नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत को लेकर जहां पूरी दुनिया चिंतित है उसकी मान्यता को लेकर तमाम देश कतरा रहे हैं वहां पाकिस्तान तालिबान को मान्यता दिलाने को लेकर जी जान से जुटा है शांति और स्थिरता के लिए वो इसे जरूरी बता रहा है लेकिन सवाल है कि क्या टेरर कैंप के जरिए शांति लाएगा पाकिस्तान? तालिबान की मान्यता के लिए पाकिस्तान इतना बेचैन क्यों है?


तालिबान की मान्यता के लिए पाकिस्तान बेकरार


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बंदूक के दम पर तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता तो कब्जा ली, लेकिन मान्यता के लिए परेशान है जो तालिबान इस्लाम और शरिया का हवाला देकर हुकूमत का सपना पूरा करना चाह रहा है. उसे खुद मुस्लिम देशों का समर्थन नहीं मिल रहा.


दरअसल, मुस्लिम देश और मुस्लिम संगठन ‘वेट एंड वॉच’ की स्थिति में हैं. लेकिन दुनिया के 56 मुस्लिम देशों में एक मात्र पाकिस्तान ही है, जो क्रूर तालिबान को मान्यता दिलाने के लिए बेकरार है इसके लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से लेकर तुर्की के विदेश मंत्री तक को मनाने की कोशिश कर रहे हैं.


इसके लिए वो अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता का हवाला दे रहे हैं. रूस और तुर्की के अलावा वो जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं.


FATF की कार्रवाई से बचने के लिए टेरर की नई साजिश


एक तरफ पाकिस्तान अफगानिस्तान को लेकर फिक्र जता रहा है वहां के आवाम और उनके अमन चैन की बात कर रहा है तो दूसरी तरफ अपने टेरर कैंप अफगानिस्तान शिफ्ट कर रहा है. खुफिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लश्कर और जैश के कैंप और आतंकियों की संख्या इन दिनों बढ़ गई है.


हालांकि बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद ही जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के टेरर कैंप अफगानिस्तान शिफ्ट होने शुरू हो गए थे. लेकिन इस बार तेजी के पीछे FATF की ग्रे लिस्ट में शामिल पाकिस्तान की दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की साजिश है ताकि वो ये दिखा सके कि पाकिस्तान में आतंकी अड्डा नहीं है.


दरअसल, दुनिया भर में आतंक का पनाहगार पाकिस्तान अगर FATF के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता तो वो ब्लैक लिस्ट में भी जा सकता है, जिससे कंगाल पाकिस्तान की हालत बद से बदतर हो सकती है.


पाकिस्तान के तालिबान प्रेम को अमेरिका ने भारत के खिलाफ बताया


पाकिस्तान के तालिबान प्रेम पर अमेरिका की भी नजर है. अमेरिका ने कहा है कि तालिबान से हाथ मिलाने या उसे मान्यता दिलाने के पीछे पाकिस्तान का मकसद भारत से मुकाबला करना है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में पाकिस्तान की रणनीति वहां भारतीय प्रभाव का मुकाबला करना है.


अफगानिस्तान में  तालिबान और आतंकवाद को रोकने के लिए भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है.


अफगानी आवाम की चिंता करने वाले पाक को अफगानी शरणार्थी मंजूर नहीं


अफगानिस्तान आवाम की चिंता करनेवाला पाकिस्तान जो इंसानियत की बातें कर दुनिया में खुद को अफगानिस्तान का सच्चा हमदर्द बताता है, लेकिन उसे अफगानी शरणार्थी अपने मुल्क में मंजूर नहीं है.


पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने जून मे कहा था कि अमेरिका की वापसी के बाद अगर अफगानिस्तान में हिंसा और अराजकता का माहौल बनता है, तो पाकिस्तान देश से लगी सीमा को बंद कर देगा. पाकिस्तान पहले ही 35 लाख लोगों को शरण दे चुका है लेकिन अब वह और शरणार्थियों को नहीं अपनाएगा.


तालिबान से यारी के पीछे पाकिस्तान को TTP का डर


पाकिस्तान की तालिबान से यारी के पीछे एक बड़ी वजह पाकिस्तान का तहरीके तालिबान से डर भी है तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता में आते ही अफगानिस्तान में बंद 2300 खूंखार आतंकियों को रिहा कर दिया है, जिसमें तहरीक-ए-तालिबान का डिप्टी चीफ फकीर मोहम्मद भी है.


अब पाकिस्तान तालिबान से गुहार लगा रहा है कि वो अफगानिस्तान की धरती को टीटीपी की गतिविधियों का ठिकाना न बनने दे. आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान को पाकिस्तान ने 2008 में ब्लैकलिस्ट किया था. टीटीपी ने पिछले एक दशक में पाकिस्तान में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया है. शरणार्थी की आड़ में टीटीपी समेत कई आतंकवादी संगठन के लड़ाके पाकिस्तान में घुसपैठ कर सकते हैं.


पाकिस्तान में चंदा वसूल रहे हैं तालिबानी आतंकी


अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि तालिबान लड़ाकों ने पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में घुसकर वहां के दुकानदारों से वसूली शुरू कर दी है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सीमाई इलाकों के दुकानदारों से तालिबानी करीब 50 डॉलर या उससे अधिक की वसूली कर रहे हैं.


तालिबानियों को पहले पाकिस्तान की मस्जिदों से चंदा मिलता था पर हाल के दिनों में उन्होंने स्थानीय बाजारों में धमक जमानी शुरू कर दी. इससे पहले पाकिस्तान के आतंकी तालिबानी लड़ाकों के साथ अफगान सेना के साथ जंग में शामिल थे.


सच तो ये है कि पाकिस्तान को अपने पड़ोस में जम्हूरियत वाला तालिबान नही चाहिए उसे वहां भी तालिबान जैसा आतंक का क्रूर रूप ही चाहिए लेकिन इसकी भी चिंता सता रही है कि कहीं अपना घर ना जल जाए.


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