`अगर 80 के दशक में भी खेलते कोहली तो होते इतने ही कामयाब`, मुरीद हुए ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान
Virat Kohil T20 World Cup: टी20 वर्ल्ड कप में शानदार फॉर्म में चल रहे विराट कोहली की बल्लेबाजी की कायल पूरी दुनिया हो चुकी है. टी20 वर्ल्ड कप में अपनी धुआंधार पारी के दम पर विराट कोहली एक तरफ जहां टीम इंडिया की जीत में अहम भूमिका निभा रहे हैं तो वहीं पर लगातार कई सारे रिकॉर्ड अपने नाम करते दिख रहे हैं.
Virat Kohil T20 World Cup: टी20 वर्ल्ड कप में शानदार फॉर्म में चल रहे विराट कोहली की बल्लेबाजी की कायल पूरी दुनिया हो चुकी है. टी20 वर्ल्ड कप में अपनी धुआंधार पारी के दम पर विराट कोहली एक तरफ जहां टीम इंडिया की जीत में अहम भूमिका निभा रहे हैं तो वहीं पर लगातार कई सारे रिकॉर्ड अपने नाम करते दिख रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया में जारी टी20 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम अभी तक अपने चार मैच खेल चुकी है. खेले गए इन चार मैचों में विराट कोहली के बल्ले से 220 रन आ चुके हैं.
'सत्तर और अस्सी के दशक में भी बेहतर बल्लेबाज रहते विराट'
विराट कोहली की शानदार फॉर्म के मुरीद होने वालों में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान किम ह्यूजेस भी शामिल हो चुके हैं जिनका मानना है कि अपनी तकनीक और तेवर के दम पर विराट कोहली सत्तर और अस्सी के दशक के मैल्कम मार्शल और माइकल होल्डिंग जैसे तेज गेंदबाजों के सामने भी कामयाब ही रहते.
उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा समय में टेस्ट बल्लेबाजी का स्तर गिर गया है. सत्तर और अस्सी के दशक में 70 टेस्ट खेल चुके ह्यूजेस अपने जमाने के स्टाइलिश बल्लेबाज माने जाते थे, लेकिन खराब फॉर्म के कारण बाद में नहीं खेले .
'किसी भी दौर में शानदार खिलाड़ी होते विराट कोहली'
किम ह्यूजेस ने कहा, ‘विराट कोहली किसी भी दौर में शानदार खिलाड़ी होते क्योंकि उनके पास जबरदस्त तकनीक और साहस है. वह किसी भी युग में अच्छा खेलते. कोहली सत्तर और अस्सी के दशक की कैरेबियाई टीम के खिलाफ भी उतने ही कामयाब होते. विवियन रिचडर्स की तरह नहीं लेकिन फिर भी शानदार रहते. विव सबसे ऊपर है लेकिन विराट निश्चित तौर पर ग्रेग चैपल, एलन बॉर्डर और जावेद मियांदाद की जमात में होते.’
'तकनीकी दिक्कतों को झेल रहे हैं बल्लेबाज'
ह्यूजेस का मानना है कि टी20 क्रिकेट के कारण मौजूदा दौर के बल्लेबाज तकनीकी दिक्कतें झेल रहे हैं.
इस पर उन्होंने कहा, ‘टी20 क्रिकेट से बल्लेबाजों की तकनीक को नुकसान हुआ है. इस दौर के अधिकांश टेस्ट बल्लेबाजों को पता नहीं होगा कि बैकफुट पर कैसे खेलते हैं. सीमित ओवरों के क्रिकेट के कारण वे सिर्फ फ्रंटफुट पर खेलने के आदी हो गए हैं.’
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