भरत शर्मा/लुधियाना: भारत और कनाडा के बीच विवाद की वजह से व्यापार पर इसका बुरा असर पड़ रहा है. व्यापार के साथ-साथ खाद्य उत्पादों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है. कनाडा से खाद्य तेल के साथ-साथ बड़ी संख्या में दालें भी भारत भेजी जाती हैं. भारत में दालों की कुल खपत 23 लाख टन से अधिक है जबकि उत्पादन लगभग 16 लाख टन है. 


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7 लाख टन दालों के लिए विदेशों पर निर्भर है भारत
कुल मिलाकर भारत 7 लाख टन दालों के लिए विदेशों पर निर्भर है, जिसमें कनाडा इसका प्रमुख आपूर्तिकर्ता है. अगर मौजूदा स्थिति की बात की जाए तो कनाडा भारत को दाल, काबली चना और सफेद मटर भी भेज रहा है. शिपमेंट (Freight transport) मार्च-अप्रैल में होने वाला है. व्यापारियों ने कहा है कि इसकी पुष्टि हो चुकी है. फिलहाल अगले आवंटन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर विवाद जारी रहा तो भविष्य में भारत में दालों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है.


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कनाडा ही नहीं पड़ोसी देशों से भी होता है भारत का व्यापार 
लुधियाना दाल बाजार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रीतपाल सिंह ने कहा है कि फिलहाल स्थिति अच्छी है, लेकिन अगर भारत और कनाडा के बीच रिश्ते इसी तरह बिगड़ते रहे तो इसका असर भारत पर पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि भारत का व्यापार सिर्फ कनाडा से ही नहीं बल्कि उसके पड़ोसियों देशों से भी होता है. 


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कब बढ़ाई जाती हैं दाल की कीमतें
कनाडा के खास दोस्त अमेरिका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया भी इसके साथ हैं. वे किसी भी हालत में कनाडा के खिलाफ नहीं जाएंगे. ऐसे में इसका दालों के व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और दालों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है. वहीं, स्थानीय व्यापारियों ने कहा कि वे खुद दाम नहीं बढ़ाते हैं, बल्कि राजधानी दिल्ली के भाव के हिसाब से ही आगे दाम बढ़ाए जाते हैं. लुधियाना दाल बाजार में कोई भी व्यापारी अपनी कीमत अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ाता जब तक कि दिल्ली में कीमतें ना बढ़ जाएं. 


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