्टि के विनष्ट होने का खतरा पैदा हो गया. तब जाकर शिव ने अपने प्रमुख गण वीरभद्र को उन्हें समझाने के लिए भेजा.
 
महादेव के आदेश से वीरभद्र ने की नरसिंह को समझाने की कोशिश
भक्त प्रह्लाद पर अत्याचार की वजह से नरसिंह रुप धारण किए हुए श्रीहरि का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था. उन्होंने अपनी पत्नी लक्ष्मी जी की प्रार्थना भी अस्वीकार कर दी. तब महादेव के आदेश से नरसिंह को समझाने के लिए वीरभद्र वहां पहुंचे.


उन्होंने भगवान विष्णु को उनके लोककल्याणकारी स्वरुप की याद दिलाने की कोशिश की. उन्हें मत्स्य, वाराह, वामन आदि अवतारों की याद दिलाई. लेकिन क्रोध से पागल नरसिंह कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं हुए.

तब शिव ने लिया शरभ अवतार
जब नरसिंह के क्रोध की अग्नि किसी तरह शांत नहीं हुई तो भगवान शिव ने शरभ अवतार धारण किया. तब महादेव ने संसार की रक्षा के लिए शरभ अवतार धारण किया. जो वीरभद्र, गरुड़ और भैरव का सम्मिलित स्वरुप था.  उसके आठ शक्तिशाली पंजे और शक्तिशाली पंख थे.
शरभ अवतार में एक पंख में वीरभद्र एवं दूसरे पंख में महाकाली स्थित हुये, भगवान शरभ के मस्तक में भैरव एवं चोंच में सदाशिव स्थित हुये और शरभ रूपी शिव ने भगवान नरसिंह को अपने पंजों में जकड़ लिया और आकाश में उड़ गये.

शरभ रुपी शिव अपनी पूंछ में नरसिंह को लपेटकर छाती में चोंच का प्रहार करके उसे व्याकुल कर दिया. जिसके बाद शरभ ने अपने तीखे पंजों से नरसिंह की नाभि को चीर दिया.

नरसिंह का तेज श्रीहरि में विलीन हुआ
नरसिंह का शरीर नष्ट होते ही उसके प्राणरुपी तेज श्रीहरि विष्णुजी में विलीन हो गए. जिन्होंने वहां प्रकट होकर शरभ रुपी महादेव की प्रार्थना की. महादेव ने तत्काल शरभ रुप का त्याग करके अपने परम कल्याणकारी सदाशिव रुप को धारण किया.
लेकिन श्रीहरि ने महादेव के विनती की, कि वह नरसिंह के मृत शरीर के चर्म को अपने वस्त्र के रुप में स्वीकार करें. जिससे कि संसार को इस रहस्यमय और महान गाथा का हमेशा ध्यान रहे.

मूल रुप से यह कथा क्रोध पर विजय पाने की है. आधे मनुष्य और आधे सिंह के रुप में आने के बाद नरसिंह पर शेर की पाशविक शक्तियां हावी होने लगीं. जिसकी वजह से उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था. लेकिन उससे भी भीषण शरभ रुप धारण करके भी शिव तत्काल अपने क्रोध को विनष्ट करके अपने वास्तविक रुप में आ गए. यह कथा हमें क्रोध को स्वयं पर हावी नहीं होने देने का संदेश देती है.

लिंगपुराण के 16वें अध्याय से संकलित

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