नई दिल्लीः अधिकमास को स्वयं भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि तुम मेरे ही उत्तम नाम पुरुषोत्तम से जाने जाओगे. इसके बाद मलमास का आगमन भगवान विष्णु का आगमन माना जाता है. इस पावन महीने में श्रीहरि के दर्शन और भजन फलदायी होते हैं साथ ही किसी विष्णु मंदिर के दर्शन तो अत्यंत सौभाग्य प्रदान करते हैं. 


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जी हिंदुस्तान श्रीविष्णु मंदिर के दर्शनों की कड़ी में आपको गुजरात ले चलता है, जहां के साबरकांठा जिले में स्थित है अति प्राचीन विष्णुमंदिर शामलाजी (Shamla ji) . शामलाजी गुजरात का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो कि श्रीहरि के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के श्यामल स्वरूप के नाम पर प्रसिद्ध है. एक किसान को इसी स्वरूप में दर्शन देने के कारण यह स्थल शामलाजी के नाम से ही प्रसिद्ध है. 


मेशवो नदी के किनारे है स्थित
शामलाजी गुजरात के साबरकांठा ज़िले में स्थित है. यह राज्य के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है. भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर मेशवो नदी के किनारे पर स्थित है. बिल्‍कुल सटी हुई घाटी से होकर मेशवो नदी,



इसके चट्टानी आधार को धोती हुई बहती है.  हरी-भरी पहाड़ियों के बीच एक झील मंदिर के आसपास प्राकृतिक सौंदर्य की अद्भुत छटा बिखेरती है. 


मंदिर का इतिहास और स्थापत्य
बताया जाता है कि यह मंदिर कम से कम 500 वर्षों से मौजूद है. सफ़ेद बलुआ पत्‍थर और ईंटों से बने इस मंदिर में दो मंजिल हैं, जो खम्‍बों की कतारों पर टिकी हैं. इस पर उत्‍कृष्‍ट नक़्क़ाशी की गई है और 'रामायण' तथा 'महाभारत' जैसे धार्मिक महाकाव्यों से लिए गए प्रसंगों को बाहरी दीवारों पर उत्कीर्ण किया गया है.



इसकी सुंदर गुम्‍बदनुमा छत और मुख्‍य मंदिर के ऊपर पारंपरिक उत्‍तर भारतीय शिखर, इसके खुले प्रांगण की भव्‍यता बढ़ाते हैं, जिसके साथ एक वास्‍तविक हाथी के आकार की मूर्ति तराशी गई है. 


इस स्वरूप में विराजते हैं भगवान
मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की काले रंग की अद्भुत प्रतिमा है. इन्हें यहां गदाधर औऱ साक्षी गोपाल कहकर पूजा की जाती है. यह श्रीहरि के श्रीकृष्ण स्वरूप वाले दुर्लभ मंदिरों में से एक है. यहां गायों की मूर्तियों की भी पूजा की जाती है,



जो उनके बचपन को गाय चराने वाले बालक के रूप में स्थापित हैं.  वैष्णव सम्प्रदाय के लिए शामलाजी भारत में 154 सबसे महत्‍त्‍वपूर्ण स्‍थलों में से एक है. 


मंदिर को लेकर प्रचलित हैं कथाएं
कहा जाता है कि एक बार ब्राह्मणों ने पृथ्वी पर स्थित सर्वश्रेष्‍ठ तीर्थ खोजने के लिए यात्रा शुरू की. अनेक स्‍थानों का भ्रमण करने के बाद वे शामलाजी आए, जिसे उन्‍होंने अत्‍यधिक पसंद किया और यहां उन्‍होंने एक हज़ार वर्ष तक तपस्‍या की.



इस तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने उन्‍हें यहां एक यज्ञ करने का आदेश किया. यज्ञ के आरंभ में भगवान विष्णु को यहां प्रतिस्थापित किया गया, जो कि यहां शामला के जी रूप में विराजे. इसके बाद उनसे यहां निवास करने की विनती की गई.


 


तबसे यहां श्रीविष्णु के इसी स्वरूप की पूजा होती है. एक बार देवशिल्पी विश्वकर्मा ने रोचक स्थान देखा तो उन्हें दिव्य भवन बनाने की प्रेरणा हुई. उन्होंने इस मंदिर का निर्माण मात्र एक रात में ही किया, लेकिन इसे पूरा करते हुए सुबह हो गई और वे इसे अपने साथ नहीं ले जा सके, जिससे यह यहीं स्‍थापित हो गया. 


एक आदिवासी करता था पूजा
मंदिर बनने को लेकर एक दंतकथा प्रचलित है कि एक आदिवासी को अपने खेत की जुताई में शयामल भगवान की मूर्ति प्राप्त हुई. वह रोज एक दीपक जलाकर इसकी पूजा करता था और इसके वरदान स्‍वरूप उसके खेतों में भरपूर फ़सल उपजती थी.



एक वैष्णव व्यापारी जो कि खुद भी श्रीहरि का भक्त था उसने एक मंदिर बनवाकर मूर्ति को इसमें स्थापित करा दिया. इसके बाद से शामलाजी मंदिर में पूजे जाने लगे. तत्कालीन शासकों ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो कि मेशवो नदी के किनारे स्थित है.