नई दिल्ली: कोरोना वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया के मुसलमानों में असमंजस की स्थिति है. क्योंकि मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि टीकों में आम तौर पर सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है और इस्लाम में सुअर को हराम करार दिया गया है. इसलिए मुसलमानों की फिक्र बढ़ गई है कि वो वैक्सीन का टीका लगवाएं या नहीं.


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हिंदुस्तान में मुंबई की रज़ा अकेडमी ने इसको लेकर फतवा जारी किया है कि पहले हम मेडिकल एक्सपर्ट्स और हमारे मुफ्ती इसकी इजाज़त नहीं देते तब तक मुसलमान इस दवा का इस्तेमाल न करें. हालांकि रज़ा अकेडमी के अलावा कई अन्य इस्लामिक नेताओं ने कहा है कि इस्लाम में ज़िंदगी को तरजीह दी गई. इसलिए इसे सियासी चश्मे से न देखें. 


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जान बचाने के लिए हलाल हैं तमाम हराम चीज़ें: अतीकुर्रहमान
वहीं इस्लामिक स्कॉलर अतीकुर्रहमान का कहना है,"अल्लाह ने जान बचाने के लिए हराम चीज़ों को हलाल करार दिया है." उन्होंने आगे कहा कि मुस्लिम लीडर्स का काम समाज को बेदार करना है, इसलिए इस काम में कोई रुकावट न डालें. 


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वैक्सीन सियासी चश्मे से न देखें: फिरंगी महली
इसके अलावा लखनऊ के मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने मुस्लिम समाज से किसी भी तरह के बहकावे में आने की बजाये कोरोना वैक्सीन लगावाने की बात कही है. उनका कहना है कि जान की हिफाज़त सबसे बड़ी चीज़ है इसलिए सभी वैक्सीन लगवाएं, वैक्सीन को पार्टी या लीडर के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. 


क्या कहती है UAE फतवा काउंसिल
इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की "यूएई फतवा काउंसिल" (UAE Fatwa Council) ने कोरोना वैक्सीन के टीकों में सुअर के मांस (PORK) के जिलेटिन के इस्तेमाल होने पर भी इसे मुसलमानों के लिए जायज़ करार दिया है. यूएई फतवा काउंसिल के अध्यक्ष अब्दुल्ला बिन बय्या ने कहा कि अगर कोई और विकल्प (मुतबादिल) नहीं है तो कोरोना वायरस टीकों को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है. क्योंकि इंसान की ज़िंदगी बचाना पहले जरूरी है. काउंसिल की दूसरी दलील यह भी है कि पोर्क-जिलेटिन को दवाई के तौर पर इस्तेमाल किया जाना है और न कि खाने के तौर पर. ऐसे में दुनिया भर के मुसलमान इस वैक्सीन को लगवा सकते हैं.


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