नई दिल्लीः एक महीने के इंतजार के बाद आज से शारदीय नवरात्रों ( Sharad Navratri) का आरंभ हो गया है. नौ दिनों तक देवी मां की आराधना का यह पर्व मातृ सत्ता की उपासना के दिन हैं, जो कि यह बताते हैं कि जननी का स्थान सर्वोपरि है. एक स्त्री जननी है और संसार का आधार भी, ब्रह्मांड समेत सृष्टि का हास और प्रलय उसके ही आंखों में हैं.


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इसलिए कोमल दिखने वाली और स्वभाव से दयालु स्त्री व माता को कमजोर समझने की भूल न की जाए. शारदीय नवरात्र का पर्व इसलिए भी मनाते हैं. 


समझें देवी की पूजा का तात्पर्य
आज के बदलते हुए परिवेश को देखते हुए जरूरी हो गया है कि हम अपने पर्वों-त्योहारों को और अधिक समझें और उनके रहस्य को पहचानें. नवरात्र केवल आराधना-पूजा का पर्व नहीं है, बल्कि पारिवारिक-सामाजिक ढांचे को समझने की परंपरागत प्रक्रिया है. देवी शैलपुत्री  ( Maa Shailputri)  इसी परंपरा का आधार चिह्न हैं. वह इंगित करती हैं कि समाज में पुत्रियों का विशेष स्थान है. 


ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा
पुराणों के व्याख्यानों के अनुसार नवरात्र का पहला दिन देवी शैलपुत्री  ( Maa Shailputri)  को समर्पित है. शैल यानी पत्थर-पर्वत. पर्वत से तात्पर्य हिमालय पर्वत का है. देवी ने हिमराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था. इसलिए वह शैलपुत्री ( Maa Shailputri)  कहलाईं.



इन्हीं का दूसरा नाम पार्वती है जो कि शिव महादेव की अर्घांगिनी बनीं. पर्वत पर रहने के कारण और हिमालय के घर जन्म लेने के कारण ही देवी को पार्वती कहा गया है. देवी पुत्री स्वरूपा हैं. यानी कि संसार की सभी पुत्रियों में देवी का वास है. 
 देवी की आराधना इन दोनों मंत्रों से की जाती है. 
 ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
 वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


लेकिन क्या वाकई समाज शैलपुत्री होने का अर्थ समझ पाया?
अब चलते हैं समाज की ओर. देवी शैलपुत्री की आराधना सिर्फ मंत्रों से होना ही काफी नहीं है, बल्कि शैलपुत्री ( Maa Shailputri)  के पूजन के गूढ़ अर्थ को समझना काफी है. दुखद है कि हमारा सहिष्णु समाज कई तरह की बुराइयों से भी ग्रसित हो चला है.



पर्यावरण प्रदूषण हमारे समाज की मुख्य समस्या तो है ही, इसके लिए आप अपनी कमियों को छिपाकर सरकारों को कोस सकते हैं, लेकिन आपकी वाणी जिस तरह से प्रदूषित हुई है. उसके लिए किसे कोसेंगे, अपनी नाकामी कैसे छिपाएंगे. 


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हम वाणी से कब देंगे बेटियों को सम्मान
इस बात के जरिए इस ओर इंगित करने की कोशिश है कि देवी को पुत्री के रूप में पूजने वाला समाज असल में पुत्रियों के लिए घातक बन जाता है. कन्या भ्रूण हत्या में तो कुछ कमी आई है, लेकिन वाणी से हम अभी भी पुत्रियों को सम्मान नहीं दे पाए हैं. सामान्य बातचीत के दौरान, हंसी-मजाक के बीच भी आज का आम आदमी बेटियों के बेहद ही बुरी और बतौर गाली युक्त विशेषण प्रयोग कर देता है. 


हर आम आदमी प्रयोग करता है बेटियों के लिए अपशब्द
राह चलते, यार-दोस्तों से मिलते, किसी के प्रति गुस्सा जाहिर करते हुए, किसी का असम्मान करते हुए हम एक झटके में बेटियों को जोड़ कर बनाई हुई गालियां प्रयोग कर जाते हैं. अब सोचिए, कुछ देर पहले ही आपने देवी शैलपुत्री ( Maa Shailputri)  की आराधना की और अगले ही पल आपने किसी की बेटी के लिए विकृत मानसिकता से भरे शब्दों का प्रयोग कर दिया.



ऐसे तो देवी की पूजा-आराधना का कोई तात्पर्य ही नहीं रहा. सब किए-कराए पर पानी फेर दिया. 


आज का व्रत, बेटियों का सम्मान
नवरात्र और इसके पहले दिन शैलपुत्री ( Maa Shailputri)  दिवस का यही अर्थ है कि समाज अपनी और हर किसी की पुत्री में एक देवी को देखे, उसका सम्मान करे. यदि किसी से व्यक्तिगत असंतोष है तो उस प्रकरण में उसकी बेटी को न घसीट लाए. नौ दिन तक व्रत रख कर मां की आराधना की जाती है.



इसलिए आज यह व्रत रखिए बेटी के नाम पर गाली नहीं देंगें. अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं तो देवी ( Maa Shailputri) की हर प्रकार से की गई आराधना व्यर्थ है. 


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