संकट में नेपाल सरकारः प्रचंड सरकार से केपी शर्मा ओली ने समर्थन वापस लिया, जानिए क्या होगा असर
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल पार्टी ने सोमवार को राजनीतिक समीकरण में बदलाव का हवाला देते हुए पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस लेने का फैसला किया.
काठमांडूः नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल पार्टी ने सोमवार को राजनीतिक समीकरण में बदलाव का हवाला देते हुए पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस लेने का फैसला किया. इस कदम को देश में दो महीने पहले गठित सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है.
जानिए किस कारण अलग होने का किया फैसला
प्रचंड और ओली की पार्टी के अलग होने की मुख्य वजह माओवादी नेता (प्रचंड) द्वारा राष्ट्रपति चुनाव में नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राम चंद्र पौड्याल का समर्थन करने का फैसला बताया जा रहा है. पौड्याल की नेपाली कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा नहीं है. नेपाल में राष्ट्रपति चुनाव नौ मार्च को होना है. ‘द काठमांडू पोस्ट’ अखबार के मुताबिक, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) (सीपीएन-यूएमएल) ने सोमवार को पार्टी के शीर्ष नेताओं की बैठक के बाद प्रचंड नीत सरकार से समर्थन वापस लेने की औपचारिक घोषणा की.
जानिए क्या होगा सरकार पर असर
सीपीएन-यूएमएल के उपाध्यक्ष बिष्णु प्रसाद पौडेल ने कहा, “नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा अलग ढर्रे पर काम शुरू करने और राष्ट्रपति चुनाव से पहले बदले हुए राजनीतिक समीकरण के कारण हमने सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया है.” सीपीएन-यूएमएल के अलग होने से प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार के अस्तित्व पर तुरंत असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि संसद में नेपाली कांग्रेस (एनसी) के 89 सदस्य हैं. 275 सदस्यीय नेपाली संसद में यूएमएल के 79 सांसद हैं.
इसी तरह, सीपीएन (माओवादी सेंटर), सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के क्रमश: 32, 10 और 20 सदस्य हैं. नेपाली संसद में जनमत पार्टी के छह, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के चार और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के तीन सदस्य हैं. प्रचंड को प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं जारी रखने के लिए केवल 138 सांसदों के समर्थन की जरूरत है.
‘माई रिपब्लिका’ अखबार के अनुसार, पौडेल ने दावा किया कि प्रधानमंत्री प्रचंड ने यूएमएल के मंत्रियों को सरकार से बाहर करने के लिए दबाव की रणनीति का इस्तेमाल किया, जिसके चलते पार्टी को समर्थन वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा. पौडेल ने कहा कि प्रचंड ने चेतावनी दी थी कि अगर सीपीएन-यूएमएल सत्तारूढ़ गठबंधन से अलग नहीं होती है तो वह उसके मंत्रियों को तत्काल बर्खास्त कर देंगे या फिर उनके बिना ही विभागों में मंत्री नियुक्त कर देंगे.
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री प्रचंड ने जिनेवा जा रहीं विदेश मंत्री बिमला राय पौड्याल को आखिरी समय में रोककर अपरिपक्वता का प्रदर्शन किया. पौड्याल यूएमएल से ताल्लुक रखती हैं. वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के एक उच्च-स्तरीय सत्र में हिस्सा लेने के लिए जिनेवा जाने वाली थीं. हालांकि, प्रचंड ने आखिरी समय में उनसे अपनी यात्रा रद्द करने को कहा. उनके इस कदम ने ओली के नेतृत्व वाली पार्टी का गुस्सा और भड़का दिया.
पौडेल ने कहा, “हमने यह फैसला इसलिए लिया है, क्योंकि प्रधानमंत्री प्रचंड ने 25 दिसंबर को हुए समझौते पर अमल नहीं किया और हम पर सरकार से अलग होने का दबाव बनाया.” 68 वर्षीय प्रचंड ने पिछले साल 26 दिसंबर को तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की थी.
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