दिल्ली दंगा केस: दिलबर नेगी की मौत मामले में 11 लोग बरी, एक के खिलाफ आरोप तय
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दिल्ली दंगा केस: दिलबर नेगी की मौत मामले में 11 लोग बरी, एक के खिलाफ आरोप तय

Delhi Riot 2020: साल 2020 में दिल्ली में हुए दंगों में दिलबर नेगी नाम के शख्श की मौत हो गई थी. इस मामले में अदालत ने 11 लोगों को बरी कर दिया है. लेकिन एक के खिलाफ आरोप तय किए हैं.

दिल्ली दंगा केस: दिलबर नेगी की मौत मामले में 11 लोग बरी, एक के खिलाफ आरोप तय

Delhi Riots 2020: दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को दिल्ली दंगों के मामले में 11 लोगों को बरी कर दिया. इन पर कथित तौर पर उस भीड़ में शामिल रहने का इल्जाम था, जिसने 22 साल के शख्स दिलबर नेगी की मौत के बाद दुकानों में तोड़फोड़ की थी और एक मिठाई की दुकान में आग लगा दी थी. कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने सबूतों और हालात की  जांच करने के बाद नतीजा निकाला कि 11 मुल्जिम शख्स भीड़ की सरगर्मियों के दौरान दीगर वक्त पर मौजूद थे और दूसरे दंगा-संबंधी मामलों से जुड़े थे, लेकिन यह स्थापित नहीं किया जा सका कि वे उस घटना के लिए जिम्मेदार थे, जिसके नतीजे में नेगी की दुखद मौत हुई.

एक मुल्जिम

हालांकि, एक मुल्जिम मोहम्मद शाहनवाज के खिलाफ हत्या, दंगा और गैरकानूनी सभा करने के इल्जाम तय किए गए. फैसले में कहा गया है, "रात 9 बजे के बाद इस गोदाम में आग लगाने में आरोपी शानू उर्फ शाहनवाज की संलिप्तता के ताल्लुक में कोई शक नहीं है. हालांकि, दूसरे मुल्जिम लोगों की पहचान मोहम्मद शाहनवाज उर्फ शानू के साथी के रूप में नहीं की गई."

कई मुल्जिमों की हुई पहचान

फैसले में अदालत ने कहा कि "यह बताना जरूरी है कि अलग-अलग वक्त के दंगों के वीडियो में कई आरोपियों की पहचान की गई थी, लेकिन इन दो चश्मदीदों में से किसी ने भी वीडियो के आधार पर उनकी पहचान नहीं की, जिससे यह कहा जा सके कि ये आरोपी भी शानू के साथ आए थे." आदालत ने आगे कहा कि "जहां तक आरोपी शानू का सवाल है, रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत उसे दंगाई भीड़ का हिस्सा दिखाते हैं, जो हिंदू समुदायों के लोगों और उनकी संपत्तियों के खिलाफ कृत्यों में शामिल थी, ताकि ऐसी संपत्तियों में तोड़फोड़ और आग लगाई जा सके." उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 148, 153ए, 302, 436, 450, 149 और 188 के तहत अपराध के लिए आरोप तय किए गए हैं.

सबूत नहीं मिला

फैसले में कहा गया, "हालांकि, आपराधिक साजिश के मकसद से अभियोजन पक्ष की तरफ से कुछ और दिखाने की जरूरत होती है, यानी ऐसी भीड़ के सदस्यों के बीच किसी खास काम को करने के लिए पूर्व सहमति दिखाना." "यह भी मुम्किन है कि अचानक या तत्काल कॉल पर कोई व्यक्ति भीड़ में शामिल हो जाता है और भीड़ के मकसद के मुताबिक किसी भी काम में शामिल हो जाता है. इसलिए, IPC की धारा 120-बी या 34 के तहत इल्जाम के सपोर्ट में कोई सबूत नहीं मिला है."

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