New Year 2021: कितने अलग हैं कैलेंडर और भारतीय पंचांग
1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगेरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद हुआ. दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर (Calendar) को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था. ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था.
नई दिल्लीः बस और कुछ घंटे, फिर घड़ी की सुइयां मिनट और सेकेंड का एक आखिरी सफर तय करेंगीं. आपके Smart Phone का कैलेंडर लॉग नए Table के साथ Update होगा. डायरी के पन्नों पर नई तारीख होगी.
इसी के साथ हम सब 21वीं सदी के 21वें साल के सफर पर चल पड़ेंगे. 2020 के 12 महीनों का सफर यहीं थम जाएगा. आप मुड़कर देखेंगे और कुछ अच्छी-कुछ कड़वी बातें याद करेंगे. समय चलता रहेगा, समय नहीं रुकेगा.
क्या है समय (What Is Time)
लेकिन, समय है कौन? क्या है ये? क्या दीवार घड़ी में सिर्फ 12 अंको के बीच का सफर.. मानव की सभ्यताओं को जितना समय आज बीत चुका है, उससे भी बहुत पहले से समय (Time) अपनी इसी गति से चलता आ रहा है. इसी के साथ एक सवाल भी लगातार चलता आया है, कितना समय हुआ? Gadgets और मशीनों से भरी इस दुनिया में भी राह चलते हर दूसरा आदमी यह सवाल पूछ ही देता है.
अलग -अलग है देशों के New Year
आज विश्व भर में भले ही साल के महीने January से December तक बंटे हैं और New Year 1 January से मनाया जा रहा है, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. New Year का समय हर सभ्यता में लगभग मार्च (March) या अप्रैल (April) से ही शुरू होता रहा है. इसकी बानगी अभी भी खाता-बही, बजट और वार्षिक लेखा बंदी ( Closing) के तौर पर देखी जा सकती है.
भारत का अपना खुद का नव वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है. नव वर्ष की यह शुरुआत अंग्रेजों (British) के जमाने से हुई. दरअसल एक समय था कि ब्रिटानी साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था. इसलिए अपने शासन वाले देशों में एक जैसे समय के लिए 1 January वाले नए वर्ष की शुरुआत हुई.
January ऐसे बना पहला महीना
विश्व भर में भारत ही देवी-देवता की परंपरा का देश नहीं रहा, बल्कि हर सभ्यता (Civilization) में इनकी मौजूदगी रही है. इनमें रोमन सभ्यता ( Roman Civilization) के देवता चर्चित रहे हैं. इनमें देवताओं के राजा ज्यूस के अलावा प्रारंभ का देवता जानूस, शांति का देवता मरकरी, युद्ध का देवता मार्स, सुंदरता की देवी वीनस जैसे नाम हैं.
715 ईसा पूर्व से लेकर 673 ईसा पूर्व तक नूमा पोंपिलस रोम का राजा रहा. प्रारंभ के देवता जानूस में उसकी श्रद्धा अधिक ही थी, इसलिए समय गणना (Time Counting) की एक बड़ी इकाई वर्ष (Year) के नामों में उसने बदलाव किए और जानूस के नाम पर पहले महीने का नाम January रखा. इस कैलेंडर (Calendar) में 10 ही महीने थे.
सामने आया आधुनिक Calender
बाद में जूलियस सीजर ने अपने शासन काल का जूलियन कैलेंडर (Calendar) लागू किया. इसमें साल के 12 महीने थे, लेकिन शुरुआत का महीना January ही था. हालांकि जूलियस के इस कैलेंडर (Calendar) तारीखें बार-बार बदलती रहती थीं. इसलिए त्योहार या नए साल की तारीख भी बदल जाती थी.
1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगेरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद हुआ. दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर (Calendar) को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था. ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था.
ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेंडर (Calendar) को मानता है. इस कैलेंडर (Calendar) के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है. यही वजह है कि आर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले देशों रूस, जार्जिया, येरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है.
भारत में समय गणना
तीन ओर से समुद्र से घिरे एक पहाड़ के निचले हिस्से के मैदानी भाग में संसार की सबसे उन्नत संस्कृति पल रही थी. दक्षिण एशिया का यह मैदानी भाग भारत (India) धरती का वह विशेष हिस्सा था जहां सूर्य की किरणें (sun Dial) साल भर अलग-अलग कोणों से पड़ती थीं,
लिहाजा यहां समय की एक और इकाई ऋतुएं भी मिलीं और वह भी छह. इसका असर यह हुआ कि जलवायु पर आधारित समय की नींव पड़ीं. भारत की ऋषि परंपरा ने समय की गणना की. इसके शुभ-अशुभ पक्षों पर विचार किया और वैदिक पद्धति से ग्रहों की चालों का सटीक अध्ययन कर काल गणना सामने रखी, लिहाजा आज भी ग्रहण, भारतीय त्योहार आदि उसी सटीक दिन होते हैं.
रोमन कैलेंडर और भारतीय पंचांग में फर्क
भारत में भी समय-समय पर शासकों के जन्म दिवस, विजय दिवस, राज्याभिषेक दिवस से वर्ष परंपरा की शुरुआत हुई है. आज से तकरीबन 5500 साल पहले श्रीकृष्ण (Lord Krishna) ने युधिष्ठिर का राज्याभिषेक किया. जब धर्मराज युधिष्ठिर महाभारत युद्ध के बाद जिस दिन सिंहासन पर बैठे उस दिन से युगाब्द नाम से काल गणना शुरू हई.
इसके कई हजार साल बाद जब राजा विक्रमादित्य (King Vikramaditya) ने शकों को हराया तब वह शकारि विक्रमादित्य कहलाए इस तरह विक्रमी संवत की शुरुआत हुई. यह जानने वाली बात है कि आज का ईसवी सन, विक्रम संवत से 56 साल पीछे चल रहा है. 2021 के पैरलल भारत 2077 विक्रमी संवत में है. भारतीय पंचांग इसी आधार पर समय गणना करता है.
भारत और रोम-यूनान में समय का देवता
भारत और प्राचीन यूनान दोनों ही सभ्यताओं में देवताओं की मौजूदगी रही है. जैसे रोमन सभ्यता में प्रारंभ का देवता जानूस है, ठीक प्राचीन यूनान में समय का देवता क्रोनोस है. इसे ज्यूस का पिता भी माना जाता है. कहते हैं कि देवताओं का अधिपति ज्यूस क्रोनोस के कहने से बारिश और धूप का समय निर्धारित करता था. इसलिए क्रोनोस समय का देवता कहलाया. हालांकि क्रोनोस की भूमिका पौराणिक कथाओं में बहुत अधिक नहीं आती.
भारत में इंद्र देवताओं के अधिपति हैं. प्रारंभ के देवता गणपति हैं. युद्ध के देवता कार्तिकेय हैं. समय के देवता ब्रह्मा और शिव को माना जाता है. क्यों ब्रह्मदेव समय का लेख लिखते हैं तो महादेव स्वंय महाकाल हैं. इसीलिए मध्य प्रदेश स्थित उज्जैन में महादेव के धाम को कालमंदिर या महाकाल का धाम भी कहते हैं. इसी तरह श्रीहरि के सुदर्शन चक्र को भी समय चक्र या समय देव कहते हैं.
क्या कहती है भारतीय मनीषा
दिन बीतते गए, समय बदलता गया. इसी के साथ सभ्यताएं विकसित होती गईं और धरती के सिरों पर फैलती गईं. इसका असर ऐसा हुआ कि जहां जैसी स्थिति बनी, समय कितना हुआ इसका जवाब जानने का तरीका इजाद कर लिया गया. कुछ बेहद सटीक तो कुछ इससे कम या अधिक.
भारत में संस्कृति और सभ्यता का उत्थान बहुत पहले हुआ और यहां की ऋषि परंपरा ने सूर्य-चंद्र की स्थिति के आधार पर समय की गिनती की नींव रखी. दिन-रात को घंटों में बांधा, दिनों को महीनों में और इस तरह पृथ्वी के चक्करों के अनुसार साल के दिन विकसित हुए. समय के इस फेर में हम क्यों पड़ें. यह बीत रहा है, बस इसी के साथ आगे बढ़िए, ठहरिए नहीं. यही भारतीय मनीषा भी कहती है. नए साल की शुभकामनाएं (Happy New Year 2021)
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