नई दिल्लीः कार्तिक मास में दीपावली का उत्सव अपने साथ पांच पर्वों की श्रृंखला लेकर आता है. इसमें धनतेरस से पर्व की शुरुआत होकर भाई दूज का पर्व पांचवां उत्सव होता है. इस पर्व को यम द्वितीया भी कहते हैं.


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रक्षाबंधन की ही तरह भाई-बहनों के लिए पवित्र यह दिन उनके संबंधों को और प्रगाढ़ करता है. प्राचीन काल से बहनें अपने भाई के लिए इस दिन विशेष प्रार्थना करती आईं हैं. उत्तर प्रदेश व उत्तर भारत में इस पर्व को मनाने की परंपरा अलग-अलग विधानों से हैं. 


महाराज बलि के लिपिक पार्षद हैं चित्रगुप्त
दक्षिण भारत में भाई दूज महाराज बलि के स्मरण का भी दिन है.  उत्तर भारत में कायस्थ समाज चित्रगुप्त महाराज का पूजन भी करता है और कलम-दवात की विशेष पूजा करता है. मुंशी-मुनीम आदि पेशे से जुड़े लोग नई बही की शुरुआत करते हैं और खाता पूजन भी करते हैं. चित्रगुप्त महाराज यम के लिपिक पार्षद हैं और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं. इसी आधार पर यम दंडविधान करते हैं. 


यम द्वीतीया की धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग में यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे. यमुनाजी ने यमराजजी का आदर-सत्कार किया. धर्मराज ने यमुना से वरदान मांगने के लिए कहा. यमुनाजी का कहना था कि वह कृष्ण की पटरानी हैं, क्या मांगें.



धर्मराज ने फिर भी वरदान मांगने के लिए यमुनाजी से कहा. इस पर यमुना जी ने कहा कि जो मेरे अंदर स्नान करे, वह बैकुंठ जाए. यमराज का कहना था कि इससे तो मेरा लोक ही सुना हो जाएगा, लेकिन आज के दिन (यम द्वितीया) जो भाई-बहन हाथ पकड़कर स्नान करेंगे वह यमलोक न जाकर बैकुंठ जाएंगे. 


भाई दूज की एक कथा यह भी
ऐसा माना जाता है कि इस खास दिन पर हिंदू धर्म में मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए. यमुना ने कई बार यमराज को बुलाया था लेकिन वह उन्हें दर्शन देने में असमर्थ थे. हालांकि, एक बार जब यमराज ने यमुना का दौरा किया, तो उनका बहुत प्यार और सम्मान के साथ स्वागत किया गया. यमुना ने अपने माथे पर तिलक भी लगाया,  इतना प्यार पाने के बाद यमराज ने यमुना से वरदान मांगने को कहा. उनकी बहन ने यमराज को हर साल एक दिन चिह्नित करने के लिए कहा जहां वह उसे देखने जाएंगे. इस प्रकार, हम भाई दूज को भाई और बहन के बीच के बंधन को मनाने के लिए मनाते हैं


उत्तर भारत में गाली देने की परंपरा
उत्तर भारत में बहने भाई को गाली देती हैं  कोसती भी हैं.  बहनों द्वारा भाईयों को गाली या श्राप देने के पीछे एक प्राचीन कहानी है. एक राजा के पुत्र की शादी थी. उसने अपनी विवाहिता पुत्री को भी बुलाया. दोनों भाई बहन में खूब स्नेह था. जब बहन भाई की शादी में शामिल होने आ रही थी, तो रास्ते में उसने एक कुम्हार दंपति को बातें सुना. वे कह रहे थे कि राजा कि बेटी ने अपने भाई को कभी गाली नहीं दी है. वह बारात के दिन मर जाएगा. यह सुनते ही बहन अपने भाई को कोसते हुए घर गई. 



बारात निकलते वक्त रास्ते में सांप, बिच्छू जो भी बाधा आती उसे मारते हुए अपने आंचल में डालते गई. वह घर लौटी तो वहां यमराज पहुंच गए. यमराज भाई के प्रति बहन का ये स्नेह को देखकर प्रसन्न हुए और कहा कि यम द्वितीया के दिन बहन अपने भाई को गाली व श्राप दे, तो भाई को मृत्यु का भय नहीं रहेगा. 


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