Online Medicine: अपोलो फार्मेसी से लेकर, टाटा ग्रुप का वन एमजी और रिलायंस का नेटमेड्स से लेकर दवाओं को घर बैठे खरीदना काफी आसान है. आम तौर पर ऑनलाइन फार्मेसी से डिस्काउंट भी अच्छा खासा मिल जाता है, लेकिन केमिस्ट की दुकान खोलकर बैठे फार्मासिस्ट के लिए ऑनलाइन फार्मेसी से लड़ पाना मुश्किल होता जा रहा है. ना वो इतने डिस्काउंट दे पाने की हालत में हैं और सरकार के सारे नियम कायदों का पालन करना भी ऑफलाइन फार्मेसी यानी केमिस्ट की दुकान के लिए ज़रुरी है. ऐसे में कम होते ग्राहकों ने केमिस्टों को रुला दिया है. लिहाजा 5 सालों से ज्यादा से केमिस्ट एसोसिएशन आनलाइन दवा प्लेटफार्मस के खिलाफ जंग लड़ रही है.   


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ऑनलाइन दवा बेचने पर आपत्ति


अब केमिस्ट एसोसिएशन ने कैबिनेट सेक्रेटरी राजीव गाबा को पत्र लिखकर कहा है कि भारत में आनलाइन दवाएं नियम कानूनों का उल्लंघन करके बिना लाइसेंस के बेची जा रही हैं. इस पर रोक लगाई जानी चाहिए. ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट (AIOCD) जो कि 12 लाख केमिस्टों की एसोसिएशन है, उसने दिल्ली हाईकोर्ट के 2018 के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि कोर्ट ने इन प्लेटफार्म को बिना लाइसेंस दवा बेचने पर स्टे लगाया हुआ है, फिर भी ये दवाएं बिक रही हैं.


ऑनलाइन दवा बेचने के लिए नहीं है कोई कानून


प्रेसीडेंट, AIOCD संदीप नांगिया के मुताबिक "ये मुद्दा नया नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इसी वर्ष फरवरी में ऑनलाइन फार्मेसी वाली 20 कंपनियों को नोटिस भेजकर पूछा था कि वो बिना लाइसेंस दवाएं कैसे बेच सकते हैं. हालांकि इस बारे में (CDSCO) ने सरकार को स्टेटस रिपोर्ट सौंपते हुए कहा था कि भारत में मौजूदा ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो आनलाइन दवा प्लेटफार्मस के लिए बना हो."   


डेटा का हो सकता है गलत इस्तेमाल


ये भी बताया कि "जाहिर है जब ये कानून बनाए गए तब ऑनलाइन शब्द भी इजाद नहीं हुआ था. लेकिन रेगुलर केमिस्ट की दुकान की बॉडी से लगातार दबाव आने के बाद सरकार ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था. आनलाइन प्लेटफार्म को लेकर ये डर जताया जाता है कि वो मरीजों का डाटा इकट्ठा करके उनका गलत इस्तेमाल कर सकती हैं."  


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नहीं बढ़ा ऑनलाइन करोबार


आनलाइन प्लेटफार्मस पर ड्रग्स, प्रेगनेंसी खत्म करने वाली दवाएं और कुछ बैन हुई दवाएं भी मिल जाती हैं. डर ये भी जताया जाता है कि सस्ती दवा बेचने के चक्कर में बाजार में नकली दवाएं पहुंच सकती हैं. जिससे मरीजों को खतरा हो सकता है. मरीज़ भी इस खतरे से डरे हुए हैं. इसी का नतीजा है कि आनलाइन फार्मेसी की सेल 2015 से अब तक 8 सालों में 5 से 8 प्रतिशत ही पहुंच पाई है.


ऑनलाइन कंपनियां हैं चिंतित


इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए सरकार न्यू ड्रग्स मेडिकल डिवाइस एंड कॉस्मेटिक बिल 2023 बना रही है जो पुराने कानून को रिप्लेस करेगा लेकिन तब तक क्या होगा किसी को पता नहीं है. ये बिल बनने में काफी देरी हो रही है. और आनलाइन कंपनियां अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. उनकी ओर से अक्सर ये दलील दी जाती है कि सरकार हम सब को मिलने का समय नहीं देती और अपनी पसंद से एक दो कंपनियों के अधिकारियों को बुलाकर बात कर लेती है. 


ऑनलाइन है मुश्किल


रिटेल केमिस्ट सुमित नायर का मानना है कि बड़ा सवाल है कि अगर डॉक्टर वर्चुअल हो सकते हैं तो दवाएं वर्चुअल क्यों नहीं मिल सकती. आनलाइन प्लेटफार्मस के लिए ये नियम बनाए जा सकते हैं कि वो बिना प्रिस्क्रिप्शन अपलोड किए कोई दवा नहीं बेचेंगे लेकिन गली में खुली केमिस्ट की दुकान से बिना प्रिस्क्रिप्शन के एंटीबॉयोटिक से लेकर नींद की दवा तक लेना आज कोई मुश्किल काम नहीं है. हालांकि आनलाइन दवा खरीदने पर ये जवाबदेही मुश्किल हो जाती है कि दवा खराब निकलने पर आपके सामने इंसान नहीं एक वेबसाइट होगी जिससे आपको लड़ना पड़ सकता है. 


सरकार बना रहा नियम


दरअसल सारा खेल डिस्काउंट के मुकाबले बड़ी दुकानों को चलाए रखने का है. वैसे ही जैसे आनलाइन कपड़े बेचने वाली कंपनी मार्केट में बने बड़े शोरुम को काम्पिटिशन दे रही हैं. इसीलिए सरकार आनलाइन दवाओं को रोकने के बजाय उनके लिए नियम लाने पर काम कर रही है.


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