Muslim News: केरल हाई कोर्ट ने मुस्लिमों की शादी पर बड़ा फैसला दिया है. केरल हाई कोर्ट ने एक एहम केस में सुनवाई करते हुए अपना फैसाल सुनाया है. इस फैसले में हाई कोर्ट ने कहा है कि "बाल विवाह निरोधी नियम 2006 बिना किसी धार्मिक भेदभाव के समान रूप से सभी भारतीयों पर लागू होता है." हाई कोर्ट के जज पीवी कुन्निकृष्णन ने यह भी कहा कि "बाल विवाह निरोधी नियम 2006 मुस्लिम पर्सनल लॉ से भी ऊपर है, जिसमें बच्चों की शादी को इजाजत दे दी जाती है." 


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नागरिकता पहले
जज के मुताबिक "नागरिकता पहले है, धर्म बाद में आता है. इसलिए ये कानून हर भारतीय पर लागू होता है." केरल हाई कोर्ट की बेंच ने "बाल विवाह के केस में मुल्जिम की याचिका को खारिज करते हुए ये बयान दिया." अदालत ने मुल्जिम पिता और कथित पति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए कहा था कि उनके खिलाफ दायर किया गया केस खारिज किया जाए.


केंद्र नहीं दे सकता दखल
मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए मुस्जिमों ने याचिका में कहा था कि "मुसलिम लड़की अगर प्यूबर्टी तक पहुंच जाती है, तो वह शादी के लायक हो जाती है. केंद्र इसमें दखल नहीं दे सकता." याचिकाकर्ताओं ने कहा कि "बाल विवाह विरोधी कानून उनके पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ है और उनके अधिकारों का हनन करता है." इस पर जज ने कहा कि "यह कानून किसी भी धर्म और किसी भी पर्सनल लॉ से भी ऊपर है." जज ने आगे कहा कि "भारत में और भारत से बाहर रहने वाले भारतीयों को भी यह कानून मानना ही होगा. इसमें कोई कोताही नहीं होगी."


बच्चों की इजाजत से हो शादी
जज ने अपने फैसले में कहा कि "बाल विवाह रोकना हमारे आधुनिक समाज का हिस्सा है. आज के दौर में यह कही भी जायज नहीं कि एक बच्चे की शादी कर दी जाए. यह उस बच्चे के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. बच्चों को पढ़ने दिया जाए. घूमने दिया जाए, अपनी जिंदगी जीने दिया जाए और फिर वह उस उम्र को आ जाएं तो उन्हें खुद से यह फैसला लेने दिया जाए कि वह किससे शादी करते हैं." आपको बता दें कि भारत में लड़कियों की शादी के लिए कम से कम उम्र 18 साल निर्धारित की गई है. अगर इससे पहले कोई लड़की की शादी करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी.