लाहौर. पाकिस्तान में एक हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून को रद्द कर दिया, जिसमें संघीय और प्रांतीय सरकारों की आलोचना को अपराध करार दिया था. अदालत ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुरूप नहीं है. ‘डॉन’ समाचार पत्र की खबर में कहा गया है कि लाहौर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शाहिद करीम ने राजद्रोह से संबंधित पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) की धारा 124-ए को रद्द कर दिया. खबर के अनुसार न्यायमूर्ति करीम ने राजद्रोह कानून को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर करेगा फैसले का भविष्य
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच द्वारा दिया गया यह फैसला अब देश के हर कोने में मान्य होगा. हालांकि कि अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है और सर्वोच्च अदालत फैसले को पलट देती है तब हाईकोर्ट का फैसला अमान्य हो जाएगा.
इमरान खान की रैलियों के बाद थोपे गए राजद्रोह के केस
बता दें कि पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्षी नेता इमरान ने चुनाव कराने के लिए बड़े स्तर पर रैलियां की थीं. इन रैलियों के दौरान इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ पाकिस्तान पर 100 से ज्यादा राजद्रोह के मुकदमे दर्ज किए गए थे. पाकिस्तान की वर्तमान शहबाज शरीफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को भी सीमित करने की कोशिश की थी. दरअसल बड़ी संख्या में राजद्रोह लगाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था.
क्या बोले याचिकाकर्ता के वकील
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील अबुज़ार सलमान नियाजी ने कहा- ये कानून 150 साल से ज्यादा पुराने थे और इन्हें खत्म ही कर देना चाहिए. आप ऐसा कानून बना सकते जो लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी न देता हो. यह कानून पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 19 का उल्लंघन करता है जो अभिव्यक्ति की आजादी देता है.
भारत में भी है यह कानून
अंग्रेजों द्वारा 1861 में औपनिवेशिक भारतीय उपमहाद्वीप के लिए राजद्रोह का कानून लागू किया था, यानी यह वर्तमान भारत और पाकिस्तान में समान रूप से लागू है. भारत और पाकिस्तान दोनों की दंड संहिता में सेक्शन 124 A के रूप में राजद्रोह कानून मौजूद है. आजादी के पहले कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर अंग्रेजों द्वारा इस कानून का इस्तेमाल किया गया था, इनमें महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट और मौलाना आजाद शामिल हैं.
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