रामपुर की प्रसिद्ध भीमाकाली मंदिर का लगातार धंस रहा एक हिस्सा, जानें क्या है इस मंदिर का इतिहास
Himachal News: हिमाचल के रामपुर की प्रसिद्ध भीमाकाली मंदिर का एक हिस्सा लगातार धंस रहा है. ऐसे में इस मंदिर को बनाने के लिए बैठक की गई है.
Rampur News: हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रामपुर का प्रसिद्ध भीमाकाली मंदिर का एक हिस्सा लगातार धंस रहा है. जी मीडिया की टीम रामपुर के सराहन भी मां भीमा काली मंदिर पहुंची. मंदिर के प्रांगण का एक हिस्सा दूर से टेढ़ा नजर आता है. मंदिर के मुख्य द्वार का हिस्सा भी धंस रहा है. मंदिर दूर और पास से साफ नजर आता है.
मंदिर के पुजारी सोहनलाल मंदिर के गुरु सुभाष ने बताया कि निकासी की व्यवस्था ठीक ना होने के कारण मंदिर का हिस्सा धंस रहा है जो कि चिंता का विषय है. मंदिर विश्व विख्यात है ऐसे में दूर दराज से सैलानी मंदिर को देखने के लिए मां भीमा काली के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. लोगों का फ्लो ज्यादा होना भी एक कारण है. इसलिए अब पंद्रह लोगों को ही एक बार में भेजा जाता है.
वहीं, अब मंदिर के इस हिस्से का अध्ययन करने के लिए आईआईटी मंडी की टीम की मदद ली जाएगी. भीमा काली मंदिर न्यास सराहन की बैठक बुधवार को सर्किट हाउस रामपुर में हुई और मीटिंग में लोक निर्माण एवं शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह भी पहुंचे थे.
स्थानी लोगों ने कहा कि लोगों की इस मंदिर के साथ धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई हैं और यह मंदिर 1800 साल पुराना प्राचीन मंदिर है. ऐसे में जल्द इस मंदिर का कार्य करना चाहिए.
मंदिर का इतिहास
बता दें, भीमाकाली मंदिर भारत में हिमाचल प्रदेश के सराहन में स्थित एक हिंदू मंदिर है, जो भूतपूर्व बुशहर राज्य के शासकों की अधिष्ठात्री देवी मां भीमाकाली को समर्पित है. यह मंदिर शिमला से लगभग 180 किमी दूर स्थित है और यह 51 शक्तिपीठों जितना पवित्र है.
हिमाचल का भीमा काली मंदिर: बौद्ध और पहाड़ी शैली का अनूठा संगम है.
सराहन में भीमाकाली मंदिर 1800 साल पुराना मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है, जिन्हें स्थानीय रूप से भीमाकाली के नाम से जाना जाता है और इसे 51 पवित्र शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. 1927 में निर्मित वर्तमान भीमाकाली मंदिर ने पास के पुराने मंदिर की जगह ली, जिसकी एक दिलचस्प कहानी है. 1905 के भूकंप के दौरान, पुराना मंदिर थोड़ा झुक गया था, लेकिन बाद के भूकंप के दौरान आश्चर्यजनक रूप से सीधा हो गया. किंवदंती है कि मंदिर की नींव गहरी है और इसमें एक अप्रयुक्त सुरंग भी है जो इसे एक किलोमीटर दूर स्थित रानविन गांव से जोड़ती है.
प्राचीन समय में, पुजारी कथित तौर पर मंदिर में प्रवेश करने और बाहर निकलने के लिए इस गुप्त मार्ग का उपयोग करते थे. एक किंवदंती के अनुसार, दक्ष यज्ञ के दौरान, सती देवी का कान यहां गिरा था. अन्य किंवदंतियों के अनुसार यह क्षेत्र बाणासुर नामक राक्षस के शासन में था, जो भगवान विष्णु के परम भक्त राजा प्रह्लाद का परपोता था. उषा-अनिरुद्ध के संबंध के कारण, भगवान कृष्ण ने यहां उसके साथ युद्ध किया था और इस युद्ध में भगवान शिव ने उषा के विरुद्ध खड़े हुए थे.
किंवदंती है कि पराजित राजा बाणासुर का सिर प्रवेश द्वार के सामने दफनाया गया था जिसे अब पहले प्रांगण के लिए एक ऊंचे मंच के रूप में चिह्नित किया गया है. बाणासुर के बाद, भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने इस क्षेत्र पर शासन किया. तब सत्तारूढ़ राजा ने इस क्षेत्र की पीठासीन देवी के रूप में देवी भीमाकाली को मान्यता देते हुए इस मंदिर का निर्माण कराया.
इस माता की स्थापना उन विद्वानों द्वारा की गई है जो शावक विद्या जानते थे. वह उस समय आने जाने के लिए जहाज भी स्वयं बनाया करते थे और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे. उन्होंने कहा कि माता ने राज परिवार को जनता का भला करने का वरदान दिया है. उन्होंने बताया कि यहां पर भीमा काली माता के मंदिर में लंकड़ा वीर का मंदिर भी स्थापित है. लंकड़ा वीर माता भीमा काली के सेनापति होते थे. जो आज भी यहां पर स्थापित हैं. उन्होंने बताया कि सराहन में 1947 से पहले राजा के समय यहां अदालत भी लगा करती थी. जिसमें लोगों की समस्याएं सुनकर उनका समाधान किया जाता था.
रिपोर्ट- समीक्षा कुमारी, रामपुर