प्रकृति और परिवार की पूजा का प्रतीक है गोवर्धन पूजा

वैदिक रीति व मान्यता के अनुसार इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि की पूजा की जाती है. साथ में गायों का श्रृंगार करके उनकी आरती की जाती है और उन्हें फल मिठाइयां खिलाई जाती हैं. गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Nov 15, 2020, 05:02 PM IST
  • परिवार की एकता और अखंडता का प्रतीक है गोधन पूजा
  • इस दिन एक ही रसोई से घर के हर सदस्य का भोजन बनता है.
  • भोजन में विविध प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं.
प्रकृति और परिवार की पूजा का प्रतीक है गोवर्धन पूजा

नई दिल्लीः दीपावली के बाद अगला दिन अन्नकूट या गोवर्धन पूजा के नाम से विख्यात है. गोवर्धन पूजा में अन्न पूजा, परिवार पूजा, प्रकृति पूजा, पशुधन और संपत्ति आदि की पूजा की जाती है. गोवर्धन पूजा सामाजिक-व्यावहारिक रूप से एक सम्मिलित परिवार के बीच आपसी प्रेम, प्रतिष्ठा, एकता और मेलजोल की प्रधानता का दिन है. 

ऐसे होती है गोवर्धन पूजा
वैदिक रीति व मान्यता के अनुसार इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि की पूजा की जाती है. साथ में गायों का श्रृंगार करके उनकी आरती की जाती है और उन्हें फल मिठाइयां खिलाई जाती हैं. गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है.

इसके बाद उसकी पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा की जाती है.
 
रसोई में एक साथ बनता है भोज
इस दिन एक ही रसोई से घर के हर सदस्य का भोजन बनता है. भोजन में विविध प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं. इसमें प्याज लहसुन जैसे तामसी खाद्य का प्रयोग नहीं होता है. भोजन बनाकर श्रीकृष्ण को भोग लगाएं. इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.

एक साथ भोजन करने घर में खूब समृद्धि और सुमति आती है. 

तुलसीदास ने भी बताया है परिवार में एकता का महत्व
तुलसीदास ने मानस में लिखा है, जहां सुमति तंह संपत्ति नाना, जहां कुमति तंह विपति निदाना. यानी जहां परिवार में सुविचार, वैचारिक एकता और परस्पर प्रेम होता है, वहां संपत्ति बढ़ती है वहीं दूसरी ओर जहां परिवार में वैचारिक भिन्नता के कारण मतभेद हो, मन न मिले, एक-दूसरे के नीचा दिखाने की प्रवृत्ति हो वहां विपत्ति सदैव अपना घर बनाए रहती हैं. 

श्रीकृष्ण ने तोड़ा इंद्र का घमंड
लोक मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने देवराज इंद्र का घमंड तोड़ा था. ब्रज के लोग देवराज से डरकर उनकी पूजा करते थे, जिसमें उनकी संपत्ति का बड़ा भाग खर्च हो जाता था. वहीं नन्हें-नन्हें बालक दूध-माखन को तरसते रहते थे. ऐसे में श्रीकृष्ण ने इंद्र पूजा बंद करवा दी.

नाराज इंद्र ने ब्रज क्षेत्र में भयंकर वर्षा कर दी, जिससे समस्त क्षेत्र डूबने लगा. तब श्रीकृष्ण ने ग्वाल-बालों के साथ मिलकर गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठिका पर उठा लिया और सभी की रक्षा की. इंद्र का घमंड चूर-चूर हो गया. 

समझिए गोवर्धन पूजा का मर्म
गोवर्धन पूजा के मूल में यही घमंड की वृत्ति को त्यागने का मर्म छिपा हुआ है. गोबर से भगवान बनाए जाने का तात्पर्य है कि हम अपने जीवन में जितना भी वैभव के पीछे भागते हैं, वह अंत में सिर्फ यही है, गोबर या मिट्टी. इसलिए घमंड तो नहीं ही करना चाहिए.

आधुनिक युग में हम EGO नामक की बीमारी से ग्रस्त हैं. कई अपराध की वजह यह झूठा गुरूर है. राह चलते किसी की गाड़ी लड़ गई, आप उतर कर मारपीट करने लगते हैं. मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं. छोटी जाति-बड़ी जाति, अमीर-गरीब के नाम पर लड़ते हैं. यही गुरूर है. गोवर्धन पूजा इसी मर्म को समझने का दिन है. 

सेठ के परिवार की कथा
व्रत कथाओं के श्रवण में एक और कथा आती है. एक धनी सेठ के पांच पुत्र थे. पांचों पुत्र पिता के आज्ञाकारी और व्यापार में सम्मिलित मेहनत करने वाले थे. पांचों की बहुएं सास को माता समझतीं और आपस में प्रेम से रहती थीं. ईश्वर की कृपा से परिवार संपन्न था और सभी कुछ कुशल था. एक रात सेठ को स्वप्न में माता लक्ष्मी ने दर्शन दिए और कहा.

देवी लक्ष्मी हुईं चंचला
सुनो मेरे भक्त, तुमने कई सालों से अनवरत मेरी सेवा की है. मैं तुमसे प्रसन्न भी रही हूं. लेकिन मेरा एक नाम चंचला भी है, जो वास्तव में मेरा स्वभाव भी है. इसलिए अब मैं जाना चाहती हूं और बाहर भ्रमण करना चाहती हूं. मैं तो आज सुबह ही निकल जाती, लेकिन तुम्हारे प्रेम वश रुकी रही. अब मैं तुम्हें मनचाहा वर देकर जाऊंगी, जो चाहो मांगो. 

माता लक्ष्मी ने दिया वरदान
सेठ ने बहुत विनय की कि माता रुक जाइए, मत जाइए, लेकिन देवी वरदान देकर जाने पर अड़ी रही हैं. ऐसे में सेठ ने सोचा कि धन-संपदा मांग भी लूं तो कोई लाभ नहीं, देवी के जाते ही वह भी कब तक रुकेगा. चला ही जाएगा, इसलिए विचार करके सेठ ने मांगा कि मेरे परिवार में कभी कुमति न आए

, परस्पर प्रेम रहे और विपरीत परिस्थितियों में कोई भी सदस्य किसी से चिल्ला कर बात न करें. नौकर-चाकर भी प्रसन्न रहें. देवी लक्ष्मी ने ऐसा ही वर देकर गमन किया. 

बहुएं ने बना दी नमक वाली दाल
प्रातःकाल जब सेठ उठा तो दैवयोग से उसे स्वप्न की बात याद रही. वह किसी से कुछ बोला नहीं और दैनिक कर्म में लग गया. उधर रसोई में बहुएं भोजन की तैयारी कर रही थीं. पहली बहु ने दाल चढ़ाई और ज्योंहि नमक डाला, द्वार पर धोबिन ने कपड़ों के लिए आवाज दी. बड़ी बहू ने अपनी से छोटी को दाल देखने के लिए कहा और बाहर चली गई. छोटी ने चूल्हे के पास नमक का पात्र रखा देखा तो सोचा कि भाभी नमक नहीं डाल पाईं, तो उसने नमक डाल दिया,

लेकिन ज्योंही पात्र बंद करने वाली थी कि उसके मायके से संदेश आ गया. उसने अपनी से छोटी बहु को दाल देखने को कहा और बाहर चली गई. छोटी बहु ने नमक का पात्र खुला देखा तो उसने भी समझा कि भाभी ने नमक नहीं डाला तो उसने भी नमक डाल दिया और जैसे ही पात्र हटाने वाली थी कि उसे सास ने आवाज दे दी. 

सेठ ने बिना कुछ बोले किया भोजन
इस तरह पांचों बहुओं ने एक-दूसरे को दाल देखने के लिए कह दिया और एक-एक कर सभी नमक डालती चली गईं. कुछ देर बाद सेठ के भोजन का समय हुआ. मुख में पहला ही कौर रखते हुए उन्हें अहसास हो गया कि देवी लक्ष्मी का कहा सच हो रहा है.

लेकिन बहुओं को डांटने के बजाय सेठ ने चुपचाप भोजन किया और गद्दी पर चला गया. कुछ देर बाद बड़ा बेटा भोजन के लिए आया. उसे भी पहले कौर में नमक तेज होने का अहसास हुआ. लेकिन उसने पूछा कि क्या पिताजी ने भोजन कर लिया, बहु ने जवाब दिया, जी उन्होंने कर लिया.

परिवार में नहीं हुआ विवाद
बड़े बेटे ने सोचा कि जब पिताजी ने नहीं कुछ कहा, तो मैं क्या बोलूं. ऐसा सोचकर वह भी चुपचाप भोजन करके चला गया. इसी तरह एक-एक करके अन्य लड़के भी भोजन करके चले गए, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा. रात हुई.

स्वप्न में एक बार फिर मां लक्ष्मी आईं, सेठ ने कहा- माता कहिए, क्या आज्ञा है? देवी ने कहा- आज्ञा क्या, मेरा आसन यथावत तैयार करो. जिस घर में सभी लोग दाल में 1 किलो नमक खा जाएं और कोई विवाद न हो तो वहां से मैं कहां जाऊंगीं. 

यह कथा सीख देती है कि परिवार में एकता, एकरस और समरसता बनाए रखना बेहद जरूरी है. गोवर्धन पूजा का यही मर्म है. 

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