नई दिल्ली: महज चार महीने पहले तक जिस कोरोना वायरस(CoronaVirus) के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था. अब वो महामारी बनकर पूरी मानव सभ्यता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है.  तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक इस महामारी का अब तक कोई मुकम्मल इलाज मौजूद नहीं है. ऐसे में प्लाज्मा थैरेपी इसके इलाज में बेहद कारगर मानी जा रही है. 


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कोरोना का समाधान तलाशने की कोशिश जारी
ऐसा नहीं कि कोरोना से निपटने की कोशिश नहीं हो रही. दुनिया के दर्जन भर से भी ज्यादा देशों में वैज्ञानिक और डॉक्टर पूरे जी-जान से इस वायरस का वैक्सीन बनाने में जुटे हैं. 


पर वैक्सीन बनाने का काम अंतिम चरण में पहुंचने के बावजूद  हकीकत ये है कि आम मरीजों के लिए बाजार में इस वैक्सीन के आते आते कम से कम साल से डेढ़ साल तक लग सकते हैं.. ऐसे में फिलहाल प्लाज्मा ट्रीटमेंट को ही इस महामारी का सबसे कारगर इलाज माना जा रहा है.


क्या है प्लाज्मा थेरेपी
दरअसल प्लाज्मा थेरेपी बीसीजी टीके की तरह होता है जो नवजात बच्चों को दिया जाता है. इससे रोगी के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है जिससे उसे कोरोना से लड़ने में आसानी होती है.


दरअसल कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट इलाज का वो तरीका है जिसमें किसी ठीक हो चुके कोरोना मरीज के खून से प्लाज्मा निकालकर दूसरे बीमार शख्स में डाल देते हैं. ये प्लाज्मा ट्रीटमेंट मेडिकल साइंस की बेसिक टेक्नीक है जिसका इस्तेमाल करीब सौ सालों से होता आ रहा है.. और अब कोरोना के मरीजों पर भी ये तकनीक कमाल का असर दिखा रही है.


डॉक्टर कर रहे हैं प्लाज्मा थैरेपी का इस्तेमाल 
विशेषज्ञ बताते हैं कि जो आदमी कोरोना से ठीक हो चुका है. उसके शरीर में दो हफ्ते बाद एंडीबॉडी बन जाती है. जिसके बाद उसका 200 मिली लीटर प्लाज्मा निकालकर कोरोना के पेशेंट को दिया जा रहा है. जिसके बाद मरीज के शरीर में कोरोना से लड़ने की क्षमता विकसित होने लगती है. 


एक आदमी एक बार में 500 एमएल प्लाज्मा दे सकता है जिसे तीन लोगों को दिया जा सकता है.. और उसके अलावा वो एक हफ्ते बाद फिर से डोनेट कर सकता है. ये तकनीक भरोसेमंद भी है और कारगर भी.. इसके तहत वैज्ञानिक पुराने मरीजों के खून से नए मरीजों का इलाज करते हैं.


ऐसे काम करता है प्लाज्मा ट्रीटमेंट 
कोरोना के ठीक हो चुके मरीज के खून के अंदर वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन जाते हैं. ये एंटीबॉडी वायरस से लड़कर उन्हें मार देते हैं या दबा देते हैं ये एंटीबॉडी ज्यादातर खून के प्लाज्मा में रहते हैं. जिसे ठीक हो चुके मरीज के शरीर से निकाल कर नए मरीज के शरीर में डाला जाता है. 


इंसान के खून में करीब 55 फीसदी प्लाज्मा होता है. इसमें करीब 45 फीसदी लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) और 1 फीसदी सफेद रक्त कोशिकाएं (WBC) होती हैं. 


प्लाज्मा थैरेपी से फायदा ये है कि बिना किसी वैक्सीन के ही मरीज किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है. प्लाज्मा शरीर के अंदर एंटीबॉडीज बनाता है. साथ ही उसे अपने अंदर स्टोर भी करता है.. और जब ये दूसरे व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है तो ये वहां जाकर एंटीबॉडी बना देता है. इससे बीमार शख्स वायरस के हमले से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं.


पुराने मरीजों से प्लाज्मा दान की अपील 
कोरोना के मरीजों को ठीक करने के लिए दुनिया के कई देशों में इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. अमेरिका में रेडक्रॉस सोसायटी ने पुराने मरीजों से प्लाज्मा डोनेट करने का अनुरोध किया है. 



अमेरिका की रेडक्रॉस सोसाइटी ने एक वेबसाइट बनाई है. जिसमें ठीक हो चुके मरीजों से कहा गया है कि दो हफ्ते बाद प्लाज्मा डोनेट करें. पूरे अमेरिका में प्लाज्मा थेरेपी मौजूद है.


इसे भारत में भी मंजूरी मिल गई है. कोवैलेसेंट प्लाज्मा ट्रीटमेंट सार्स और मर्स जैसी महामारियों में भी कारगर साबित हुआ था. इस तकनीक से कई बीमारियों को उन्मूलन किया जा चुका है. इसलिए ऐसे वक्त में जब कोरोना वायरस कोविड-19 के इलाज का कोई और पक्का साधन नहीं है. तब इस तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल इस महामारी के मरीजों के लिए संजीवनी साबित हो सकता है.


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