नई दिल्ली. यूरोप में बढ़ता इस्लामीकरण अब एक विस्फोटक राजनीतिक प्रश्न बन गया है और इस प्रश्न ने यूरोप की बहुलतावादी संस्कृति के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. इस्लामीकरण के विरोध में  दुनिया की फतवा विरोधी शक्तियां भी सक्रिय हो गई हैं और साथ ही दुनिया का जनमत भी जिहादी सोच के विरोध में एकजुट हो रहा है.



विदेशी इमामों पर लगा दी गई रोक


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एक तरफ तो फ्रांस के पड़ोसी देश जर्मनी में मुसलमानों को लेकर विरोध-प्रदर्शन चल रहे हैं, दूसरी तरफ फ्रांस ने भी इस दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. इस्लामीकरण के विरोध के पहले चरण में फ्रांस ने देश में विदेशी इमामों को आने की मनाही कर दी है. देश में आतंकी गतिविधियों को रोकने  के लिए फ्रांस की सरकार ने यह फैसला लिया है जिस पर बाकायदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने मुहर लगा कर सर्वोच्च स्वीकृति प्रदान कर दी है. 


हर साल आते हैं तीन सौ इमाम 


स्थिति की गंभीरता को समझते हुए राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यह कदम उठाया है. एक प्रेसवार्ता में राष्ट्रपति ने बताया कि इस वर्ष से हमने अपने देश में किसी भी अन्य देश से आने वाले मुस्लिम इमामों पर रोक लगा दी है. आंकड़ों के अनुसार साल दुनिया के देशों से लगभग 300 इमाम हर साल फ्रांस आते हैं. 



मदरसों में 'पढ़ाते' हैं ये इमाम


मदरसों में होने वाली गतिविधियां कभी बाहर नहीं आ पातीं. वहां किस किताब का पाठ पढ़ाया जा रहा है या कौन सा राष्ट्रविरोधी विचार नन्हे दिमागों में आरोपित किया जा रहा है, कभी पता नहीं चलता. मदरसे आतंकी गतिविधियों के एक सुरक्षित अड्डे के तौर पर भी दुनिया भर में काम कर रहे हैं. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने बताया कि फ्रांस में ज्यादातर अल्जीरिया, मोरक्को और तुर्की से इमाम आकर मदरसों में पढ़ाते हैं. उनको रोकने से फ्रांस में आतंकी गतिविधियों पर लगाम लग सकेगी. 


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