अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव जानकी नवमी

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को माता जानकी की उत्पत्ति हुई. इस साल 2 मई को जानकी नवमी मनाई जाएगी. इस दिन लोग माता जानकी के लिए व्रत रखते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम और माता जानकी को विधि-विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 1, 2020, 04:16 PM IST
    • बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को माता जानकी की उत्पत्ति हुई थी
    • यह व्रत करने से कन्यादान या चारधाम तीर्थ यात्रा समतुल्य फल की प्राप्ति होती है
अमोघ, सौभाग्य और मनोवांछित फलदायी है माता सीता का जन्मोत्सव जानकी नवमी

नई दिल्लीः जैसे श्रीहरि के अवतार रूप श्रीराम की मान्यता मर्यादा और आदर्श के तौर पर है, ठीक उसी तरह देवी सीता उनकी पत्नी बनने से पहले नारी के तौर पर आदर्श स्थापित करती हैं. यही कारण है कि जिस तरह चैत्र शुक्ल नवमी का व्रत श्रद्धालु करते हैं, ठीक एक महीने बाद बैशाख शुक्ल नवमी को माता जानकी जन्मोत्सव, जानकी नवमी के तौर पर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ति का दिन है. गृहस्थ इस दिन व्रत रखते हैं और महिलाएं सौभाग्य का फल पाती हैं. 

माता जानकी की हुई थी उत्पत्ति
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को माता जानकी की उत्पत्ति हुई. इस साल 2 मई को जानकी नवमी मनाई जाएगी. इस दिन लोग माता जानकी के लिए व्रत रखते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम और माता जानकी को विधि-विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती है. साथ ही व्रती को मनोवांछित फलों की भी प्राप्ति होती है. 

ऐसे हुआ था माता सीता का प्राकट्य
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला राज्य में भीषण अकाल पड़ा. कई वर्षों तक बारिश न होने के कारण प्रजा त्राहि कर उठी. राजा जनक ऋषि-मुनियों की शरण में गए और इस आपदा का कारण व निवारण पूछा. ऋषियों ने कहा कि आपदा का कारण कुछ भी हो, लेकिन इसका निवारण यह है कि महाराज जनक खुद खेत में हल चलाएं तो इंद्रदेव की कृपा जरूर बरसेगी.

राजा जनक यह उपाय मानकर आ गए और हल चलाने के लिए तत्पर हो गए.

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हल की नोंक के कर्षण से भूमि से मिलीं देवी सीता
तय तिथि वैशाख शुक्ल नवमी के दिन राजा जनक ने ऋषि-मुनियों के कथनानुसार खेत में हल चलाने पहुंचे. भूमि कर्षण का कार्य हो रही था और सूर्य नारायण अब सीधे सिर के ऊपर प्रचंड ताप बरसाने लगे थे. पसीने में लथपथ राजा बिना विचलित हुए आगे बढ़ रहे थे, वह रुकते भी नहीं अगर हल की नोंक जमीन में धंसी किसी वस्तु से टकराकर अड़ नहीं जाती. हल आगे नहीं बढ़ा तो राजा जनक वहां खुदाई का आदेश दिया. खुदाई में उन्हें एक कलश प्राप्त हुआ, जिसमें एक कन्या थी. राजा जनक ने उन्हें अपनी पुत्री मानकर उनका पालन-पोषण किया. उस समय हल की नोंक को सीत और उससे धरती पर खिंची रेखा को सीता कहते थे. इसलिए पुत्री का नाम सीता रखा गया. 

यह है जानकी नवमी का महत्व
यह व्रत करने से कन्यादान या चारधाम तीर्थ यात्रा समतुल्य फल की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि जानकी नवमी के दिन सुहाग की वस्तुएं दान करने से व्रती को कन्या दान के समान फल प्राप्त होता है. ऐसे में इस दिन कुमकुम, चूड़ी, बिंदी आदि चीज़ों का दान जरूर करें. इसके साथ ही जानकी नवमी के दिन विशेष रूप से पूजा आराधना करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. अगर आप अपने जीवन में सुख सौभाग्य चाहते हैं तो जानकी माता को सोलह श्रृंगार अर्पित करें. अगर आप पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं तो इसके लिए सीता स्त्रोत का पाठ करें.

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