Abdul Hameed Adam Poetry: सय्यद अब्दुल हमीद अदम उर्दू के बड़े शायरों में शुमार किए जाते हैं. उनकी पैदाईश 10 अप्रैल 1909 को पंजाब के गुंजरवाला में हुई. वह उर्दू के रूमानी शायर माने जाते हैं. उनकी शायरी में इश्क़ व मुहब्बत, हुस्न व जमाल और हिज्र व विसाल का जिक्र होता है. इन्हीं खुसूसियतों की वजह से वह अपने वक्त में बहुत मकबूल रहे. 


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जिन को दौलत हक़ीर लगती है 
उफ़ वो कितने अमीर होते हैं 


मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस 
जीने वाले कमाल करते हैं 


इक हसीं आँख के इशारे पर 
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं 


जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं 
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं 


दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं 
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए 


जिन से इंसाँ को पहुँचती है हमेशा तकलीफ़ 
उन का दावा है कि वो अस्ल ख़ुदा वाले हैं 


मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया 
वर्ना सफ़र हयात का काफ़ी तवील था 


बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी 
डूबने वाले तिरे हाथ से साहिल तो गया 


तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया 
ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मिरे पास रह गया 


सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में 
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही 


सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ 
जवाब दे के मुझे और शर्मसार न कर 


लोग कहते हैं कि तुम से ही मोहब्बत है मुझे 
तुम जो कहते हो कि वहशत है तो वहशत होगी 


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