नई दिल्लीः दुनिया के एक कोने में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रही जंग ने सभी को हैरत में डाल रखा है. नफरत, जिद और ताकत के इस खूनी खेल ने सैकड़ों जिंदगियां लील ली हैं, हजारों घर उजाड़ दिए हैं और आने वाले पीढ़ियों के लिए भी समस्याओं का बीज बो दिया है.


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दोनों देशों में ये लड़ाई पिछले 11 दिनों से चल रही है. कई देश संघर्षविराम की लगातार अपील कर रहे हैं. लेकिन समाधान निकलता नहीं दिख रहा है. इन दो देशों की दुश्मनी का किस्सा पुराना है.


हर कोई जानता है कि इजरायल भले ही अकेला हो लेकिन उसकी ताकत के आगे फिलिस्तीन और उसके चरमपंथी गुट ज्यादा देर तक नहीं टिक सकते हैं. लेकिन इस बार हमास ने जिस तरह से इजरायल पर हमला बोला है. उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.


हमास ने 4 हजार से ज्यादा रॉकेट दागे
इजरायली सेना का कहना है कि गजा से चरमपंथियों ने उनके यहां करीब 4,000 रॉकेट दागे हैं. इजरायली सेना का अनुमान है कि लड़ाई शुरू होने के समय गजा के दो मुख्य गुटों, हमास और इस्लामिक जिहाद, के पास 12,000 रॉकेट या मोर्टार थे.


इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि हमास के पास मौजूदा समय में पहले से अधिक मारक क्षमता वाली मिसाइलें और हथियार हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हमास को ये हथियार देता कौन है. हमास को मजबूत बनाने में किसका हाथ है.


ईरान से मदद
गजा पट्टी में आधुनिक और दूर तक मार करने वाले हथियारों को बनाने की क्षमता कहां से आई, इसे लेकर इजरायल और बाहर के विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी तकनीक उनके पास ईरान से पहुंची है. उनका कहना है कि गज़ा पट्टी में इसकी इंडस्ट्री ईरान की मदद से ही खड़ी हुई है.



यही वजह है कि इजरायली हमलों का मुख्य निशाना हथियारों की ये फैक्ट्रियां और उनके भंडार हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ईरान इन चरमपंथियों को फंडिंग के साथ हथियारों की सप्लाई भी करता है लेकिन अब उसने गजा में हमास के लिए हथियारों की फैक्ट्री तक खड़ी कर दी है, जिससे इन चरमपंथियों के पास असीमित हथियार हैं.


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पहली बार इन मिसाइलों का इस्तेमाल
हमास के पास कितनी मिसाइलों का स्टॉक है, इसका अनुमान लगाना नामुमकिन है.ये बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि हमास के पास हज़ारों की संख्या में अलग-अलग तरह के हथियार हैं. हमास की क्षमता को लेकर इजरायली प्रवक्ता ने केवल इतना कहा है कि "हमास इस तरह के हमले का सामना काफी लंबे समय तक कर सकता है.


लेकिन फिलस्तीनियों की तरफ़ से दाग़ी जा रही मिसाइलें पहले से ज़्यादा दूरी तक मार कर सकती हैं और वे अधिक विस्फोटकों से लैस हैं. हमास ने पहली बार अय्याश 250 मिसाइल का इस्तेमाल किया है, जिसकी क्षमता 250 किमी तक मार करने की है.


 ऐसा लगता है कि उसके पास कम दूरी तक मार कर सकने वाली 'क़ास्सम' मिसाइलों का बड़ा स्टॉक है. ये मिसाइलें 10 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं.इसके अलावा हमास के पास 'क़ुद्स 101' मिसाइलें भी बड़ी संख्या में हैं जो 16 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं. उसके पास 55 किलोमीटर की दूरी तक मार करने में सक्षम 'ग्रैड सिस्टम' और 'सेजिल 55' मिसाइलें भी हैं.


हमास के पास छोटी दूरी तक मार कर सकने में सक्षम मिसाइलों के अलावा मोर्टार हमले की भी ताकत है. इन मिसाइलों में एम-75 (मारक क्षमता: 75 किलोमीटर), फज्र (100 किलोमीटर), आर-160 (120 किलोमीटर) और कुछ एम-302 प्रक्षेपास्त्र भी हैं.


ये देते रहे हैं मदद
एक बात तो साफ रही है कि इजरायल की लड़ाई अकेले फिलिस्तीन से नहीं है. इजरायल के आस पास दुश्मन देशों का पूरा समूह ही है. कुछ साल पहले तक सूडान भी फिलिस्तीनियों को मदद पहुंचाता रहा है. मिस्त्र के रास्ते ये हथियार पहुंचाए जाते थे.


लेकिन वहां सत्ता बदलने के बाद अब इजरायल और सूडान में शांति समझौता हुआ है. वहीं, सीरीया भी फिलिस्तीनियों को मदद पहुंचाते रहे हैं. लेकिन ईरान अभी भी इन चरमपंथियों का सबसे मददगार देश बताया जाता है.


सिर्फ हथियार ही नहीं देता ईरान


खास बात है कि ईरान सिर्फ हमास को हथियारों की ही सप्लाई नहीं करता है, बल्कि विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान इन चरमपंथियों को हथियार चलाने, बनाने और डिजाइन आदि करने की भी जानकारी देता है. बताया जाता है कि ईरान की ही देन है कि फिलिस्तीन में ये रॉकेट कुछ ही पलों में बना लिए जाते हैं. इसलिए यहां हथियारों की कमी अब बीती बात हो गई है.


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इसलिए ज्यादा हमले करता है हमास
हमास लगातार इजरायल पर हमला कर रहा है. हजारों की संख्या में रॉकेट दागने के पीछे उसका एक और बड़ा कारण है. दरअसल, उसके ओर से इजरायल पर दागी जाने वाली 90 प्रतिशत रॉकेट्स का रास्ता इजरायल के  'आयरन डोम एंटी मिसाइल सिस्टम' रोक लेता है.



ऐसे में हमास की कोशिश ज्यादा वार करने की होती है. इसके दो कारण है. पहला तो ये कि उसको पता है कि उसके ज्यादा हमले बेकार हो रहे हैं. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा हमले किए जाएं ताकि नुकसान होता रहे. दूसरा ये कि लगातार हमला करने से आयरन डोम में भी तकनीकी खामी आ सकती है, जिसका फायदा हमास को मिलता है और इजरायल को ज्यादा नुकसान होता है.


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