ये सरकारी ऐप आपकी दवाइयों का बिल करेगा काम, जानिए कैसे

भारत जैसे देश में घर में एक आदमी के बीमार पड़ने पर घर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो जाती है. लेकिन, कुछ तरीके हैं जिन्हें अपनाकर अपने खर्च को कम किया जा सकता है. खासकर दवा का खर्च. केंद्र सरकार ने हाल में एक ऐप लॉन्च किया है, जिसका नाम 'फार्मा सही दाम'.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 31, 2022, 09:15 PM IST
  • प्ले स्टोर से डाउनलोड करें ये ऐप
  • ब्रांडेड दवाइयों के मिलेंगे विकल्प
ये सरकारी ऐप आपकी दवाइयों का बिल करेगा काम, जानिए कैसे

नई दिल्लीः भारत जैसे देश में घर में एक आदमी के बीमार पड़ने पर घर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो जाती है. लेकिन, कुछ तरीके हैं जिन्हें अपनाकर अपने खर्च को कम किया जा सकता है. खासकर दवा का खर्च. केंद्र सरकार ने हाल में एक ऐप लॉन्च किया है, जिसका नाम 'फार्मा सही दाम'.

प्ले स्टोर से डाउनलोड करें ये ऐप
ये प्ले स्टोर पर उपलब्ध है. इसे App National Pharmaceutical Pricing Authority ने तैयार किया है. इसके जरिए थोड़ी सी मेहनत करके दवाओं का बिल कम किया जा सकता है. दरअसल, ये ऐप दवाओं के सस्ते विकल्प यानी Substitutes के नाम और उनकी कीमत दिखाता है. 

मसलन, आपको आपके डॉक्टर ने महंगी एंटीबायोटिक लिखी है. इस ऐप पर जाकर उस दवा का नाम सर्च करेंगे तो ये ऐप आपको उसी एंटीबायोटिक के सस्ते सबस्टिट्यूट दिखाएगा. यानी दूसरी कंपनी की दवा - जिसका नाम कुछ और होगा - लेकिन दवा बिल्कुल वही होगी, जो आपको लिखी गई है. 

ब्रांडेड दवाइयों के मिलेंगे विकल्प
Augmentin भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली एंटीबायोटिक दवाओं में शामिल है. ये दवा ब्रांडेड है तो 200 रुपये की 10 टैबलेट मिलेंगी - जबकि ऐप पर आपको इसके दस और ब्रांडेड सस्ते विकल्प मिल जाएंगे. जेनेरिक दवाओं की दुकान पर ये दवा 50 रुपये में 6 टैबलेट मिल जाएंगी. 

इसी तरह एसिडिटी की दवा PAN D के 15 कैप्सूल की कीमत 199 रुपये है. जबकि जबकि प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर इसी दवा के 10 कैप्सूल 22 रुपये में मिल जाते हैं. बुखार और डायबिटीज की दवाओं का भी यही हाल है. इनमें भी 2 गुने से कई गुना तक का अंतर है.

भारत में 2013 तक दवाओं के दाम लागत और मुनाफा जोड़कर तय होते थे, लेकिन अब दवा के दाम का उसकी लागत से कोई लेना देना नहीं रहा. जो दवाएं डीपीसीओ के तहत नहीं आती है. उनके दाम निर्माता कंपनी खुद तय कर सकती है. यानी 10 रुपये में बनने वाली दवा का दाम वो 1 हजार भी रख सकती है.

सरकार को बहुत काम करने की जरूरत
फार्मा क्षेत्र के जानकारों की मानें तो भारत में दवा कंपनियों और डॉक्टरों के गठबंधन को तोड़ने के लिए मौजूदा कानूनों को अनिवार्य करने और कड़ाई से लागू करने पर ही काम बन सकता है. इसके अलावा जेनेरिक दवाओं में लोगों का भरोसा जगाने और उनकी उपलब्धता तय करने पर सरकार को अभी बहुत काम करना है. 

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