नई दिल्ली. मुगल हरम से जुड़ी ढेर सारी ऐतिहासिक और मनगढ़ंत कहानियां लोगों के बीच मशहूर हैं. इसमें महिलाओं की संख्या, उनकी स्थिति और बादशाहों के व्यवहार को लेकर इतिहासकारों के बीच कई मत हैं. अकबर के अलावा भी कई मुगल शासकों के हरम की कहानियां मशहूर हैं. इनमें अकबर के बेटे जहांगीर का नाम सबसे प्रमुख है. कहते हैं कि जहांगीर के हरम में दुखों पर चर्चा के लिए कोई जगह नहीं होती थी. यानी हरम में रह रही महिलाएं अपनी मुश्किलों पर चर्चा नहीं कर सकतीं. मुख्य विचार यह था कि इस जगह पर सिर्फ सुख और आनंद की चर्चा की जाए. 


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बीमार होने पर 'बीमारखाना' में शिफ्ट कर दिया जाता था
हरम में रहने वाली महिलाएं अपनी बीमारियों और किसी की मौत पर चर्चा नहीं कर सकतीं. अगर इनमें से कोई बीमार होता था तो उन्हें तब तक 'बीमारखाने' में शिफ्ट कर दिया जाता था जब तक वह स्वस्थ न हो जाए. बीमारखाने में भले ही इन महिलाओं का इलाज किया जाता हो लेकिन उन्हें अकेले ही रहना पड़ता था. विशेषरूप से उम्रदराज महिलाओं को. वो बीमारखाने में अपनी मौत का इंतजार कर रही होती थीं और उनका कोई हाल-चाल तक नहीं लेता था. सिर्फ बीमारखाने में जाने वाली दास लड़कियां ही इन महिलाओं का सहारा होती थीं. 


एक बार एंट्री और फिर नो एक्जिट
एक बार हरम में एंट्री हो जाने के बाद महिलाओं का संपर्क बाहरी दुनिया से बिल्कुल टूट जाता था. उसे आगे की पूरी जिंदगी हरम की चहारदीवारी के भीतर ही गुजारनी पड़ती थी. इस चहारदीवारी के बाहर निकलने का उसके पास सिर्फ एक विकल्प होता था. वह विकल्प था का राजा का दिल जीतना. यानी अगर राजा का दिल हरम में रह रही किसी महिला पर आ गया तो वह उसे लेकर बाहर भी जा सकता था. यह एक ऐसी शर्त थी जिसकी वजह से हरम में रह रही महिलाओं में आपसी जलन और विद्वेष भी पनपता था. 


अधिकारियों से होते थे संबंध
महिलाओं को सिर्फ राजा का दिल जीतना होता था. वो किसी और के साथ शारीरिक संबंध नहीं बना सकती थीं. इसी वजह से हरम की कई महिलाओं के संबंध वहां के अधिकारियों से भी हो जाते थे. हरम में बादशाह अपने गुप्तचर रखते थे और किसी भी तरह के विद्रोह को दबाने के लिए पूरी जानकारी अपने पास रखते थे.  


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