शुरू हो गए श्राद्ध पक्ष, पा लीजिए पितृ दोष से मुक्ति
अलावा माता-पिता वृद्ध जनों की सेवा न करना, उनकी इच्छा न पूरी करना, अवज्ञा करना, हरे वृक्ष काटना, पीपल-बरगद काटना, नदियों में मल-मूत्र त्याग, गो हत्या, पितरों को भूल जाना, ठीक ढंग से श्राद्ध न होना अथवा अंतिम संस्कार न होने से भी पितृ दोष लगता है. श्राद्ध पक्ष में इसका निवारण किया जाता है.
नई दिल्लीः सनातन परंपरा जीवन का आधार है और भारतीय मनीषा में यह रचा-बसा है कि परोपकार ही पुण्य है. इसलिए अभीष्ट है कि मनुष्य जन्म में जीव हर अंतिम संभव प्रयास तक परोपकार करे और उनके प्रति आभारी रहे,
जिनके कारण जीवन संभव हो सका. वर्तमान को कभी अपनी शक्ति का अभिमान न हो और उसे भूत और भविष्य से भी जुड़ाव बना रहे, इसके लिए श्राद्ध पक्ष के 15 दिन इसी आभार समर्पण के दिन हैं.
शुरू हो गया श्राद्ध पक्ष
श्राद्ध, यानी कि श्रद्धा अर्पित करना. 2 सितंबर (बुधवार) उदया तिथि से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष का समय शुरू हो रहा है. सनातन पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से ही पितृ पक्ष की शुरुआत हो जाती है, जिसे श्राद्ध पूर्णिमा कहते हैं.
इस दिन गंगा नदी या किसी पवित्र जल स्त्रोत में स्नान कर शुद्धि की प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है और इसके बाद पितरों को जल तर्पण करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है.
मनुष्य जीवन में हैं तीन ऋण
सनातन परंपरा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य का जीवन शुरू होने के साथ उस पर तीन ऋण चढ़ जाते हैं. यह तीन हैं देव ऋण, ऋषि ऋण व पितृ ऋण. इनमें से देव ऋण भगवान विष्णु के निमित्त, ऋषि ऋण महादेव शिव के प्रति और पितृ ऋण माता-पिता व पूर्वजों का ऋण होता है.
इन तीनों ही ऋणों का भुगतान न किया जाए तो यह त्रिविध ताप बन जाते हैं. देव ऋण व ऋषि ऋण तो प्रातः-संध्या वंदन से उतर जाते हैं, लेकिन पितृ ऋण सिर्फ पितरों की सेवा से ही उतारा जा सकता है.
महाराज पांडु से जुड़ी है कथा
इसके लिए महाभारत में एक कथा है कि महाराज पांडू को जब संतान न उत्पन्न करने का श्राप मिला तो वह वन में पत्नियों (कुंती व माद्री) के साथ निवास करने लगे. एक दिन उन्होंने स्वप्न में देखा कि वह आकाश मार्ग से ऋषियों के साथ देवलोक की ओर जा रहे हैं.
कुछ दूर चलने के बाद ऋषिगण पीछे मुड़े और कहने लगे कि राजन आप आगे नहीं जा सकते, क्योंकि आपने अभी तक पितृ ऋण से मुक्ति नहीं पाई है. इतना कहकर ऋषिगण ब्रह्म लोक को चले गए.
जब पितृ ऋण अधूरा होने कारण ब्रह्म लोक नहीं जा सके राजन
इसके बाद राजन का स्वप्न टूटा तो उन्होंने कुलगुरु से पितृ ऋण से उबरने का उपाय पूछा और उपाय न जाने पर कौन से दोष हो सकते हैं उनके बारे में जिज्ञासा व्यक्त की. तब कुलगुरु ने उन्हें बताया कि राजधर्म के अनुसार आपको प्रजापालक होना चाहिए था, लेकिन आपने पश्चाताप में वनवास लिया है.
ऐसी स्थिति में आपका दायित्व बनता है कि आप प्रजा को उसका प्रतापी भविष्य दें. राजा होने के कारण पूर्वजों के प्रति यही आपका पितृ ऋण है.
इसलिए लग जाता है पितृ दोष
उन्होंने बताया कि पितृ ऋण पूरा न किए जाने के कारण मनुष्य पितृ दोष का भागी बनता है. इसके अलावा माता-पिता वृद्ध जनों की सेवा न करना, उनकी इच्छा न पूरी करना, अवज्ञा करना, हरे वृक्ष काटना, पीपल-बरगद काटना, नदियों में मल-मूत्र त्याग, गो हत्या, पितरों को भूल जाना, ठीक ढंग से श्राद्ध न होना अथवा अंतिम संस्कार न होने से भी पितृ दोष लगता है.
प्राचीन संस्कृति में आश्विन मास की कृष्ण पक्ष के 15 दिन उन्हीं पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पण का दिन है. इस दौरान जो जातक पितृ दोष के कारण पीड़ित होते हैं व पितरों की शांति कराकर इसे मुक्त हो सकते हैं. ज्योतिष में पितृ दोष सबसे बड़ा दोष माना गया है.
जिस जातक की कुंडली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है. पितृदोष से पीड़ित जातक की उन्नति में बाधा रहती है.
श्राद्ध पक्ष में ऐसे पा सकते हैं पितृ दोष से मुक्ति
अपने पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने से तो पितृदोष से मुक्त ही सकते हैं. इसके अलावा जनकल्याण के कार्य, पौधे लगाना, गायों के लिए पेयजल की व्यवस्था करना व उन्हें हरी घास व गुण खिलाएं. घर के मुखिया पहला ग्रास कौओं के लिए निकालकर उन्हें खिला दें.
उसे अलग कर लें. श्राद्ध पक्ष में भागवत सुनने से भी पितृ दोष का नाश होता है. ब्राह्मणों-कन्याओं को भोजन कराएं और हनुमान बाहुक का पाठ करके हुनुमान जी का ध्यान करें. इससे भी पितृ दोष का प्रभाव कम होता है.
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