लंदन: ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने नए शोध में शुक्रवार को ओमिक्रॉन वैरिएंटर को लेकर नई जानकारी सामने आई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लिनिकल परीक्षण के परिणाम बताते हैं कि वैक्सीन का बूस्टर डोज नए वेरिएंट को रोकने में कारगर है. 


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वैज्ञानिकों ने कहा कि छह अलग-अलग निर्माताओं के टीके बूस्टर के रूप में सुरक्षित और प्रभावी साबित हुए हैं. वहीं इससे टी सेल तीन गुनी हो जाती है. टी सेल यानी प्रतिरोधी कोशिकाएं ही 


भारत के लिए भी अच्छी बात
इस शोध में एस्ट्राजेनेका, फाइजर, मॉडर्न, नोवावैक्स, जानसेन और क्योरवैक के टीकों पर परीक्षण किया गया. चूंकि भारत भी ज्यादातर एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोविशिल्ड का इस्तेमाल कर रहा है, इसलिए यह शोध भारत के लिए भी अच्छी खबर लाया है. 


विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले सप्ताह सुपर-स्ट्रेन के उद्भव के बाद से यह आशा की पहली झलक है. सरकार द्वारा वित्त पोषित परीक्षण के अनुसार, तीसरी खुराक के बाद शरीर की टी-सेल प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बेहतर होती है. इससे मरीज अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु से बच जाते हैं. 


क्यों है तीसरी डोज की जरूरत
ऐसा माना जाता है कि टी-कोशिकाएं एंटीबॉडी की तुलना में लंबे समय तक चलने वाली और व्यापक सुरक्षा प्रदान करती हैं. यह प्रारंभिक उच्च सुरक्षा प्रदान करती हैं लेकिन यह भी सामने आया है कि समय के साथ रक्षा तेजी से फीकी पड़ जाती है.

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रिपोर्ट से आ रहे राहत भरे परिणाम
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल साउथेम्प्टन एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट में एनआईएचआर क्लिनिकल रिसर्च फैसिलिटी के ट्रायल लीड और निदेशक प्रोफेसर शाऊल फॉस्ट ने कहा: 'भले ही हम दीर्घकालिक प्रतिरक्षा के संबंध को ठीक से नहीं समझते हैं, टी सेल डेटा हमें दिखा रहा है कि यह सभी प्रकार के उपभेदों के खिलाफ व्यापक प्रतीत होता है, जो हमें आशा देता है कि वायरस के नए प्रकार के स्ट्रेन जैसे ओमिक्रॉन को नियंत्रित किया जा सकता है. 


उन्होंने कहा कि टी सेल प्रतिक्रिया केवल स्पाइक प्रोटीन पर केंद्रित नहीं है बल्कि 'एंटीजनों की एक विस्तृत श्रृंखला को पहचान रही है जो सभी प्रकारों के वेरिएंट के लिए सामान्य हो सकती हैं. ओमाइक्रोन के बारे में विशेष रूप से पूछे जाने पर उन्होंने कहा: 'वैज्ञानिकों के रूप में हमारी आशा है कि अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु से सुरक्षा बरकरार रहेगी.

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