नई दिल्लीः हरिद्वार में लगने वाले पावन पर्व महाकुंभ की तैयारियां शुरू हो गई हैं. 21वीं सदी के तीसरे दशक की शरुआत ही आध्यात्मिक आयोजन से हो रही है. ऐसे में श्रद्धालुओं में उल्लास भी है.


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हालांकि Corona महामारी का डर भी है इसलिए बचाव के तरीकों और Guidelines के पालन के साथ 14 जनवरी 2021 से महाकुंभ पर्व का शुभारंभ होगा. यह 48 दिनों तक चलेगा और इस दौरान शाही स्नान की तारीखें घोषित हो गई हैं. 


इस महाकुंभ की खास बात
इस बीच एक बड़ी बात गौर करने वाली है कि आखिर महाकुंभ का आयोजन इस साल कैसे हो रहा है? य़ह सवाल इसलिए उठना लाजिम है क्योंकि महाकुंभ को लेकर पौराणिक आख्याओं और सनातन परंपरा के आधार पर कुछ नियम हैं.



इसमें सबसे जरूरी नियम है महाकुंभ का 12 साल में लगना. इस साल हरिद्वार में लगने वाला महाकुंभ 11 साल में ही लग रहा है. इस तथ्य को लेकर बीते दो सालों में विद्वानों के बीच लंबा मतभेद रहा है. कई विद्वान 11 साल में कुंभ के आयोजन के पक्षधर नहीं थे. 


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आखिर क्या रही इसकी वजह
महाकुंभ के आयोजन में 12 वर्षों के समय काल के साथ ग्रह-नक्षत्रों की उचित स्थिति का होना भी जरूरी है. मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में बृहस्पति की उपस्थिति या प्रवेश होने पर हरिद्वार में कुंभ आयोजित किया जाता है. यह नियम केवल हरिद्वार में ही कुंभ के आयोजन के लिए है.



अन्य तीन स्थानों (प्रयागराज, नासिक और उज्जैन) के लिए यह राशिय़ों और ग्रहों की स्थिति के लिए यह नियम अलग है. 


2022 में कुंभ राशि में नहीं है बृहस्पति
12 वर्षों का समयकाल 2022 में पूरा हो रहा है, लेकिन ग्रहों की स्थिति उस दौरान भिन्न हो जाएगी. तब बृहस्पति कुंभ राशि में नहीं होगी. यही वजह रही कि बीते साल 2020 में इसे लेकर असमंजस की स्थिति रही कि कुंभ का आयोजन 2021 में हो या 2022 में.



2023 में यह बिल्कुल भी नहीं हो सकता था, क्योंकि तब न तो बृहस्पति कुंभ राशि में रहते और न ही 12 साल का समय होता. यह 13वां साल हो जाता. 


उज्जयिनी विद्वत परिषद की बैठक में निर्णय
बीते साल जून 2020 में उज्जयिनी विद्वत परिषद की बैठक हुई. शंकराचार्यों, आचार्यों तथा हरिद्वार, काशी की विद्वत परिषद ने इस बारे में विस्तृत चर्चा की. इस चर्चा में सभी ने अपने विचार रखे. इसमें सबसे खास तर्क रहा कि कुंभ के आयोजन में राशि और ग्रहों की स्थिति का होना पहला शर्त है.



12 वर्ष का समय काल उचित राषि में ग्रहों के प्रवेश का केवल समय काल है, जो कि घट-बढ़ सकता है. इसके लिए अधिकमास, लोप तिथि आदि का उदाहरण भी रखा गया. इस साल हिंदी वर्ष में 13 महीने हैं. विद्वानों ने निर्णय लिया कि ग्रहों की चाल के कारण कुंभ की तिथि एक साल पहले खिसक रही है. इसलिए 2021 में ही कुंभ का आयोजन किया जा रहा है. 


14 जनवरी से हरिद्वार में पतितपाविनी गंगा के किनारे आस्था का जमघट होगा. जहां आध्यात्म की कलकल बहती धारा के साथ विश्व कल्याण की मंशा से वेदमंत्र गूंजेंगे.  


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