Pakistan PM Challenges: पाकिस्तान में नई सरकार चुनने के लिए गुरुवार को राष्ट्रीय चुनाव हुआ. जहां शुक्रवार को वोटों की गिनती की जा रही है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या किसी पार्टी को बहुमत (169 सीटें) मिल पाएगा या नहीं?...और आखिर कौन बनेगा पाक का नया प्रधानमंत्री? बता दें कि देश पिछले काफी समय से कई संकटों से जूझ रहा है. ऐसी कई बड़ी चुनौतियां हैं जो सत्ता संभालने वाली सरकार के सामने होंगी.


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पाकिस्तान ने पिछली गर्मियों में IMF से 3 अरब डॉलर की अंतिम सहायता ली थी, जिससे देश डिफॉल्टर होने से बाल-बाल बचा था, लेकिन ऋणदाता का सपोर्ट मार्च तक समाप्त हो जाएगा, जिसके बाद अधिकारियों का मानना ​​है कि एक नए, विस्तारित कार्यक्रम की आवश्यकता होगी. नई सरकार के लिए एक नए कार्यक्रम पर तेजी से बातचीत करना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि मुद्रास्फीति रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है और अर्थव्यवस्था का हाल बेहाल है.


परेशानी बड़ी है...
एक नए कार्यक्रम का मतलब है कि कैसे देश को संभाला जाए और ऐसे में किस प्रकार ग्लोबल संस्थाओं से मदद लेकर सुधार करने के मकसद से आवश्यक और कठीन कदम उठाए जाएं, लेकिन यहां दिक्कत ये पैदा हो जाएगी कि सरकार जो पहले से ही निराश आबादी को राहत प्रदान करती है, टैक्स या किसी और तरीके से उन विकल्पों को बंद करना पड़ेगा. तो कुल मिलाकर परेशानी बड़ी है.


राजनीतिक घमासान
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने उन पर और उनकी पार्टी पर हमले का आरोप लगाया है, जिसके कारण चुनाव से पहले राजनीतिक तनाव बढ़ गया है. खान अगस्त से जेल में हैं, जिससे उनके लाखों समर्थक नाराज हैं.


पिछले सप्ताह में उन्हें तीन बार अलग-अलग जेल की सजा सुनाई गई है, लेकिन उनके खिलाफ और भी मामले लंबित हैं, जिनमें उन पर सैन्य प्रतिष्ठानों पर हिंसक हमलों का आदेश देने का आरोप भी शामिल है, जिसमें मौत की सजा भी हो सकती है.


खान को पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर लोकप्रिय समर्थन प्राप्त है और लगातार कार्रवाई और उनके जेल में रहने से ऐसे समय में तनाव ही बढ़ेगा जब अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए स्थिरता की आवश्यकता है.


खान ने आरोप लगाया कि जब वह प्रधानमंत्री थे तब नीतिगत निर्णयों पर मतभेद होने के बाद सेना ने उन पर और उनकी पार्टी पर कार्रवाई शुरू की. हालांकि, सेना इससे इनकार करती है.


बढ़ते उग्रवाद से निपटें
2014 में एक सैन्य अभियान के साथ कई आतंकवादी समूहों को अफगानिस्तान में खदेड़ दिए जाने के बाद पिछले 18 महीनों में आतंकवादी हमले बढ़े हैं.


विशेष रूप से प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद अफगानिस्तान में पुनर्गठित हुए और नाटो के नेतृत्व वाली सेनाओं द्वारा छोड़े गए उन्नत हथियारों का उपयोग कर रहे हैं.


उग्रवादियों ने सिलसिलेवार हाई-प्रोफाइल हमले किए हैं और पाकिस्तान के भीतर अपने गढ़ों में लौट आए हैं. दक्षिण-पश्चिम में जातीय-राष्ट्रवादी बलूच विद्रोह ने जोर पकड़ लिया है. यह प्रमुख सहयोगी चीन के हितों को भी निशाना बनाता है. बीजिंग ने खनिज समृद्ध बलूचिस्तान प्रांत और रणनीतिक बंदरगाह ग्वादर में खदानों में भारी निवेश किया है.


सीमाओं की देखभाल
TTP के हमलों ने इस्लामाबाद और तालिबान के बीच अभूतपूर्व तनाव पैदा कर दिया है. इस्लामाबाद ने सैकड़ों हजारों अवैध अफगानों को निष्कासित कर दिया है, जिनमें से कई दशकों से पाकिस्तान में रह रहे थे.


हाल ही में पाकिस्तान और ईरान ने पिछले महीने एक-दूसरे की धरती पर आतंकवादी ठिकानों पर हवाई हमले भी किए थे, लेकिन दोनों के बीच संबंध ठीक हो गए हैं. वहीं, इस घटना ने अपनी पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के लिए एक नई सुरक्षा चिंता पैदा कर दी है.


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