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नई दिल्ली. अमेरिका और तालिबान का शान्ति समझौता कामयाब होता नज़र नहीं आ रहा क्योंकि इस समझौते में अफगानिस्तान के सरकार को कोई भूमिका नहीं दी गई है. अब अफगानिस्तान की सरजमीं पर चौथी ताकत पाकिस्तान तालिबान के सहारे यहां की सरकार से गैर-कानूनी फायदा उठाने की कोशिश में है जो कि देश के हितों को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. आज के हालात में में अमेरिका ने अफगानिस्‍तान को तालिबान के रास्‍ते पाकिस्‍तान के को सौंप दिया है और देखा जाये तो इस पूरे समझौते में सबसे बड़ा फायदा अगर किसी को हुआ है तो वो पाकिस्तान ही है.  



 


पाकिस्तान है समझौते का काँटा 


पाकिस्‍तान के रहते अफगानिस्तान में शांति सम्भव नज़र नहीं आती. पाकिस्तान के वजीरे आजम इमरान खान की मंशा अफगानिस्तानी संसाधनों पर कब्‍जा करने की है जो अफगानी सरकार समझ गई है. इसलिए अब दुनिया भर के राजनीति विशेषज्ञ इस समझौते से नाउम्‍मीद नज़र आ रहे हैं क्योंकि अमरीकी सेना के हटते ही पाकिस्तानी फौजें यहां मददगार बन कर मान न मान मैं तेरा मेहमान हो जाने वाली हैं.


दूसरा कारण स्वयं तालिबानी हैं 


अफगानिस्‍तान की शांति बहाली में होने वाला अमेरिका-तालिबान समझौता कितना कामयाब होगा यह दो कारणों पर निर्भर करता है. एक तो पाकिस्तान का अफगानिस्तान में दखल और दूसरा स्वयं तालिबान. तालिबान में कई अलग अलग समूह हैं जो अलग अलग आतंकी संगठनों से जुड़े हुए हैं. कुछ समूह आज भी आईएस से जुड़े हैं तो कई अभी भी अल कायदा के लिए काम कर रहे हैं. ज़मीनी हालत ये है कि अमेरिका यहां अपने सैनिक निवेश को पूरी तरह समाप्त नहीं करेगा. 



 


अमरीका जंगी मुद्रा में नहीं है


सबसे बड़ा फायदा फिलहाल जो नज़र आता है वो ये है कि सबसे बड़े खूनी टकराव अब इस समझौते के बाद से रुक जाएंगे जो कि अमेरिकी सैनिकों और तालिबानियों के बीच लगातार जारी थी. इस समझौते के बाद अमेरिकी सैनिक तालिबान के खिलाफ जंग नहीं करेंगे. अब जो जंग हो सकती है वह अफगान सरकार और तालिबान के बीच ही हो सकती है और यह वजह अफगानिस्तान में शान्ति की संभावना को सशक्त नहीं होने देगी. 


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