Navratri special: रावण से नाराज माता ने यहां बनाया धाम, कहलाईं खीर भवानी
कश्मीर के मां खीर भवानी मंदिर से कश्मीरी पंडितों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी मां खीर भवानी का मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर की दूरी पर तुलमुल गांव में स्थित है. यहां हर साल मई महीने में पूर्णिमा के आठवें दिन बड़ी संख्या में भक्त इकट्ठे होते हैं. माता के मंदिर में मौजूद चमत्कारी कुंड काफी प्रसिद्ध है.
नई दिल्लीः पहाड़ों वाली माता कहलाने वाली मां जगदम्बा ने पर्वत मालाओं-गुफाओं और कंदराओं में अपने कई धाम बनाए हैं. वह शिव की शक्ति हैं और जब महादेव ने स्वर्ग का वैभव छोड़कर कैलाश पर रहना स्वीकार किया तो माता ने भी अपने भक्तों के लिए इसी लोक में रहना ही उचित समझा. यही कारण है कि देवी के 51 शक्तिपीठ, तंत्र पीठ, भुवन धाम और नौ दुर्गा की शक्तियों के अलग-अलग धाम स्थापित हैं.
इसके अलावा देवी की दसमहाविद्याओं ने भी दसों दिशाओं में मानव कल्याण के लिए रहना स्वीकार किया है. जम्मू-कश्मीर का पर्वतीय क्षेत्र अपने आप में माता के कई पवित्र धामों को समेटे हुए है. इनमें से एक है खीरभवानी या क्षीरभवानी माता का मंदिर
श्रीनगर के पास तुलमुल में विराजती हैं माता
जानकारी के मुताबिक, कश्मीर के मां खीर भवानी मंदिर से कश्मीरी पंडितों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है. कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी मां खीर भवानी का मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर की दूरी पर तुलमुल गांव में स्थित है. यहां हर साल मई महीने में पूर्णिमा के आठवें दिन बड़ी संख्या में भक्त इकट्ठे होते हैं. माता के मंदिर में मौजूद चमत्कारी कुंड काफी प्रसिद्ध है.
कहा जाता है कि जब इस जगह कोई मुसीबत आने वाली होती है तो कुंड का पानी काला पड़ जाता है. लोगों के मुताबिक कश्मीर में जब 2014 में कुंड का पानी काला पड़ा था तो कश्मीर में भीषण बाढ़ आई थी. वहीं करगिल युद्ध के दौरान कुंड का पानी लाल हो गया था.
मान्यता है कि मां खीर भवानी अपने भक्तों और कश्मीरियों की रक्षा करती हैं. उन पर कृपा बनाए रखती हैं. भक्तों के प्रति मां का वात्सल्य इसी से झलकता है कि जब भी कोई आपदा कश्मीर पर आने वाली होती है मां अपनी जागृत शक्तियों से भक्तों को पहले ही सचेत कर देती हैं. बताया जाता है कि मां खीर भवानी भक्तों को समय से पहले ही भविष्य बता देती हैं. यहां पर माता किसी पिंडी के रूप में न होकर जल रूप में विराजमान हैं. मंदिर के कुंड का पानी आने वाले शुभ-अशुभ लक्षणों के अनुसार रंग बदलता है.
त्रेतायुग से जुड़ा है इतिहास
मंदिर का इतिहास त्रेतायुग और राक्षसराज रावण से जुड़ा है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार रावण महादेव के अतिरिक्त माता का भी परम भक्त था, वह अपने जप-तप से देवी को प्रसन्न रखता था. धीरे-धीरे रावण का अहंकार बढ़ता गया और वह अनाचारी हो गया. देवी उसे चेताती रहीं, लेकिन रावण ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.
जब रावण ने मां सीता का अपहरण किया तो देवी ने रुष्ट होकर वह स्थान छोड़ दिया. कहते हैं कि देवी के मंदिर और स्थापित स्थान का सत्य चला गया, जिसके कारण ही लंका का भस्म हो जाना संभव हो गया. इसके बाद जब रुद्रांश हनुमान लंका आए तो देवी ने उनसे अपनी मूर्ति-पिंडी को लंका से दूर कर देने के लिए कहा. उनकी आज्ञा मानकर हनुमान ने माता की मूर्ति को तुलमुल में स्थापित कर दिया.
खीर के भोग से खुश होती है देवी
मां खीर भवानी के मंदिर खीर का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि खीर का भोग लगाने से मां भक्तों से प्रसन्न रहती हैं. बाद में यही खीर प्रसाद के रूप में भक्तों को बांटी जाती है. मां खीर भवानी को स्थानीय लोग कश्मीर की देवी भी कहते हैं.
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