Maths Dyslexia: कुछ बच्चे मैथ्म में काफी कमज़ोर होते हैं. इसकी वजह यह है कि बच्चे अपने मन में मैथ्स को काफी मुश्किल मान लेते हैं, लेकिन अभ्यास करने से वो इस डर से बाहर निकल सकते हैं.
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Dyslexic Student: कई बच्चों को पढ़ाई का बहुत शौक़ होता है, किसी का मनपसंद सब्जेक्ट हिन्दी होता है, किसी को इंग्लिश अच्छी है तो कोई साइंस में अच्छे नंबर लाता है. लेकिन जब बात मैथ्स की आती है तो कुछ बच्चों के इतने अच्छे नंबर नहीं आते जितना कि दूसरे सब्जेक्ट में. कुछ बच्चे पढ़ाई पर ध्यान देने के बावजूद काफी कमज़ोर होते हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि मैथ्स डिस्लेक्सिया एक ऐसी बीमारी है जिसकी वजह से बच्चे मैथ्स में पीछे रह जाते हैं. अगर किसी को मैथ्स के मामूली सवाल हल करने में भी पेरशानी आए तो वो बच्चा मैथ्स डिसलेक्सिया का शिकार होता है.
मैथ्स डिस्लेक्सिया (Maths dyslexia) पर एक रिसर्च की गई जिससे यह बात सामने आई कि ये परेशानी जेनेटिकल होती है. इसके अलावा कम उम्र में जब बच्चे मैथ्स को अपने दिमाग़ में मुश्किल मान लेते हैं और उस डर की वजह से वो मैथ्स से दूरी बना लेते हैं. फिर ये डर उन्हें अंदर ही अंदर परेशान करता रहता है, जिससे वो मैथ्स से दूर भागते हैं.
जो लोग मैथ्स डिस्लेक्सिया के शिकार होते हैं उन्हें छोटे-छोटे सवालों को भी हल करने में मुश्किल होती हैं. इसके अलावा इस बीमारी से परेशान लोग उल्टी गिनती, सीधी गिनती में भी कंफ्यूज़ हो जाते हैं. इसके साथ इन्हें नंबर पहचानने में भी परेशानी होती है. दो डिजिट के बीच बड़ी और छोटी डिजिट को तय कर पाना उनके लिए आसान नहीं होता. बिना उंगलियों की सहायता लिए गिनती करने के लिए छोटे छोटे सवाल भी हल नहीं कर पाते हैं.
मैथ्स डिस्लेक्सिया नामी बीमारी का ताल्लुक़ दिमाग़ से है इसका कोई सटीक इलाज नहीं है. जो बच्चें इस तकलीफ में हैं उन्हें आम बच्चों से ज़्यादा मैथ्स पर ध्यान देने की कोशिश करनी चाहिए. कई बार की गई प्रेक्टिस से परेशानी होने पर ही निजात मिल सकती है. इस सिलसिले में माहेरीन का कहना है कि मैथ्स की रेगुलर प्रेक्टिस से मैथ्स डिसलेक्सिया पर काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है. प्रेक्टिस करने से बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ेगा और मैथ्स पर उसकी पकड़ मज़बूत होगी.
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