नई दिल्ली: अक्सर कई लोगों को चेहरा पहचानने में काफी परेशानी होती है. वे एकबार किसी से मिल लें तो उसके बाद दूसरी बार वे उसे याद नहीं रख पाते हैं. कभी-कभार ऐसा होना थोड़ा नॉर्मल है, लेकिन अगर आप रोजाना किसी से मिलने के बाद भी उसका चेहरा याद नहीं रख पा रहे हैं तो ये एक गंभीर समस्या हो सकती है. ये समस्या तब और बढ़ जाती है जब आप अपने पति, माता-पिता और बच्चे जैसे रिश्तेदारों का चेहरा याद रखने में भी सर्मथ न हो पा रहे हों. 


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फेस ब्लाइंडनेस से जूझ रही हैं महिला 
सैडी डिंगफेल्डर नाम की एक अमेरिकन पत्रकार को अपने रिश्तेदारों का चेहरा याद रखने में काफी परेशानी होती थी. हद तो तब हुई जब किराने की दुकान में शॉपिंग करते एक व्यक्ति को वह अपना पति समझ बैठी. सैडी के लिए यह पल शर्मिंदगी से भरपूर था. यह कोई पहली बार नहीं था जब सैडी के साथ यह समस्या हो रही थी. साल 2019 में उन्हें पता चला कि यह स्थिति एक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है, जिसे फेस ब्लाइंडनेस बोला जाता है. अपनी किताब ' डू आई नो यू' ( क्या मैं आपको जानती हूं) में उन्होंने लिखा कि वह पिछले 40 सालों से उन कामों को करने के लिए जूझ रही थी, जिसे लोग आसान समझ रहे थे. 


क्या है प्रोसोपेग्नोसिया? 
फेस ब्लाइंडनेस को प्रोसोपेग्नोसिया भी कहा जाता है. यह एक न्यीरोलॉजिकल कंडीशन है, जिसमें व्यक्ति दूसरों के साथ ही अपना चेहरा भी याद रखने में असमर्थ होता है. हमारा दिमाग चेहरे को याद रखने में मदद करता है. खासतौर पर यह लोगों के नाक और आंखों पर ज्यादा प्रकाश डालता है. चेहरा याद रखने के लिए ब्रेन का फुसिफॉर्म फेस एरिया ( FFA) जिम्मेदार होता है. ये हिस्सा लोगों को भाषा, आवाज, मेमोरी, इमोशंस, चेहरा और संगीत को याद रखने में मदद करता है. किसी का चेहरा देखते ही  FFA एक्टिवेट हो जाता है.  


 ऐसे याद रख सकते हैं लोग 
सैडी डिंगफेल्डर के मुताबिक FFA के जरिए ही हम लोगों को पहचान पाते हैं, हालांकि फेस ब्लाइंडनेस से जूझ रहे लोगों में ये FFA एक्टिवेट नहीं हो पाता है. इंसान का ब्रेन मैच्योर होने के साथ ही FFA भी डेवलप होने लगता है, लेकिन कई लोगों में ऐसा नहीं हो पाता. फेस ब्लाइंडनेस से जूझ रहा व्यक्ति लोगों को उसके बालों का रंग, गंध, आवाज और कपड़ों के जरिए याद रख सकता है. 


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