सनातन धर्म कहता है यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे. यानी जो समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है. वह आपके शरीर में भी है. शरीर में स्थित ब्रह्मांड के दर्शन कर पाना अष्टांग यौगिक मार्ग के जरिए ही संभव है. आईए देखते हैं यौगिक मार्ग के पहले चरण यानी कुंडलिनी जागरण और चक्रों का परिचय-
1. मूलाधार चक्र
यह शरीर का पहला चक्र है. चार पंखुरियों वाला यह ‘आधार चक्र’ है. दुनिया के 99% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं. उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है. यह रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले सिरे पर स्थित होता है.
मंत्र : लं
चक्र जगाने की विधि : इसको जाग्रत करने के लिए सदैव साक्षी भाव में रहना होता है. यानी आप किसी भी व्यक्ति या परिस्थिति से प्रभावित नहीं हों.
प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जागृत हो जाता है.
2. स्वाधिष्ठान चक्र
यह वह चक्र है, जो मूलाधार चक्र से चार अंगुल ऊपर स्थित है. जिसकी छ: पंखुड़ियां हैं. अगर किसी व्यक्ति की ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है, तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी. यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत
हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे.
मंत्र : वं
इस चक्र को जागृत करने के लिए ध्यान रखें कि जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं होनी चाहिए. ज्यादा मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है. जैसे फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके होश खोकर जीवन जीने का प्रमाण है.
प्रभाव : स्वाधिष्ठान चक्र के जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है.
3. मणिपूर चक्र
नाभि के मूल में स्थित यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपूर नामक तीसरा चक्र है. जो दस कमल पंखुड़ियों से युक्त है. जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन सवार रहती है. ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं. ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं.
मंत्र : रं
मणिपूर चक्र को जागृत करने के लिए कार्य को सकारात्मक आयाम देने की आदत डालनी चाहिए. इसके लिए पेट से श्वास लें.
मणिपूर चक्र के जागृत होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कल्मष दूर हो जाते हैं. यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है. आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं. आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं.
4. अनाहत चक्र
यह हृदय स्थल में स्थित होता है. इसका रंग स्वर्णिम यानी सुनहरा है. यह द्वादश यानी 12 दल वाले कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से
सुशोभित रहता है. अगर किसी साधक की ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो वह एक सृजनशील व्यक्ति होता है. वह हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने
की सोचता है. ऐसा व्यक्ति चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि होता है.
मंत्र : यं
इस चक्र को जागृत करने के लिए हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाना होता है. खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने के लगातार अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है.
अनाहत चक्र के सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट,हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं. इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है.
इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति का समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है. व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व वाला बन जाता हैं. ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है.
5. विशुद्ध चक्र
इस चक्र का स्थान कंठ में होता है. जहां सरस्वती का स्थान है. विशुद्ध चक्र सोलह पंखुड़ियों वाला होता है. सामान्य तौर पर यदि किसी साधक की ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो वह अति शक्तिशाली हो जाता है.
मंत्र : हं
कंठ यानी बोली में संयम रखने और ध्यान लगाने से विशुद्ध चक्र जाग्रत होने लगता है. इसके जागृत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है. इसके जाग्रत होने के बाद जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है. वहीं मौसम के प्रभाव भी मनुष्य पर नहीं पड़ता है.
6. आज्ञाचक्र
इस चक्र का स्थान भ्रूमध्य यानी दोनों आंखों के बीच भृकुटी में होता है. सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय होती है, वैसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का होता है. लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है. इस बौद्धिक सिद्धि कहते हैं.
मंत्र : ऊँ
भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है.
आज्ञा चक्र के स्थान पर अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं. आज्ञा चक्र का जागरण होने से सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक
सिद्धपुरुष बन जाता है.
7. सहस्रार चक्र
सहस्रार की स्थापना मस्तिष्क के मध्य भाग में है. यह नीले रंग का एक बिंदु होता है जो कि सिर के ठीक पीछे चोटी के स्थान और माथे से समान दूरी पर होता है. यदि कोई साधक नियमों का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो समझिए कि आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है. ऐसे व्यक्ति को
संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है.
सहस्रार को जगाने की प्रक्रिया मूलाधार से शुरु होती है. लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त
कर लेता है.
शरीर संरचना में सहस्रार के स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है. यही मोक्ष का द्वार है.
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