नई दिल्लीः चल-अचल, जीव-निर्जीव, जन्म-मरण, जिस तरह से यह शब्द यु्ग्म एक दूसरे को पूर्ण करते हैं. ठीक उसी प्रकार नारायण को समय के साथ युग्म में रखा जाए तो वह कार्तिक नारायण कहलाते हैं. गीता में भी वह कहते हैं ऋतुओं में मैं वसंत हूं और मासों में मास कार्तिक मास हूं.


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कार्तिक मास श्रीहरि को अत्यंत प्रिय है. श्रीहरि ने खुद को मलमास का अधिष्ठाता बताया है, लेकिन कार्तिक मास स्वयं उनका ही रूप है. इस मास में उन्होंने कई लीलाएं रची हैं. 


कार्तिक मास हो चुका है प्रारंभ
श्रीहरि ने मत्स्य अवतार लेकर जीवन की रक्षा की है. तो शंखचूर्ण राक्षस का वध किए जाने में सहायक बने हैं. शालिग्राम के रूप में धरती पर अवतरित हुए हैं तो वृंदा संग विवाह कर जगत का कल्याण किया. गज को ग्राह से मुक्त कराया है.



उन्होंने कार्तिक को महज एक मास नहीं, बल्कि मोक्ष का मार्ग बताया है. आश्विन शुक्ल पूर्णिंमा के बाद अब 1 नवंबर से कार्तिक मास प्रारंभ हो चुका है. श्रद्धालु इसके महात्म्य के अनुसार कार्तिक के प्रत्येक दिन पुण्य लाभ कमाते हैं. 


देवी सत्यभामा ने किया प्रश्न
एक बार देवी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे स्वामी, आपने भगवान विष्णु के कार्तिक मास से प्रेम के विषय में बताया. अब यह भी बताइए कि श्रीहरि को कार्तिक मास इतना क्यों प्रिय है.



देवी सत्यभामा के इस प्रश्न पर भगवान मुस्काए और कहा- हे देवी कार्तिक मास श्रीहरि का परम भक्त है. वह उनका इतना नाम जाप करता है कि उसका स्वयं नाम ही नहीं रह जाता है. इस अनन्य भक्ति के कारण ही कार्तिक श्रीहरि को प्रिय है. 


श्रीकृष्ण ने सुनाई कथा
फिर उन्होंने एक कथा सुनाई. बताया कि कई कल्पों पहले शंखासुर नामक राक्षस ने त्रिलोक विजय कर लिया. इससे भयभीत देवका कंदराओं में निवास करने लगे. शंखासुर को पता चला तो वह सोचने लगा कि अब कौन सी अदृश्य शक्ति देवताओं को तेज प्रदान कर रही है.



इसी विचार में वह भ्रमण कर रहा था कि एक निर्जन में उसे वेदमंत्र सुनाई दिए. उसने देखा कि अग्नि देव हवि लेकर शक्तिमान हो रहे हैं और देवताओं को भी पुष्ट कर रहे हैं. 


शंखासुर का अत्याचार
उसने यह देखकर वेद और बीजमंत्र चुरा लेने की योजना बनाई. वह ब्रह्मदेव के सत्यलोक पहुंचा और वेदों को बंदी बना लाया. मार्ग में वेद उसके चंगुल से निकल गए और सागर में गिर पड़े. शंखासुर के हाथ कुछ न आया. इधर मंत्रों के जल विलीन हो जाने से देवता निर्बल हो गए.


तब ब्रह्मा जी क्षीर सागर पहुंचे और घंटी, नाद, अर्चना हवि-हवन आदि के जरिए स्तुति कर प्रभु को जगाया और शंखासुर के अत्याचार से मुक्ति की प्रार्थना की. 


श्रीहरि ने किया जनकल्याण
तब श्रीहरि ने ब्रह्म देव से कहा कि आपने इस पुण्य कार्य के लिए मुझे जिस काल में जगाया है आज से वह दिन-मास, नक्षत्र बेला आदि सभी मेरे प्रिय होंगे. घंटी, हवन आदि से सहज तरीके से मेरा आह्वान हो सकेगा. मैं इसी दिन के स्मरण के लिए जल में विश्राम करूंगा और जगाने वाले को पुण्य प्रदान करूंगा.



इसके बाद श्रीहरि ने मत्स्य रूप लेकर वेद और बीजों को सागर से खोज निकाला और शंखासुर का वध कर दिया. उसी शंखासुर की अस्थियां शंख बन गईं, जिसे श्रीहरि ने पवित्र बताकार पूजा में शामिल कर लिया. इसलिए कार्तिक मास श्रीविष्णु को प्रिय है. 


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