नई दिल्लीः घने-भीषण और नितांत निर्जन वन मार्ग से होते हुए तथागत गुजर रहे थे. हवा की सांय-सांय के बीच एक कठोर ललकारती आवाज गूंजी, ठहर जाओ. तथागत ने सुना, लेकिन उनके कदम नहीं रुके. आवाज फिर गूंजी, ठहर जाओ. इस बार बुद्ध रुक गए और उसी ललकारती लेकिन शांत स्वर में बोले, मैं तो ठहर गया, तू कब ठहरेगा? डाकू अंगुलिमाल को किसी से ऐसे वापस उत्तर मिलने की आशा नहीं थी. वह स्तब्ध रह गया. सामने आया, लेकिन नतमस्तक होते हुए. उसने तलवार फेंक दी, अंगुलियों की माला उतार दी और तथागत के चरणों में बैठ गया. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ईसा से तकरीबन 500 साल पहले घटी यह घटना भारतवर्ष का गौरवशाली इतिहास है. इसी इतिहास की धरोहर आज भी भारत के चप्पे में बिखरी पड़ी है. इनके सान्निध्य में पहुंचने वाले को यह शांति का संदेश देती है और गीता का जो सूत्र युद्धभूमि से दिया गया था उसे एक बार फिर विस्तार से समझाती है. माटी में बैठकर, गोदी में सिर रखकर और मन के एक-एक कोने तक शांति का अहसास कराते हुए आवाज देती है बुद्धं शरणम् गच्छामि. महात्मा बुद्ध से जुड़े इन विशेष स्थानों पर डालते हैं एक नजर-


लुंबिनी में हुआ था जन्म
गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ था. तिथि थी, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि. शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु ही महाराज शुद्धोधन की राज्यभूमि थी. आज उत्तरप्रदेश के 'ककराहा' नामक ग्राम से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अंदर रुमिनोदेई नामक ग्राम है.



यही लुम्बिनी है. गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में इसकी प्रसिद्धि है. कपिलवस्तु में एक स्तूप था, जहां भगवान बुद्ध की अस्थियां रखी थीं. 


कोलिय गणराज्य से थीं बुद्ध की माता
उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महा मायादेवी जब अपने माइके कोलिय गणराज्य की राजधानी देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में एक शाल वृक्ष के नीचे बुद्ध को जन्म दिया. कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था. बुद्ध का जन्म शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ था. बचपन में नाम रखा गया सिद्धार्थ


बोधगयाः जहां मिला ज्ञान और कहलाए बुद्ध
यह स्थान बिहार के प्रमुख हिन्दू पितृ तीर्थ 'गया' में स्थित है. गया नाम गयासुर के नाम पर रखा गया था. इसी स्थान पर बुद्ध ने एक वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया. जब उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था, तब भी पूर्णिमा ही थी. इसे भगवान बुद्ध की निर्वाण स्थली भी कहा जाता है, जो गया स्टेशन से 7 मील दूर है.



यहीं पर वह वृक्ष भी है जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. आज इस वृक्ष की उम्र 2500 वर्ष से कहीं अधिक है. इस वृक्ष की ही एक शाखा को अशोक ने श्रीलंका में ले जाकर उगाया था. 


यूनेस्को ने किया है संरक्षित
वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया, जहां हिन्दुओं और बौद्धों के कई प्राचीन मंदिर आज भी मौजूद हैं. बिहार में इसे मंदिरों के शहर के नाम से जाना जाता है. यहां का सबसे प्रसिद्ध मंदिर महाबोधि मंदिर है, जहां विश्वभर के बौद्ध अनुयायी दर्शन करने के लिए आते हैं.


सारनाथः जहां गूंजी पहली बुद्धवाणी
उत्तरप्रदेश के वाराणसी के पास स्थित है सारनाथ. यहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था. बनारस छावनी स्टेशन से पांच मील, बनारस सिटी स्टेशन से तीन मील और सड़क मार्ग से सारनाथ चार मील है. यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशनहै. सारनाथ में बौद्ध धर्मशाला है और यह बौद्ध तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है. 



भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था. यहीं से उन्होंने धम्मचक्र प्रवर्तन प्रारंभ किया था. सारनाथ में कई दर्शनीय स्थल हैं- अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का मंदिर, धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, सारनाथ का वस्तु संग्रहालय, जैन मंदिर, मूलगंधकुटी और नवीन विहार. 


कुशीनगर : वह भूमि जहां हुआ महापरिनिर्वाण
उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में स्थित इसी स्थान पर महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण (मोक्ष) हुआ था. गोरखपुर जिले में कसिया नामक स्थान ही प्राचीन कुशीनगर है. यहां पर बुद्ध के आठ स्तूपों में से एक स्तूप बना है, जहां बुद्ध की अस्थियां रखी थीं. यहां बिड़लाजी की धर्मशाला है तथा भगवान बुद्ध का स्मारक है.



यहां खुदाई से निकली मूर्तियों के अतिरिक्त माथाकुंवर का कोटा 'परिनिर्वाण स्तूप' तथा 'विहार स्तूप' दर्शनीय हैं. 80 वर्ष की अवस्था में तथागत बुद्ध ने दो शाल वृक्षों के मध्य यहां महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था. यह प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ है.


अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव जानकी नवमी


सांची का स्तूप
भोपाल से 28 मील दूर और भेलसा से 6 मील पूर्व सांची स्टेशन है. यहां बौद्ध स्तूप हैं जिनमें एक की ऊंचाई 42 फुट है. सांची स्तूपों की कला प्रख्यात है. सांची से 5 मील सोनारी के पास 8 बौद्ध स्तूप हैं और सांची से 7 मील पर भोजपुर के पास 37 बौद्ध स्तूप हैं. सांची में पहले बौद्ध विहार भी थे. यहां एक सरोवर है जिसकी सीढ़ियां बुद्ध के समय की कही जाती हैं.


कौशाम्बी : तथागत का विहार स्थल
इलाहाबाद जिले में भरवारी स्टेशन से 16 मील पर स्थित यह नगरी यमुना नदी के किनारे बसी हुई थी. यहां एक स्तूप के नीचे बुद्ध भगवान के केश तथा नख सुरक्षित हैं. यहां स्थित प्रमुख पर्यटन स्थलों में शीतलामाता मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, प्रभाषगिरि और राम मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं. यह बौद्ध व जैन धर्म का भी पुराना केंद्र है.



पहले यह जगह वत्स महाजनपद के राजा उदयन की राजधानी थी. माना जाता है कि बुद्ध छठे व नौवें वर्ष यहां घूमने के लिए आए थे. कौशाम्बी से एक कोस उत्तर-पश्चिम में एक छोटी पहाड़ी थी जिसकी प्लक्ष नामक गुफा में बुद्ध कई बार आए थे. 


आज 7 मई को है बुद्ध पूर्णिमा, इन बातों का रखें ध्यान आज