गांधीनगरः गुजरात में आने वाले असेंबली इलेक्शन (Gujrat Assembly polls 2022) से पहले, रियासती सरकार गुजरात में यूनिफार्म सिविल कोड  (Uniform Civil Code) को लागू करने के लिए एक कमेटी बनाने की  तजवीज़ पेश कर सकती है. हाई कोर्ट  के एक रिटायर्ड जस्टिस की सदारत में इस कमेटी की तश्कील होने की उम्मीद है. इससे पहले उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सरकारों ने यूनिफार्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) को लागू करने के अपने फैसले का ऐलान किया था.


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यूनिफार्म सिविल कोड भारत में शहरियों के ज़ाती क़ानूनों को बनाने और लागू करने की एक तजवीज़ है, जो सभी शहरियों पर एक तरह से उनके मज़हब, तबक़े, ज़ात और लिंग की परवाह किए बिना लागू होता है. कई सियासी लीडरान ने यूसीसी की हिमायत करते हुए कहा है कि इससे मुल्क में एक तरह का जज़्बा पैदा होगा. हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इसे एक ग़ैर आईनी और अक़्लियती तबक़े के लिए मुख़ालिफ क़दम क़रार दिया है और क़ानून को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मरकज़ी सरकार के ज़रिए असल मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश करने के लिए बयानबाज़ी क़रार दिया है. बीजेपी के 2019 के मेनिफेस्टो में, महंगाई, इकनॉमी और बढ़ती बेरोज़गारी की तश्वीश के साथ ही हुकूमत में दोबारा आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा किया था.


इस महीने की शुरुआत में मरकज़ ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह संसद को मुल्क में यूनिफार्म सिविल कोड पर कोई क़ानून बनाने या उसे लागू करने की हिदायत नहीं दे सकता है.
क़ानून और लॉ मिनिस्ट्री ने अपने हलफनामे में कहा कि पॉलिसी का मामला अवाम के चुने हुए नुमाइन्दों को तय करना है और इस सिलसिले में मरकज़ के ज़रिए कोई हिदायात जारी नहीं की जा सकती हैं. मिनिस्ट्री ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, ’’विधायिका को किसी सब्जेक्ट पर क़ानून बनाने या नहीं बनाने का इख़्तेआर है. ख़ास तौर से, भारतीय जनता पार्टी के 2019 के लोकसभा इलेक्शन के इंतेख़ाबी मंशूर में, बीजेपी ने हुकूमत में आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा किया था.


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