विजय भारद्वाज/बिलासपुर: हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा कई सरकारी संस्थानों को डीनोटिफाई किए जाने से जहां विपक्षी नेता इसका विरोध करते रहे हैं, वहीं सरकारी शिक्षण संस्थानों के डीनोटिफाई किए जाने से संस्थान में कार्यरत स्टाफ सदस्यों व पढ़ने वाले छात्रों को भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 


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ऐसा ही एक मामला बिलासपुर जिला से सामने आया है जहां श्री सरस्वती संस्कृत महाविद्यालय डंगार को साल 2021 में पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान सरकारीकरण कर राजकीय संस्कृत महाविद्यालय डंगार का दर्जा दिया गया और स्वामी विवेकानंद राजकीय कॉलेज घुमारवीं के प्रधानाचार्य को इसका इंचार्ज बनाया गया था. 


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इस महाविद्यालय में कार्यरत आचार्य स्टाफ के अलावा अन्य स्टाफ की भी व्यवस्था की गई थी, जिसके बाद हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद जहां मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा पूर्व सरकार के कार्यकाल के दौरान नोटिफाई किए गए सरकारी संस्थानों व कम संख्या वाले शिक्षण संस्थानों को डीनोटिफाई किया गया था, तब संस्कृत महाविद्यालय डंगार को भी डीनोटिफाई की लिस्ट में डाल दिया गया था, जिसके बाद महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों व अध्यापकों में नाराजगी देखने को मिल रही है. 


वहीं संस्कृत महाविद्यालय डंगार के प्राध्यापक प्रकाश चंद ने बताया कि सन् 1982 को इस संस्कृत महाविद्यालय को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से मान्यता दी गई थी, जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व केंद्र सरकार द्वारा सन् 1985 में इस महाविद्यालय के लिए आंशिक अनुदान राशि स्वीकृत हुई थी जो कि समय पर ही मिलना शुरू हो गया था. 


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साल 2021 तक यह अनुदान राशि समय पर मिलती रही, जिसके बाद जून 2021 में पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान इसका अधिग्रहण कर लिया गया था, लेकिन अब वर्तमान कांग्रेस सरकार द्वारा कुछ माह पहले इसे डीनोटिफाई किए जाने से महाविद्यालय में कार्यरत कमर्चारियों व यहां पढ़ने वाले छात्रों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.


इसके साथ ही उन्होंने कहा कि संस्कृत महाविद्यालय को डीनोटिफाई करने से कार्यरत कर्मचारियों को 2 साल से वेतन नहीं मिला है, जिससे कर्मचारी वर्ग आर्थिक संकट से गुजर रहा है. वहीं संस्कृत महाविद्यालय डंगार में पढ़ने वाले छात्रों का कहना है कि इस महाविद्यालय में करीब 200 छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिनमें कई छात्र ऐसे हैं जिन्हें किराए पर कमरा लेकर रहना पड़ रहा है और वह महाविद्यालय की फीस नहीं दे सकते हैं. ऐसे में साल 2021 में संस्कृत महाविद्यालय को सरकार द्वारा अधिग्रहण करने पर छात्रों को फीस माफ होने की सहूलियत थी, लेकिन अब संस्थान के डीनोटिफाई करने से उन्हें फीस देने की चिंता सताने लगी है.


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छात्रों ने कहा कि इस सब की वजह से उनकी शिक्षा पर भी खासा असर पड़ रहा है. वहीं संस्कृत महाविद्यालय डंगार के छात्रों ने प्रदेश सरकार द्वारा डीनोटिफाई के निर्णय को वापिस लिए जाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू व शिक्षा मंत्री से मुलाकात भी की है. उन्होंने कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि प्रदेश सरकार शिक्षण संस्थानों को डीनोटिफाई के निर्णय को वापिस लेते हुए संस्कृत महाविद्यालय डंगार को दोबारा नोटिफाई करने का छात्रों के हित में निर्णय लेगी.


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