नई दिल्ली: कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को मिली हार के लिए जिम्मेदार रहने के बावजूद, देश के पूर्व सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारत के साथ शांति की हिमायत कर दोनों देशों को कश्मीर मुद्दे के समाधान के सबसे करीब लाने में मदद की थी. अखबारों ने अपने संपादकीय में कहा है कि भारत के साथ 1999 में हुए कारगिल युद्ध में जनरल मुशर्रफ की भूमिका को लेकर उन्हें लंबे समय तक एक ‘नायक’ और एक ‘खलनायक’ के रूप में याद किया जाएगा.


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पाकिस्तानी मीडिया ने मुशर्रफ पर किया ये दावा
मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद रविवार को दुबई में निधन हो गया. वह 79 वर्ष के थे. वह 2001 से 2008 के बीच पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे थे. ‘डॉन’ अखबार ने अपने संपादकीय में कहा कि पूर्व सैन्य तानाशाहों अयूब खान और जिया उल हक के नक्शे-कदम पर चलने वाले मुशर्रफ को देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया अचानक रोकने के लिए याद किया जाएगा.


अखबार के अनुसार, 'मुशर्रफ ने दो बार संविधान का उल्लंघन किया और 2007 में दूसरा आपातकाल लगाने के कारण देशद्रोह के लिए मौत की सजा का सामना करने वाले वह पाकिस्तान के एकमात्र सैन्य शासक थे.' खबर में कहा गया है कि उनके शासन के दौरान कुछ उदारवादी सुधार भी किये गये.


अखबार ने कहा, 'कारगिल युद्ध में मिली हार के लिए जिम्मेदार रहने के बावजूद, उन्होंने भारत के साथ शांति की हिमायत की, कश्मीर मुद्दे के समाधान के सबसे करीब लाने में पाकिस्तान और भारत की मदद की.' संपादकीय में, 2001 में कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए चार सूत्री फार्मूला पेश किये जाने का संभवत: जिक्र करते हुए यह कहा गया.


तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ की थी कार्रवाई
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने मुशर्रफ पर अपने संपादकीय में लिखा, 'वह भारत के साथ 1999 में हुए कारगिल युद्ध में निभाई गई अपनी भूमिका के लिए लंबे समय तक एक नायक और एक खलनायक के रूप में याद किये जाएंगे. ' ‘डॉन’ अखबार ने कहा, 'दिवंगत जनरल की सबसे बड़ी और माफ नहीं किये जाने योग्य गलती संवैधानिक व्यवस्था को पटरी से उतारने की थी.'


‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के अनुसार, जहां तक मुशर्रफ की राजनीति के तौर तरीकों की बात है, इस मामले में वह एक विवादित शख्सियत थे. अखबार ने कहा है कि उनकी सबसे बड़ी गलती पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई करने की थी, जिसने प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू कर दिया और इसने आखिरकार राष्ट्रपति पद से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.


‘द न्यूज इंटरनेशनल’ ने कहा, 'शायद, पूर्व तानाशाह ने सबसे जोरदार हमला लोकतंत्र पर किया था.' ‘डेली टाइम्स’ अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है कि मुशर्रफ के शासन को मानवाधिकार हनन, सेंसरशिप और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने के रूप में जाना जाता है, लेकिन उस दौरान आर्थिक वृद्धि की एक संक्षिप्त अवधि भी रही थी.


अखबार के अनुसार, उन्होंने देश में उदारवाद का माहौल तैयार किया और जवाबदेही की प्रक्रिया शुरू की, हालांकि यह (जवाबदेही) बाद में एक विवादास्पद कवायद साबित हुई.


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